शाह मंसूर, ख्वाजा युवावस्था में शिराज (ईरान) से भारत आया और अकबर के शाही इत्रकशी विभाग में मुख्य अफसर हो गया। लेकिन तुंरत बाद ही अकबर के दीवान मुजफ्फर खाँ से अनबन के कारण उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। तदनंतर वह जौनपुर के मुनीमखाँ खानखाना का दीवान हो गया।

मुनीमखाँ की मृत्यु के बाद राजा टोडरमल ने ख्वाजा को राजद्रव्य के दुरुपयोग के कारण जेल में डाल दिया। अकबर ने उसे दरबार में बुलवाया और दीवान बना दिया (१५७६)। १५७७ में उसे सादिकखाँ तथा अन्य सामंतों के साथ आगरे के शाही खजाने के निरीक्षण का भार सौंपा गया। उसी वर्ष वह जौनपुर की शाही टकसाल का निदेशक नियुक्त किया गया। १५८० में बंगाल के शाही अफसरों के विद्रोह पर वह जेल में बंद कर दिया गया; उस पर आरोप लगाया गया कि उसने राजस्व को बढ़ाने तथा फौजी अधिकारियों के भत्ते काटने का काम सख्ती से किया। १५८१ में ख्वाजा शाह मंसूर को मिर्जा हकीम से गुप्त गठबंधन के आरोप पर मृत्युदंड दिया गया।

शाह मंसूर को सैनिक अनुभव न थे, किंतु आर्थिक मामलों में उसकी गहरी पैठ थी।

सं. ग्रं. - अबुल फजल : अकबरनामा (बेवरिज़ द्वारा संपादित); आईन-ए-अकबरी (सर सैयद अहमद खाँ द्वारा संपादित); बदायूँनी : मुंतखवुत्तवारीख (भाग २); निजामुद्दीन: तवकातएअकबरी (भाग २); शाहनवाज खाँ : मआसिर-उल-उमरा (कलकत्ता, १८८८); रामप्रसाद त्रिपाठी : सम आस्पेक्ट्स ऑव मुस्लिम ऐडमिनिस्ट्रेशन (इलाहाबाद, १९५६), राइज ऐंड फाल ऑव द मुगल एंपायर। (इक्तिसार हुसैन सिद्दीकी)