शालिवाहन शातवाहन का प्राकृत में अपभ्रंश शालिवाहन है। हेमचंद्र ने अपने 'देशीकोश' में शालिवाहन, सालन, हाल तथा कुंतल नामक किसी एक ही व्यक्ति का उल्लेख किया है, किंतु अंतिम दो नाम पर्यायवाची न होकर विभिन्न व्यक्तियों से संबंधित हैं जो शालिवाहन कुमार थे। शालिवाहन अथवा शातवाहन उस राज्यवंश का नाम है जिसने दक्षिण भारत में कई शताब्दियों तक राज्य किया और जिसका शक, पह्लव, तथा यवन राजाओं के साथ पश्चिमीदक्षिणी भारतीय क्षेत्र पर कई पीढ़ियों तक संघर्ष चलता रहा। इसी प्रसंग को लेकर बहुत सी किंवदंतियाँ भी प्रचलित हुईं। शालिवाहन नामक सम्राट् को शक संवत् का स्थापक भी माना जाता है। इसकी उत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि शालिवाहन प्रतिष्ठानपैथान की एक ब्राह्मण कन्या तथा शेष के संसर्ग से पैदा हुआ था। बड़े होने पर उज्जयिनी के शक सम्राट् ने इसे नष्ट करने के हेतु प्रतिष्ठान पर आक्रमण किया, पर शेष की सहायता से वह स्वयं पराजित हुआ। शालिवाहन का मंत्री गुणाढ्य था जिसने सात भागों में बृहत्कथा लिखी थी और वह इन्हें सम्राट् को अर्पित करना चाहता था। स्वीकृति न मिलने पर उसने छह भाग जला दिए। अंतिम भाग को शालिवाहन ने गुणाढ्य के शिष्यों से स्वयं जाकर लिया। इस शालिवाहन की समानता गौतमीपुत्र शातकर्णि से की गई है जिसने शक, यवन, तथा पह्लव शासकों को हराया था तथा नहपान के वंश को नष्ट कर दिया था। लगभग तीन चार सौ वर्षों से शक संवत् को शालिवाहन शक संवत् के नाम से संबोधित किया जाने लगा है।
सं. ग्रं. - भंडारकार-आर. जी.-अर्ली हिस्ट्री ऑव डेकन; शास्त्री के. एन.-कांप्रीहेनसिव हिस्ट्री ऑव इंडिया-भाग २। (बैजनाथ पुरी)