शिक्षा, माध्यमिक (भारत में) सामान्यतया 'माध्यमिक शिक्षा' से अभिप्राय उस शिक्षा से है जो प्राथमिक स्तर के बाद परंतु विश्वविद्यालय स्तर (जिसमें इंटरमीडिएट भी सम्मिलित है) से पहले दी जाती है। इस शिक्षा के अंतर्गत ११ से १६ अथवा १७ वर्ष के बच्चे आते हैं और इसमें ५वीं से १०वीं अथवा ११वीं कक्षा तक की शिक्षा दी जाती है।
माध्यमिक स्कूल तीन प्रकार के होते हें - (१) मिडिल स्कूल, जिनमें सामान्यत: आठ कक्षाओं (पहली से आठवीं) तक शिक्षा दी जाती है। इन आठ कक्षाओं में प्रथम पाँच कक्षाएँ प्राथमिक स्तर की तथा अन्य तीन माध्यमिक स्तर की होती है। (२) हाई स्कूल, जिनमें सामान्यत: दस कक्षाएँ (१ से १०), पाँच कक्षाएँ (६ से १०), या किन्हीं किन्हीं स्कूलों में केवल दो कक्षाएँ (९ से १०) ही होती हैं। (३) उच्च माध्यिमिक स्कूल, जिनमें पाठ्यक्रम की अवधि हाई स्कूलों के पाठ्यक्रम से एक वर्ष अधिक होती है। उच्च माध्यमिक स्कूल में ११ कक्षाएँ (१ से ११) या छह कक्षाएँ (५ से ११) अथवा केवल तीन कक्षाएँ (९ से ११) हो सकती हैं। १९५८-१९५९ ई. में भारत में ५३,८७३ माध्यमिक स्कूल थे। इनमें से ३९,५४९ मिडिल, ११,१२९ हाई और ३,१६६ उच्च माध्यमिक स्कूल थे। इस स्तर पर भर्ती हुए छात्रों की कुल संख्या ६६.९५ लाख और छात्राओं की कुल संख्या १८.४५ लाख थी।
स्वतंत्रता के पश्चात् माध्यमिक शिक्षा का पुनर्गठन करने कके लिए निरंतर प्रयत्न किए गए। १९४८ के राधाकृष्णन आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया था कि माध्यमिक शिक्षा में परिवर्तन किए बिना विश्वविद्यालयीय शिक्षा का पुनर्गठन संभव नहीं है। १९५२ में डा. लक्ष्मणस्वामी मुदालियार की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक पाठ्यचर्या का विश्वविद्यालय की आवश्यकताओं, इसके कोरे किताबी ज्ञान और इसकी जीवन से पूर्णतया पृथकता की ओर ध्यान आकर्षित किया। आयोग ने सुझाव दिया कि इंटरमीडिएट स्तर (कक्षाएँ ११ और १२) को जिसका वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कोई विशिश्ट स्थान नहीं है समाप्त कर दिया जाए और इस प्रकार जो दो वर्ष बचें उनमें से एक (प्रथम) विश्वविद्यालय स्तर में तथा दूसरा माध्यमिक स्तर में जोड़ दिया जाए। आयोग ने यथासंभव बड़े पैमाने पर माध्यमिक पाठ्यचर्या में विविधता लाने की भी सिफारिश की। कक्षा ९ से ११ तक का नया पाठ्यक्रम दो भागों में विभाजित है : (१) मूल (आंतरिक) पाठ्क्रम और (२) चुने हुए विषय। मूल पाठ्यक्रम में तीन भाषाओं का अनिवार्य अध्ययन, समाज विज्ञान, सामान्य विज्ञान और एक हस्तकला सम्मिलित हैं। चुने हुए विषयों के अध्ययन के लिए निम्नलिखित सात समूहों में से किसी एक से तीन विषय चुनने आवश्यक हैं : मानव विद्याएँ, विज्ञान, टेक्नालाजी, कृषि, वाणिज्य, ललित कलाएँ और गृहविज्ञान। अंतिम उपलब्ध सूचना के अनुसार भारत में आजकल ३.१२१ उच्च माध्यमिक स्कूल और २,११५ बहूद्देशीय स्कूल हैं।
अभी यह बताना कठिन होगा कि पुनर्गठित स्कूलों में पुनर्गठन के मूल उद्देश्यों की कहाँ तक सिद्धि हो सकी है। प्राप्य सूचना के अनुसार यह पता चलता है कि माध्यमिक पाठ्यक्रम की विश्वविद्यालय द्वारा घातक प्रभुता और मैट्रिक के पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए विद्यार्थियों की दौड़ केवल एक शैक्षणिक समस्या ही नहीं है, वरन् यह हमारे समय की सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से भी घनिष्ट सबंध रखती है। १९५८-१९५९ में माध्यमिक स्कूलों में ५.११ लाख अध्यापक थे। इनमें से ४.०१ लाख पुरुष और १.१ लाख महिलाएँ थीं। उस वर्ष में देश में शिक्षा के २३३ प्रशिक्षण कालेज और विश्वविद्यालय विभाग थे जिनमें प्रत्येक वर्ष १४,८०२ स्नातकों को प्रशिक्षित किया जाता था। १९५८-१९५९ में ६४६ प्रतिशत माध्यमिक अध्यापक प्रशिक्षित थे। प्रशिक्षित पुरुषों और महिलाओं का अनुपात क्रमश ६१.९ और ७४.५ प्रतिशत था। कई राज्यों में अभी पिछले वर्षों में माध्यमिक अध्यापकों के वेतनमानों में उचित संशोधन किया गया है। उसी वर्ष माध्यमिक स्तर पर ८५.४ लाख विद्यार्थी थे। इनमें से ५८.४६ लाख मिडिल स्तर पर और २६.९४ लाख उच्च ओर उच्चतर माध्यमिक स्तर पर थे। इस स्तर पर के विद्यार्थियों की कुल संख्या में से ६६.९५ लाख बालक और १८.४५ लाख बालिकाएँ थीं। माध्यमिक स्तर पर छात्र अध्यापक का अनुपात २५.१ का था। यह अनुपात पिछले कई वर्षों से स्थिरप्राय रहा है।
देश में १७ माध्यमिक शिक्षा बोर्ड हैं, जो माध्यमिक स्तर के अंत में सार्वजनिक परीक्षा का आयोजन करते हैं और परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करते हैं। इन बोर्डों के नाम इस प्रकार है - (१) बिहार स्कूल एग्जामिनेशन, पटना, (२) बोर्ड फॉर पब्लिक ऐग्जामिनेशन, त्रिवेंद्रम, (३) बोर्ड ऑव हायर एजूकेशन, दिल्ली, (४) बोर्ड ऑव हाई स्कूल ऐंड इंटरमीडिएट एजूकेशन, उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद, (५) बोर्ड ऑव सेकेंडरी एजूकेशन, आँध्र प्रदेश, हैदराबाद, (६) बोर्ड ऑव सेकेंडरी एजूकेशन, मध्य प्रदेश, भोपाल, (७) बोर्ड ऑव सेकेंडरी एजूकेशन, मद्रास (८) बोर्ड ऑव सेकेंडरी एजूकेशन, उड़ीसा, कटक, (९) बोर्ड ऑव सेकेंडर एजूकेशन, राजस्थान, जयपुर, (१०) बोर्ड ऑव सेकेंडरी एजूकेशन, वेस्ट बंगाल, कलकत्ता, (११) सेंट्रल बोर्ड ऑव सेकेंडरी एजूकेशन, अजमेर, (१२) गुजरात सेकेंडरी स्कूल सर्टीफिकेट एग्जामिनेशन बोर्ड, बड़ौदा, (१३) सेकेंडरी एजूकेशन बोर्ड, मैसूर स्टेट, बंगलोर, (१४) सेकेंडरी स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन बोर्ड, महाराष्ट्र स्टेट, पूना, और (१) विदर्भ बोर्ड ऑव सेकेंडरी एजूकेशन, नागपुर।
असम और पंजाब, केवल ये दो ही ऐसे राज्य है जिनमें अभी माध्यमिक शिक्षा का कोई बोर्ड नहीं है। असम मे इस परीक्षा का संचालन गौहाटी विश्वविद्यालय ओर पंजाब में पंजाब विश्वविद्यालय करता है। १९५८-१९५९ में, ५.६२ लाख विद्यार्थियों ने एस.एल.सी. परीक्षा पास की। यह संख्या धीरे धीरे बढ़ रही है और शीघ्र ही १० लाख तक पहुँच जाएगी। इस परीक्षा को पास करनेवाले विद्यार्थियों में से लगभग ५० प्रतिशत विद्यार्थी हर साल उच्च शिक्षा में प्रवेश करते हैं।
माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम (संबंधित क्षेत्र की) प्रादेशिक भाषा है, फिर भी राज्य सरकारें सामान्य तौर पर भाषायी अल्पसंख्यकों को उनकी अपनी विशेष भाषा के द्वारा शिक्षा देने की व्यवस्था करती हैं, बशर्ते विद्यार्थियों की संख्या इतनी हो कि अतिरिक्त व्यय को उपयोगी समझा जाए। कुछ माध्यमिक स्कूलों में, विशेषतया उन स्कूलों में जो माध्यमिक शिक्षा की ऐंग्लो-इंडियन बोर्ड से और इंडियन कानफरेंस ऑव पब्लिक स्कूल्स से संबद्ध हैं, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है।
देश में माध्यमिक शिक्षा के विकास के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। १९५८-१९५९ में स्कूलों की व्यवस्था का विवरण (प्रबंध वार) इस प्रकार था - सरकार द्वारा व्यवस्थित, १९.५ प्रतिशत मिडिल स्कूल तथा १९.६ प्रतिशत हाई ओर उच्च माध्यमिक स्कूल; स्थानीय निकाय, ५०.६ प्रतिशत मिडिल स्कूल, तथा १०.२ प्रतिशत हाई व उच्च माध्यमिक स्कूल; प्राइवेट २९.९ प्रतिशत मिडिल स्कूल, तथा ७०.२ प्रतिशत हाई और उच्च माध्यमिक स्कूल। लेकिन व्यय का अधिकांश भाग सरकार ने दिया था। इस वर्ष में प्रत्येक साधन द्वारा किए गए खर्च का वितरण निम्न प्रकार था : सरकार, ५४.६ प्रतिशत; स्थानीय निकाय, ६.६ प्रतिशत; शुल्क, ३०.४ प्रतिशत तथा अन्य साधन, ८.४ प्रतिशत।
१९५८-१९५९ में देश में माध्यमिक शिक्षा पर कुल ७९.७५ करोड़ रुपए प्रत्यक्ष खर्च हुए। यह उस वर्ष के कुल प्रत्यक्ष व्यय का ३९.२ प्रतिशत था।
पंचवर्षीय योजनाओं में माध्यमिक शिक्षा की विकास योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए केंद्रीय सरकार राज्यों को पर्याप्त वित्तीय सहायता देती रही है। माध्यमिक शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने कई अन्य महत्वपूर्ण काररवाइयाँ भी की हैं। इसने १९५५ में माध्यमिक शिक्षा की अखिल भारतीय परिषद् की स्थापना की। परिषद् माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन और विस्तार से संबंधित समस्याओं पर मंत्रालय को सलाह देती है। माध्यमिक शिक्षा विस्तार कार्यक्रम निदेशालय, जो परिषद् के निण्रयों को कार्यान्वित करने का काम करता है, माध्यमिक स्कूलों में विस्तार कार्यक्रमों के विकास के लिए उत्तरदायी है। इस निदेशालय का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह हुआ है कि इसने चुने हुए ५४ प्रशिक्षण संस्थानों में विस्तार सेवा विभाग स्थापित किए हैं जो अन्य कार्यों के साथ साथ माध्यमिक अध्यापकों के लिए सेवा में रहते हुए तथा पुनश्चर्या पाठ्यक्रम कार्यगोष्ठियों और सम्मेलनों का आयोजन भी करते हैं। माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में मंत्रालय द्वारा स्थापित अन्य संस्थान इस प्रकार हैं - केंद्रीय शिक्षा संस्थान - अनुसंधान और शिक्षक प्रशिक्षण के लिए, शिक्षा संबंधी और व्यावसायिक संदर्शन का केंद्रीय व्यूरो; पाठ्यपुस्तक अनुसंधान का केंद्रीय व्यूरो और माध्यमिक स्कूलों में अंग्रेजी शिक्षण के स्तर में सुधार के लिए अंग्रेजी का केंद्रीय संस्थान, हैदराबाद। (वेद प्रकाश )