शतरूपा स्वायंभुव मनु की स्त्री जिनका जन्म ब्रह्मा के वामांग से हुआ था (ब्रह्मांड. २-१-५७)। इन्हें प्रिय्व्रात, उत्तानपाद आदि सात पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुईं। नरमानस पुत्रों के बाद ब्रह्मा ने अंगजा नाम की एक कन्या उत्पन्न की जिसके शतरूपा, सरस्वती आदि नाम भी थे। मत्स्य पुराण में लिखा है कि ब्रह्मा से इसे स्वायंभुव मनु, मारीच आदि सात पुत्र हुए (मत्स्य. ४-२४-३०) हरिहरपुराणानुसार शतरूपा ने घोर तपस्या करके स्वायँभुव मनु को पति रूप में प्राप्त किया था और इनसे वीर नामक एक पुत्र हुआ।

मार्कंडेयपुराण में शतरूपा के दो पुत्रों के अतिरिक्त ऋद्धि तथा प्रसूति नाम की दो कन्याओं का भी उल्लेख है। कहीं कहीं एक और तीसरी कन्या देवहूति का भी नाम मिलता है। शिव तथा वायुपुराणों में दो कन्याओं प्रसूति एवं आकूति का नाम है। वायुपुराण के अनुसार ब्रह्म शरीर के दो अंश हुए थे जिनमें से एक से शतरूपा हुई थीं। देवीभागवत आदि में शतरूपा की कथाएँ कुछ भिन्न दी हुई हैं। ((स्वर्गीय) रामाज्ञा द्विवेदी)