शशक (Rabbit) स्तनीवर्ग श्रेणी का एक प्राणी है। यह छोटा, डरपोक तथा भोला भाला प्राणी है। यह एक फुट लंबा होता है और बहुत ही मुलायम बालों से ढँका रहता है। इसका शरीर चार भागों में बाँटा जा सकता है : (क) सिर (ख) गर्दन, (ग) धड़ तथा (घ) पूँछ। ऊपरवाला ओष्ठ बीच में फटा होता है, जिससे कड़ा भोजन कुतरते समय शशक को कोई चोट नहीं आती। कर्णपल्लव (कान का लौर) लंबे, मुड़े हुए और ऊपर की ओर नुकीले होते हैं, जो स्वेच्छा से हिलाए जा सकते हैं। मेढक की भाँति शशक की पिछली टाँगें बहुत लंबी होती हैं। इनके द्वारा वह उछलता कूदता चलता है, अथवा छलाँग मारता है। इसकी दुम छोटी होती है और खतरे के समय झुंड के अन्य सदस्यों को खतरे का संकेत देने के काम आती है।

शशक एक सर्वपरिचित जानवर है और प्राय: सभी देशों में पाया जाता है। इसका आदि निवास भूमध्यसागर (Mediterranean sea) के किनारेवाले देशों में रहा है, जहाँ से यह अन्य देशों में स्वयं, अथवा मनुष्यों द्वारा , संसार के विभिन्न भागों में प्रसारित हो गया है। यह भारत में प्राय: सभी भागों में पाया जाता है और आसानी से पाला जा सकता है। वैसे इसका प्राकृतिक निवासस्थान जंगलों में है, जहाँ यह कच्ची भूमि में सुरंग या माँद खोदकर रहता है। यह शाकाहारी होता है। खेतों में घुसने पर कृषि को बड़ी हानि पहुँचाता है।

शशक की औसत आयु आठ वर्ष होती है और जब छह मास का रहता है तभी से जनन प्रारंभ कर देता है। मादा साल में चार या पाँच बार बच्चे देती है, और प्रत्येक बार पाँच से आठ बच्चे होते हैं। कुछ ही कल में इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है। पैदा होने के समय बच्चे बालरहित, अंधे तथा स्वतंत्र रूप से चलने और भोजन ढूँढ़ने में असमर्थ होते हैं। माँ के स्तन से बच्चे दूध पीते हैं और दूध पर ही पलते हैं। बच्चे लगभग तीन सप्ताह में बड़े होकर देखने लग जाते हैं। इनके शरीर पर मुलायम बाल उग आते हैं और वे शाकाहारी हो जाते हैं।

शशक की तीव्र घ्राण, तीक्ष्ण श्रवण तथा व्यापक दृष्टिशक्ति शत्रुओं से रक्षा पाने के साधन हैं, क्योंकि इन शक्तियों के कारण यह बहुत ही चौकन्ना रहता है, और ज्यों ही किसी शत्रु का भान होता है, बड़ी लंबी लंबी छलांगें मारकर भाग खड़ा होता है। कुत्ते, लोमड़ियाँ बिल्लियाँ, बिज्जू तथा बाज अथवा शिकरा आदि, इसके मुख्य शत्रु है। इसका मांस स्वादिष्ट होता है, अत: मनुष्य भी इसका शिकार करते हैं। शशक अपने शत्रुओं से बचने के लिए प्राय: गोधूलि के समय ही चरने निकलते हैं।

शशक की अनेक उपजातियाँ हैं। पालतू अवस्था में जनन करने के कारण, इनके स्वभाव तथा आकृति में संशोधन हो गया है : जंगली शशक से मनुष्य ने पालतू शशक का परिवर्धन किया है।

पालतू शशक के समान जंगलों और खेतों में एक दूसरी जाति भी मिलती है, जिसको सामान्यत: खरहा कहते हैं। खरहे का रंग भूरा, और कत्थई होता है, जिसके कारण इसका झुरमुट में पता लगाना कठिन होता है। यह शशक की भाँति झुंड में न रहकर अकेला रहता है और बिल या सुंरगें नहीं खोदता, वरन् झाड़ियों में छिपा रहता है। इसकी बाह्य रचना शशक से भिन्न होती है। शशक तथा खरहे की आंतरिक रचना में भी अंतर होता है। (भृगुनाथ प्रसाद)