शम्स सिराज अफ़ीफ़ का जन्म लगभग १३५०-५१ ई. में हुआ था। उसके प्रपितामह मलिक सादुल मुल्क शिहाब अफ़ीफ़ को फ़ीरोज़पुर के अबूहर नामक स्थान पर सुल्तान गयासुद्दीन तुग़्लाक़ द्वारा एक पद प्राप्त था। उसके पिता भी सुल्तान पिता भी सुल्तान फ़ीरोज शाह के दरबार में विभिन्न पदों पर आसीन रह चुके थे। वह सुल्तान के साथ जाजनगर तथा नगरकोट के अभियान पर भी गया था। शम्स सिराज अफ़ीफ़ भी सुल्तान फ़ीरोज शाह के दरबार में दीवाने विज़ारत के अधिकारियों के साथ सुल्तान के अभिवादन हेतु जाया करता था। जब सुल्तान फ़ीरोज शाह शिकार खेलने जाता तब भी अफ़ीफ़ उसके साथ होता था। इस प्रकार यह दावा सच है कि उसे फ़ीरोज शाह के समस्त राज्यकाल का पूर्ण ज्ञान था। उसके ज्ञान में उसके पिता तथा दादा एवं अन्य संबंधियों की जानकारी के अनुसार भी वृद्धि हुई थी। उसने केवल एक ही ग्रंथ लिखा जिसका नाम तारीखे फ़ीरोजशाही है। इस ग्रंथ में उसने मनाक़िबे सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक़, मनाक़िबे सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़्लाक तथा मनाक़िबे सुल्तान मुहम्मद इब्ने फ़ीरोज का उल्लेख किया है। इससे यह न समझना चाहिए कि उसने इन सुल्तानों का कोई पृथक् इतिहास लिखा अपितु दिल्ली के तुर्क सुल्तानों का कोई बृहत् इतिहास लिखा होगा जिसमें उपर्युक्त तुग़्लाक सुल्तानों का भी इतिहास दिया होगा। अब ये अंश नहीं मिलते। केवल तारीखे फ़ीरोजशाही प्राप्त है जो इसी बृहत् इतिहास का एक भाग प्रतीत होता है। सुल्तान फ़ीरोज शाह के इतिहास की रूपरेखा के विषय में वह लिखता है, ''बरनी ने सुल्तान का हाल १०१ अध्यायों में लिखता निश्चय किया था किंतु वह केवल ११ अध्याय ही लिख सका। क्योंकि वह उसे पूरा न कर सका अत: इस इतिहासकार ने इसमें ९० अध्याय लिखे हैं। यह ५ किस्मों (भागों) में विभाजित है और प्रत्येक भाग में १८ अध्याय है।'' खेद है, उसके ५वें भाग के भी केवल १५ अध्याय मिलते हैं और शेष ३ अध्यायों का पता नहीं।
अफ़ीफ़ ने अपने इतिहास में सुल्तान फ़ीरोज के जन्म से लेकर मृत्यु तक का विवरण दिया है। वह सुल्तान की धर्मनिष्ठता एवं मृदुलता से अत्यधिक प्रभावित था और उसने उसे एक आदर्शवादी मुसलमान बादशाह के रूप में प्रस्तुत किया है। सुल्तान के सार्वजनिक निर्माणकार्यों, भवनों, नहरों इत्यादि के निर्माण से वह अपने समकालीनों की भाँति प्रभावित था। उसने भुगतन के अमीरों तथा मुख्य पदाधिकारियों का भी बड़ा विशद विवरण दिया है, किंतु इतिहासहार के लिए जो निष्पक्षता आवश्यक है, उसका उसमें अभाव था। काव्यमयी भाषा के प्रयोग ने भी उसके विवरण के महत्व को बहुत घटा दिया है।
सं. ग्रं. - तारीखे फीरोजशाही (कलकत्ता १८९० ई.); रिजवी, सै. अ. अ. : तुग़्लाुक़ कालीन भारत, भाग २, (अलीगढ़ १९५७ ई.)।
(सैयद अतहर अब्बास रिज़वी)