शम्सुद्दीन तुर्क (पानीपती) हज़रत शैख शम्सुद्दीन तुर्क (पानीपती) बिन सैयद अहमद बुजुर्ग का जन्म तुकिंस्तान में हुआ। विद्यार्जन कर चुकने के उपरांत ईश्वर मार्ग की जिज्ञासा में जन्मभूमि से निकल पड़े और मवारुन्नहर के अनेक सूफियों की सेवा में रहकर उन्होंने अध्यात्मवाद की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् भारतवर्ष पधारे तथा अजोधन में आकर हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंजेशकर से दीक्षा ली। खिलाफत का ख़िर्का भी प्राप्त किया। उन्होंने सुल्तान ग़्याासुद्दीन बलबन की सेना में कुछ समय तक नौकरी की थी। दीक्षागुरु की मृत्यु से पहले वह नौकरी से त्यागपत्र देकर उनकी सेवा में पहुँच गए। फिर वे पानीपत गए और वहाँ अपनी खानक़ाह स्थापित कर धर्मप्रचार करने लगे तथा हजारों व्यक्तियों में अध्यात्मवाद की शिक्षाएँ प्रसारित कीं। उन्होंने साबिरिया संप्रदाय को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनका स्वर्गवास ७१५/१३१५ में हुआ। समाधि पानीपत में है और उससे मिली हुई एक भव्य मस्जिद भी है।
सं. ग्रं. - शैख अल्लाह दिगा चिश्ती : सैरुल अक़ताय (नवलकिशोर, लखनऊ, १९३१) १८४-१९७; मौलवी गुलाम सर्वर लाहौरी : खज़ीनतुल अस्फ़िया (नवलकिशोर) १,३२१-३२५; शैखगुलाम; मुईनुद्दीन अब्दुल्ला (खलीफ़ा खेशजी चिश्ती): मआरिज्-उल-विलायत (हस्तलिपि); खलीक अहमद निज़ामी : तारीखे मशायखे चिश्त (दिल्ली, १९५३) २१५-२१६; मौलाना सैयद मुहम्मद मियाँ : पानीपत और बुजुर्गाने पानीपत (दिल्ली) १७१-१६९। (मुहम्म्द उमर )