शाहबाज गढ़ी सम्राट् अशोक के प्रधान शिलाभिलेखों में १४ प्रज्ञापन हैं जो मुख्यतया अब तक छह विभिन्न स्थानों पर पाए गए हैं। चौदहों प्रज्ञापनों की पांचवीं प्रतिलिपि पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के पेशावर जिले की युसुफजई तहसील में शाहबाजगढ़ी गाँव के पास एक चट्टान पर खुदी मिली है। यह पहाड़ी पेशावर से ४० मील उत्तरपूर्व है। मानसेहरा की तरह शाहबाजगढ़ी की प्रतिलिपियाँ खरोष्ठी लिपि में खुदी हैं, जो दाहिनी से बाईं ओर लिखी जाती है, शेष पाँचो स्थानों की प्रतिलिपियाँ ब्राह्मी लिपि में हैं।
इन चौदह प्रज्ञापनों की मुख्य बातें ये हैं -
(१) जीवहिंसा का निषेध एवं राजा के रसोईघर में खाय व्यंजनों में जीवहिंसा पर संयम; (2) सम्राट् अशोक के जीते हुए सब स्थानों में एवं विशेषकर सीमांत प्रदेशों में मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध; (3) अधिकारियों का धर्मानुशासन के लिए भी दौरा एवं आचार की सामान्य बातें, (4) धर्माचरण में शील का पालन, (5) लोगों को धर्माचरण की बातें बताने के लिए धर्ममहामात्यों क नियत किया जाना, (6) राजा के कर्तव्यपालन की बातें, (7) संयम, भावशुद्धि एवं विभिन्न धर्मों का आदर, (8) विहार यात्रा की जगह धर्मयात्रा पर सम्राट् का संकल्प, (9) निरर्थक मंगल कार्यों की जगह समाज में धर्ममंगल की बातों को प्रश्रय देना; (10) कर्तव्य कार्यों में धर्ममंगल की बातों का समावेश; धर्म के लिए विशेष प्रयत्न की अपेक्षा।
शेष प्रज्ञापनों में लोगों में समान एवं सम्मानपूर्वक व्यवहार अपने अपने धर्मों की अच्छी बातों का परिपालन, सत्व की बढ़ती, कलिंगयुद्ध के उपरांत युद्ध के लिए सम्राट् के मन में पश्चात्ताप एवं जीते हुए प्रदेशों में धर्मानुशासन के कार्य तथा विभिन्न स्थानों में धर्मादेशों के लिखाने की बातें हैं। (शां. प्र. रो.)