शाकद्वीपीय अथवा शाकद्वीपी भारतीय वर्णव्यवस्था के अंतर्गत ब्राह्मणों का एक वर्ग है। इनके पूर्वज मूलत: शकद्वीप के निवासी थे। महाभारत तथा पुराणों में सप्तद्वीपा पृथ्वी (वसुमति) के वर्णन आते हैं। उनमें एक शकद्वीप अथवा शाकद्वीप भी था। उसकी स्थिति कहाँ थी, इसका एकमत से निरूपण नहीं हो सका है। परंतु इतना तो निश्चित है कि शकद्वीप शक नामक जाति के निवासक्षेत्र था। हीरोदोतस, दियोदोरस और स्ट्रैबो आदि ग्रीस और रोम के इतिहासकारों ने सीथिया (स्किदिया) की चर्चा की है। पर वही शकद्वीप था, यह अधिकांश विद्वानों के मत में अस्वीकार्य है। कभी कभी शकों को ईरानी और तूरानी जातियों से भी मिलाया जाता है। पारसीक अभिलेखों में शर्कों का निवास सिर दरया और आमू दरया के मैदानों में ज्ञात होता है और ऐसा विश्वास किया जाता है कि वे शक वहाँ से हटकर पूर्वी फारस और पश्चिमी अफगानिस्तान में चले आए। शकों के निवास का यह वही क्षेत्र है, जिसे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों और कुछ अभिलेखों में शकस्थान, मध्यकालीन फारसी उद्धरणों में सिजिस्तान और आजकल सीस्तान कहा जाता है। चीनी इतिवृत्तों से ज्ञात होता है कि शक लोग प्रारंभ में आधुनिक काशगर के आसपास रहते थे पर ईसा पूर्व दूसरी शती में यू ची नामक जाति द्वारा वहाँ से हटाए जाने पर अफगानिस्तान और फारस की सीमाओं से होते हुए उन्होंने भारतवर्ष में प्रवेश किया। सैनिक आक्रमणकारी और राजनीतिक विजेता होते हुए भी यहाँ की संस्कृति द्वारा वे जीते गए और भारतीय समाज में मिला लिए गए। संभवत: वर्णविभाजन उनमें पहले से ही था और भारतीय वर्णव्यवस्था स्वीकार करते उन्हें देर न लगी। ब्राह्मणों में उनका एक विशेष वर्ग ही हो गया, जिसे आज 'शाकद्वापी' अथवा शाकद्वीपीय ब्राह्मण कहते हैं। बिगड़े हुए रूप में ये ही सकलदीपी या 'साकलदीपी' कहलाते हैं। ये सारे उत्तरी भारत में फैले हुए हैं। इन्होंने वैद्यक शास्त्र में विशेष सफलता पाई।

सं. ग्रं. - दि. चं. सरकार : स्टडीज इन दि जियाग्रॉफी ऑव ऐंशेंट ऐंड मेडिवल इंडिया, पृ. १६३; मजुमदार और पुस लकर (संपादित) : 'दि एज ऑव इंपीरियल यूनिटी, पृष्ठ १२०; है. रायचौधुरी : पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव ऐशंट इंडिया, पृ. ४३१-४३६। (विवेकानंद पांडेय)