शाइस्ता खाँ मीर जुमला की मृत्यु (मार्च, १६६३ ई.) के बाद औरंगजेब का मामा शाइस्ता खाँ बंगाल का गवर्नर बनाया गया। उसने इस पद पर लगभग तीस वर्ष तक कार्य किया। औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ को दक्षिण का भी गवर्नर बना दिया था। इस समय मराठों का सरदार शिवाजी दिन पर दिन अपनी शक्ति बढ़ा रहा था। शाइस्ता खाँ को शिवाजी की कारवाइयों को दबाने का आदेश दिया गया। शाइस्ता खाँ ने पूना पर अधिकार कर लिया, कल्याण के जिले से मराठों को खदेड़ दिया तथा चाकन के दुर्ग को जीत लिया। शिवाजी बीजापुर से सुलह करके निश्चित हो जाने पर अप्रैल, १६६३ की एक रात में शाइस्ता खाँ के पूना के निवासस्थान में चुपके से घुस गया। हरम के कई अधिकारियों आदि की हत्या करके उसने शाइस्ता खाँ पर आक्रमण किया। शाइस्ता खाँ बाल बाल बच गया। पर इस चक्कर से उसे अपना एक अँगूठा गँवा देना पड़ा। इस कांड के बाद भी शिवाजी सुरक्षित बचकर निकल गया।
समुद्री डाकुओं का अस्तित्व मिटाने के लिए शाइस्ता खाँ ने पुर्तगाली समुद्री डाकुओं पर आक्रमण करके बंगाल की खाड़ी में स्थित उनके मुय अड्डे सोन द्वीप पर अपना अधिकार कर लिया। इसके अतिरिक्त सन् १६६६ में इन डाकुओं के मित्र, अराकान के राजा, से उसने चटगाँव भी छीन लिया था। पर शाइस्ता खाँ का यह प्रयत्न बहुत सफल सिद्ध नहीं हुआ और अट्ठारहवीं शताब्दी तक समुद्र डाकुओं का अस्तित्व बना रहा।
सन् १६७२ में शाइस्ता खाँ ने ईस्ट इंडिया कंपनी को एक 'फरमान' प्रदान किया। इस फरमान के द्वारा कंपनी को बंगाल में व्यापार संबंधी करों से मुक्त कर दिया गया। दो वर्ष बाद उसने फ्रांसीसियों को बंगाल में चंद्रनगर नामक स्थान पर फैक्ट्री बनाने की अनुमति दे दी। फ्रांसीसियों ने इस स्थान पर अपनी प्रसिद्ध फैक्ट्री बनाई। सन् १६९४ में शाइस्ता खाँ का देहांत आगरा में हुआ। ( मिथिलेश चंद्र पांड्या)