शक्ति और शक्तिसंचरण (Power and Power Transmission) शक्ति शब्द का प्रयोग मानवनियंत्रित ऊर्जा को जो यांत्रिक कार्य करने के लिए प्राप्य हो, सूचित करने के लिए किया जाता है। शक्ति के मुख्य स्रोत (source) हैं : मनुष्यों एवं जानवरों की पेशीय ऊर्जा (muscular energy), सरिता एवं वायु की गतिज ऊर्जा, उच्च सतहों पर स्थित जलाशय की स्थितिज (potential) ऊर्जा, लहरों एवं ज्वारभाटा की ऊर्जा, पृथ्वी एवं सूर्य की ऊष्मा ऊर्जा, ईधंन को जलाने से प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा आदि। पालतू जानवरों की शक्ति का उपयोग मानवीय सभ्यता का प्रथम कदम था। बाद में क्रमश: विभिन्न प्रकार की शक्तियों को उपयोग में लाने के लिए प्रयास किए जाते रहे। अभी भी अधिक से अधिक शक्तियों को नियंत्रित करने में वैज्ञानिक व्यस्त हैं एवं प्रयत्न जारी है।

ऊपर लिखे गए शक्तिस्रोतों में वायु, लहर, एवं सूर्य द्वारा प्राप्त शक्तियाँ आंतरायिक (intermittent) होती हैं और यही इन सब का सबसे बड़ा अवगुण है, क्योंकि शक्ति की माँग यदि संतत (continuous) हो, तो इस प्रकार की शक्तियों को उपयोग में लाने के लिए इनके संग्रह की व्यवस्था करनी होगी। शक्ति संयंत्र (plant) के आकार एवं कीमत को ध्यान में रखते हुए, बड़े पैमाने (large scale) पर शक्तिजनन की अवस्था में वायु, लहर तथा सूर्य द्वारा प्राप्त शक्ति का उपयोग लाभप्रद नहीं होता है। कुछ स्थानों में बड़े पैमाने पर शक्तिजनन के लिए ज्वारभाटा की शक्ति का उपयोग किया जा सकता है, किंतु इस प्रकार के संयंत्र के निर्माण में व्यय अत्यधिक होता है।

वैज्ञानिकों द्वारा 'शक्ति' शब्द का प्रयोग ऊर्जासंचरण की दर के लिए किया जाता है। सामान्य व्यवहार में शक्ति की ईकाई अश्वशक्ति है। फुट-पाउंड-सेकंड प्रणाली में एक अश्वशक्ति का अर्थ होता है, ५५० फुट-पाउंड-प्रति सेकंड की दर से संचरण, एवं मीट्रिक प्रणाली में एक मीट्रिक अश्वशक्ति का अर्थ होता है, ७५ किलोग्राम मीटर प्रति सेकंड की दर से संचरण।

ऊर्जा के प्राकृतिक स्रोतों को उपयोग में लाने के लिए अधिष्ठापन (installation) द्वारा संबंधित उपकरण तीन वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं : (१) मूल चालक, जिसकी सहायता से प्राकृतिक ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है। इस प्रकार के वर्ग में भाप इंजन, भाप टरबाइन, जल टरबाइन, गैस टरबाइन, गैस इंजन, तेल इंजन आदि आते हैं, (२) किसी भी प्रकार का यंत्र, जो मूल चालक द्वारा प्राप्त ऊर्जा से चलाया जाता हो। वस्तुत: इस वर्ग में वे सभी प्रकार के यंत्र, जैसे सभी मशीन औजार (machine tools), पंप (pump) यंत्र, लिफ्ट (lift), क्रेन (crane) आदि आते हैं, जिन्हें चलाने के लिए अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा (३) वे उपकरण, जिनकी सहायता से मूल चालक द्वारा प्राप्त ऊर्जा यंत्रों को प्रेषित की जाती है।

प्राय: मूल चालक उन स्थानों में, जहाँ ऊर्जा के प्राकृतिक स्रोत प्रचुर मात्रा में प्राप्य हों, स्थापित किया जाता है, जैसे जलप्रपात के निकट या कोयले की खानों के क्षेत्र में। जलप्रपात या प्राकृतिक जल के स्रोत, जैसे नदी, झील आदि के निकट द्रवचालित (hydraulic) शक्ति संयंत्र की, जिसें जल की ऊर्जा जल टरबाइन द्वारा यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित की जाती है, स्थापना की जाती है। दामोदर घाटी योजना के अंतर्गत इस प्रकार के संयंत्र की स्थापना, बिहार राज्य के धनवाद जिले में माइथान एवं पंचेत, और हजारीबाग जिला में तिलैया नामक स्थानों पर की गई है। इस प्रकार के संयंत्र भारत में विभिन्न स्थानों पर स्थापित किए गए हैं, जैसे भाखरा नंगल, हीराकुंड, तुंगभद्रा, रिहंद आदि। कोयले की खानवाले क्षेत्रों में कोयले द्वारा प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा को, ऊष्मीय शक्तिसंयंत्र में भाप टरबाइन, या भाप इंजन द्वारा यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। इसके लिए कोयले को जलाकर वाष्पित्र (boiler) में भाप तैयार की जाती है और इस भाप का उपयोग मूल चालक, जैसे भाप टरबाइन या भाप इंजन को चलाने के लिए किया जाता है। इस तरह के ऊष्मीय शक्तिसंयंत्र बोकारो (बिहार राज्य) एवं दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में हैं। उपर्युक्त प्रकार के द्रवचालित एवं ऊष्मीय शक्तिसंयंत्र द्वारा प्राप्त ऊर्जा विपुल परिमाण में बहुत दूरी पर स्थित कल कारखानों आदि में संचारित की जाती है। इस तरह के शक्तिसंचरण की अवस्था में शक्तिवितरण के तरीके एवं उपकरण अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि मूल चालक से उन स्थानों की दूरी, जहाँ यंत्रों द्वारा ऊर्जा का उपयोग होता है, वितरण की दक्षता पर निर्भर करती है।

कुछ कारखानों में मूल चालक द्वारा प्राप्त ऊर्जा निकटवर्ती यंत्रों में ही संचारित की जाती है। इस अवस्था में तेल द्वारा चालित मूल चालक, जैसे तेल इंजन, का प्रयोग अधिक होता है। इसमें संचरणयंत्र का अधिक महत्व रहता है, क्योंकि संचरण की दक्षता पूरे संयंत्र की दक्षता को प्रभावित करती है। कभी कभी मूल चालक को यंत्र से इस तरह जोड़ दिया जाता है कि संचरण उपकरण सुगमतापूर्वक मूल चालक, या यंत्र से अलग नहीं किया जा सकता। इस वर्ग में रेल इंजन आदि आते हैं।

शक्तिसंचरण के विभिन्न तरीके हैं : (१) यांत्रिक तरीके, (२) द्रवचालित तरीके, (३) वैद्युत तरीके तथा (४) वाति प्रणाली।

शक्तिसंचरण के यांत्रिक तरीके - शक्ति का यांत्रिक संचरण पट्टे (belt) या रज्जु (rope) की सहायता से शैफ्ट (shaft) द्वारा, अथवा यंत्रिचक्र (wheel gearing) और जंजीर (chain) की सहायता से होता है। परिस्थिति के अनुसार शक्ति को संचारित करने के लिए ये तरीके अलग अलग, या एक दूसरे के साथ, व्यवहृत किए जाते हैं। मूल चालक के अनुसार शक्तिसंचरण के यांत्रिक उपकरणों का अभिकल्प एवं निर्माण किया जाता है।

मूल चालक के गतिपालक चक्र (flywheel) पर लगे हुए पट्टे द्वारा, शक्ति को रेखा शैफ्ट (line shaft) में संचारित किया जाता है। रेखा शैफ्ट पर अभिकल्प के अनुसार घिरनियाँ (pulleys) लगी रहती हैं। उन घिरनियों पर लगे हुए पट्टे द्वारा शक्ति को रेखाशैफ्ट से विभिन्न यंत्रों में संचारित किया जाता है। इस प्रकार की प्रणाली में सबसे बड़ा अवगुण यह है कि किसी भी कारणवश रेखाशैफ्ट का चलना बंद होते ही सभी यंत्र, जिन्हें रेखाशैफ्ट से शक्ति संचरित की जाती है, बेकार हो जाते हैं।

इस प्रकार के शक्तिसंचरण का मात्रात्मक विश्लेषण करने के लिए इंजन के क्रैंक शेफ्ट को संचरण का आरंभ बिंदु एवं यंत्र के प्रथम गतिमान शैफ्ट को संचरण का अंतिम बिंदु मान लिया जाता है। यह अनुमान विशिष्ट यत्र के लिए उपयुक्त है। मान लिया कि इंजन की गति N परिक्रमण (revolutions) प्रति मिनट है। इस गति पर चलते हुए इंजन क्रैंकशैफ्ट पर लगातार बल आधूर्ण (torque) डालता रहता है। मान लिया कि बल आधूर्ण की मात्रा T किलोग्राम प्रति मीटर है। इस अवस्था में इंजन की कोणीय (angular) गति w, का मूल्य होगा २ p N/60। यहाँ w की ईकाई रेडियन प्रति सेकंड है। अत: इंजन क्रैंक शैफ्ट द्वारा किए गए कार्य की दर Tw किलोग्राम प्रति मीटर प्रति सेकंड है, अर्थात् क्रैंक शैफ्ट द्वारा Tw/७५ मैट्रिक अश्वशक्ति प्राप्त होती है। सुविधा के लिए मान लिया, क्रैंक शैफ्ट से प्राप्त संपूर्ण शक्ति एक ही यंत्र को संचरित होती है। मान लिया, उस यंत्र पर डाला जानेवाला बल आघूर्ण T किलोग्राम प्रति मीटर है और w रेडियन प्रति सेकंड यंत्र की कोणीय गति है, तब उस यंत्र द्वारा प्राप्त ऊर्जा की दर होगी T1w किलोग्राम मीटर प्रति सेकंड। घर्षण एवं अन्य अवरोधों को अभिभूत (overcome) करने के लिए ऊर्जा का कुछ अंश संचरणयंत्र द्वारा अवशोषित (absorbed) होता है। यदि ऐसा नहीं हो, तो यंत्र द्वारा ऊर्जा अवशोषण की दर मूल चालक द्वारा उत्पन्न ऊर्जा की दर के समतुल्य होगी। किंतु व्यवहार में ऐसा नहीं होता है, इसलिए वास्तव में T1w का मूल्य Tw के मूल्य से अवश्य कम होगा। यदि संचरण की दक्षता h हो तो T1 w = h (T w) होगा।

अब हम संचरण के विभिन्न अंगों का अध्ययन करेंगे :

शैफ्ट - जब एक शैफ्ट मूल चालक से किसी यंत्र को शक्ति संचरित करता है, तो इसके प्रत्येक अनुभाग (section) को बलआघूर्ण का सामना करना पड़ता है। यदि बलआघूर्ण की मात्रा T किलोग्राम प्रति मीटर हो तथा शैफ्ट w रेडियन प्रति सेकंड के कोणीय गति से घूम रहा हो, तो संचरण की दर T w किलोग्राम मीटर प्रति सेकंड होगी। शैफ्ट का डिजाइन बनाते समय, उसके आकार एवं परिमाण का पता लगाना होता है। इस संबंध में यह ध्यान दिया जाता है कि बलआघूर्ण द्वारा उत्पन्न प्रतिबल एक विशिष्ट सीमा के अंदर ही रहे। शैफ्ट का डिजाइन कभी कभी इस आधार पर भी किया जाता है कि शैफ्ट के अक्ष से लंबकोणीय स्थित दो अनुभागों के आपेक्षिक कोणीय विस्थापन (displacement) का मान एक विशिष्ट कोण से कम ही रहे। स्थिति के अनुसार डिजाइन के लिए प्रथम या द्वितीय विधि का चुनाव किया जाता है। प्रथम डिजाइन विधि में निम्नलिखित समीकरण व्यवहृत होता है :

D3 =

जहाँ D ठोस गोलाकार शैफ्ट का व्यास, T बलआघूर्ण एवं f अधिकतम अपरूपक प्रतिबल (shear stress) है।

द्वितीय विधि में व्यवहृत समीकरण निम्नलिखित है :

D4 =

जहां १ दो अनुभागों के बीच की दूरी, G दृढ़ता मापांक (modulus of rigidity) है एवं q दोनों अनुभागों के बीच आपेक्षिक कोणीय विस्थापन है।

इस संबंध में यह ध्यान देने योग्य बात है कि उपर्युक्त दोनों समीकरण केवल ठोस गोलाकार शैफ्ट एवं एकसमान (uniform) बलआघूर्ण के लिए ही उपयुक्त हैं। खोखले गोलाकार शैफ्ट के लिए उपर्युक्त दो समीकरणों के स्थान पर निम्नलिखित समीकरण व्यवहार में लाए जाते हैं :

T = एवं T =

श्जहाँ D, d खोखले गोलाकार शैफ्ट के क्रमश: बाहर एवं अंदर के व्यास हैं।

अन्य आकारवाले शैफ्ट के लिए ऊपर बताए गए समीकरण व्यवहार में नहीं लाए जा सकते हैं। विभिन्न आकारवाले शैफ्ट के लिए विभिन्न समीकरण निगमित (deduced) किए जाते हैं और उनका प्रयोग डिजाइन बनाने के लिए किया जाता है। जैसा ऊपर बताया जा चुका है, साधारणत: यह अनुमान कर लिया जाता है कि मरोड़ एक समान होगा, किंतु वस्तुत: मरोड़ का मान सर्वदा परिवर्तित होता रहता है, य एक समान नहीं रह पाता है। परिवर्तित अवस्थाओं के लिए अपरूपक प्रतिबल का मान उसी के अनुसार चुना जाता है। इन विषमताओं के अलावा एक बात और ध्यान देने योग्य है कि किसी भी शैफ्ट को केवल मरोड़ का ही सामना नहीं करना पड़ता है, वरन् मरोड़ के साथ ही बंकन आघूर्ण (bending moment) का भी सामना करना पड़ता। इस तरह वास्तव में शैफ्ट का डिजाइन बनाना उतना सरल नहीं है जितना लगता है। शैफ्ट का डिजाइन बनाते समय, इन सारी विषमताओं को ध्यान में रखना पड़ता है एवं अवस्थानुसार उसके परिमाण का मान करना होता है।

कभी कभी एक ही शैफ्ट से विभिन्न यंत्रों को शक्ति प्रेषित की जाती है। ऐसे यंत्रों को अलग अलग स्थानों पर स्थापित किया जाता है एवं ये सारे यंत्र शैफ्ट के विभिन्न भागों से शक्ति प्राप्त करते हैं। शक्तिसंचरण की इस अवस्था में स्वभावत: मूल चालक के निकटतम शैफ्ट के भाग को संपूर्ण शक्ति संचारित करनी होती है एवं ज्यों ज्यों अन्य यंत्र शैफ्ट के विभिन्न भागों से शक्ति प्राप्त करते जाते हैं, त्यों त्यों शैफ़्ट द्वारा संचरित शक्ति कम होती जाती है। इसलिए मूल चालक के निकटतम शैफ्ट के भाग की शक्ति का परिमाण अधिकतम होगा और शैफ्ट के विभिन्न भागों की दूरी के अनुसार शक्ति का परिमाण भी कम होता जाएगा।

दंति या गियर चक्र - एक शैफ्ट से दूसरे शैफ्ट को शक्ति संचारण करने के लिए दंतिचक्र (चित्र १.) का व्यवहार होता है। दो शैफ्ट

चित्र १.

समांतर अवस्था में रखे जाते हैं, या एक दूसरे से कुछ कोण पर झुके रहते हैं। प्रथम अवस्थावाले चक्र स्पर गियर (spur gear) तथा दूसरी अवस्थावाले चक्र बेवेल गियर (Bevel gear) कहलाते हैं। गियर का डिजाइन बहुधा स्थिर गति अनुपात के लिए किया जाता है किंतु कभी कभी विशिष्ट यंत्रों के लिए परिवर्ती गति के अनुमान के आधार पर भी गियर का डिजाइन बनाना होता है। शैफ्ट की तरह दंतिचक्र का परिमाण भी बलआघूर्ण पर निर्भर करता है। शक्तिसंचरण के लिए दंतिचक्र का व्यवहार इन स्थानों में किया जाता है, जैसे जहाज में स्थित, उच्चगति भाप टरबाइन से निम्न गति प्रणोदक में शक्तिसंचरित करने में तथा मोटर गाड़ी में व्यवहृत गियर बॉक्स (gear box) आदि में। दंतिचक्र का निर्माण करते समय विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि अंतराल की एक समानता अत्यधिक शुद्धता से प्राप्त हो। यदि अंतराल एक समान न हो, तो दंतिचक्रों द्वारा उच्च गति पर अत्यधिक कोलाहल होगा, जो अवांछनीय है। अत: आधुनिक प्रविधि में दंतिचक्रों को कठोर बनाकर सूक्ष्म पेषणचक्की (grinder) द्वारा यथार्थ अंतराल और आकार में पेषित किया जाता है।

पट्टा - शक्तिसंचरण में साधारणतया यह भी व्यवहार में लाया जाता है। इसके लिए दो घिरनियों पर पट्टे को चढ़ाया जाता है। जब घिरनी एक समान गति पर घूमती है, तब एक घिरनी से दूसरी घिरनी में शक्ति संचरित होती रहती है। इस अवस्था में पट्टा एक तरफ कड़ा रहता है और दूसरी तरफ ढीला, किंतु दोनों तरफ तनाव की ही स्थिति रहती है। यदि T1 और क्रमश: T2 पट्टे के कड़े एवं ढीले भाग का तनाव बल हो (चित्र २.), q रेडियन में स्पर्श का चाप

चित्र २.

और m पट्टे एवं घिरनी का घर्षण गुणांक हो, तो T1 / T2 = emq होता है। पट्टे का डिजाइन बनाते समय इस समीकरण का सर्वप्रथम उपयोग कर, अधिकतम तनाव बल T1 का मान ज्ञात किया जाता है। फिर दिए गए अश्वशक्ति को दी हुई गति पर प्रेषित करने के लिए पट्टे के आकार और परिमाण का डिजाइन बनाया जाता है।

शृंखला या जंजीर - शक्ति का संचरण करनेवाले यंत्रों में शृंखला का स्थान भी महत्वपूर्ण है। इसके मुख्य गुण ये हैं : (१) अत्यंत उच्च दक्षता, (२) उच्च गति की प्राप्ति (३) उत्क्रमणीयता (reversibility), (४) विस्तृत शक्तिप्रेषण सीमा, (५) सर्पण (Slip) का कम भय तथा (६) ऊष्मा या शीत से प्रभावित नहीं होना। विभिन्न प्रकार की शृंखलाएँ, जो व्यवहार में आती हैं, उनमें से मुख्य ये हैं : (१) वियोज्य, आघातवर्धनीय लौह

चित्र ३.

(detachable malleable iron) शृंखला - इस प्रकार की शृंखला अघातवर्धनीय लोहे की कड़ियों को जोड़कर बनाई जाती है। इसका डिजाइन इस प्रकार बनाया जाता है कि संयोजन (assembly) में सुविधा हो। इस प्रकार की शृंखला का व्यवहार अधिकतर ४० घूर्ण प्रति मिनट एवं गति अनुपात ५ और १ की अवस्था में होता है, (२) इस्पात बेलन (roller) शृंखला - प्रथम प्रकार की शृंखला निम्नगति के योग्य है। आधुनिक युग उच्च गति का युग है। इसलिए उच्च गति पर शक्ति प्रेषित करने के लिए इस्पात की शृंखला हल्की बनावट की होती है एवं इसमें अंतराल बहुत यथार्थ रखा जाता है। इसके निर्माण में मध्यम-कार्बन-ऊष्माबेल्लित इस्पात का उपयोग किया जाता है। इस शृंखला ७०० घूर्ण प्रति मिनट एवं ५ गति अनुपात तक की अवस्था में व्यहृत होती है, (३) नीरव (silent) शृंखला - शक्तिप्रेषण के लिए निर्मित शृंखलाओं में इसका स्थान अधिक महत्वपूर्ण है। उच्च शक्ति को उच्च गति पर प्रेषित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसकी कड़ियों का डिज़ाइन और निर्माण अत्यंत सावधानीपूर्वक एवं विशिष्ट विधियों द्वारा किया जाता है। इस प्रकार की शृंखला का व्यवहार मुख्यत: १,२०० से १,५०० घूर्ण प्रति मिनट एवं १५ गति अनुपात के लिए किया जाता है।

रज्जु - बहुत पहले शक्तिप्रेषण के लिए रज्जु का व्यवहार भी किया जाता था। घिरनी की परिमा (rim) पर बनाए गए खाँचे (groove) पर रज्जु को लपेटकर उसके द्वारा शक्ति प्रेषित की जाती है। चूँकि रज्जु पट्टे की तुलना में कम नम्य (flexible) है, इसलिए यह ध्यान देना चाहिए कि रज्जु के व्यास की अपेक्षा कम व्यासवाली घिरनी से रज्जु के व्यास की अपेक्षा कम व्यासवाली घिरनी से रज्जु द्वारा शक्ति प्रेषित की जाए। पट्टे की तुलना में रज्जु का क्रियाशील प्रतिबल बहुत ही कम होता है, किंतु तनाव बल का अनुपात अत्यधिक होता है।

आधुनिक शक्तिप्रेषण की यांत्रिक विधि - विज्ञान के कारण आधुनिक युग में अल्प शक्तिवाले मूल चालक का, जिसके निर्माण में कम खर्च की आवश्यकता होती है, निर्माण हो रहा है, किंतु इस मूल चालक की दक्षता अधिक होती है। इसके साथ ही साथ यांत्रिक शक्तिप्रेषण की विधियों में ये विधियाँ प्रमुख हैं :

(१) प्रत्यक्ष मोटर युग्मित संबंध (Direct motor couple connection) - इसमें मोटर और शक्ति प्राप्त करने वाला शैफ्ट एक दूसरे से युग्मन (coupling) द्वारा संबंधित रहते हैं। यह युग्मन बहुधा नम्य प्रकार का होता है। इस तरह का संबंध संहत (compact) रहता है तथा इस युग्मन का उपयोग आधुनिक यंत्रों को चलाने के लिए किया जाता है; (२) प्रत्यक्ष मोटर पट्ट संबंध - इसमें मोटर और शक्ति प्राप्त करनेवाले शैफ्ट के बीच पट्टा लगा रहता है। इसका व्यवहार विभिन्न यांत्रिक उपकरणों को चलाने में किया जाता है। कहीं कहीं पट्टे के स्थान पर शृंखला का भी उपयोग किया जाता है; (३) पट्टा और रेखा शैफ्ट - इस विधि का विवरण ऊपर दिया जा चुका है; (४) गियर न्यूनीकरण प्रणाली (Gear reduction system) - विद्युत् मोटर बहुधा उच्च गति पर ही चलता है, किंतु यंत्रों के शक्ति प्राप्त करनेवाले शैफ्ट को निम्न गति पर ही कार्य करना होता है। स्वभावत: मोटर और शैफ्ट का प्रत्यक्ष संबंध कर देने से शैफ्ट भी उसी उच्च गति पर चलना आरंभ करेगा। इसलिए शक्ति को मोटर से शैफ्ट में प्रेषित करने के लिए गति के न्यूनीकरण की अत्यंत आवश्यकता हो जाती है और यह कार्य यंत्रित न्यूनीकरण प्रणाली द्वारा ही संपन्न होता है। इस प्रणाली द्वारा ५० और १ के अनुपात एवं कभी कभी तो १०० और १ के अनुपात में भी शक्ति का न्यूनीकरण हो सकता है; (५) बहु तंतु रज्जु प्रणाली (Multiple fabric rone system) - इस प्रणाली का प्रचार हाल में आरंभ हुआ है। रज्जु अंग्रेजी अक्षर वी (V) के आकार के बने होते हैं और चक्रों की परिमा पर बनाए गए वी (V) आकार के खाँचे पर कार्य करते हैं। यह प्रणाली किसी भी प्रकार के यंत्र के प्रत्यक्ष चालन में व्यहृत होने योग्य है तथा (६) परिवर्ती गति संबंध - विभिन्न प्रकार के औद्योगिक प्रविधियों में इस तरह के संबंध का उपयोग किया जाता है। इसमें गति का परिवर्तन सुगमतापूर्वक एवं बिना किसी बाधा के ही संपन्न हो जाता है।

कभी कभी स्थान के अभाव में ऊपर बताई गई प्रणालियों में से कुछ के संयोग का व्यवहार किया जाता है। आधुनिक विधियों में संहत का होना अधिक महत्वपूर्ण है, साथ ही साथ इन विधियों द्वारा अधिक दक्षता प्राप्त की जा सकती है और संपूर्ण व्यय भी कम ही होता है।

शक्तिप्रेषण के द्रवचालित तरीके - शक्तिप्रेषण की विधियों में द्रवचालित प्रणाली सबसे आधुनिक है। द्रवचालित प्रणाली में शक्ति एक तरल की सहायता से प्रेषित की जाती है। यह तरल बहुधा तेल होता है, किंतु कभी कभी जल का भी व्यवहार किया जाता है। द्रवचालित प्रणाली को दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है : द्रवचालित स्थितिज प्रणाली और द्रवचालित गतिज प्रणाली। द्रवचालित स्थितिज प्रणाली में तरल का मुख्य कार्य दाब की सहायता से शक्ति को प्रेषित करना है। इस प्रणाली के मुख्य अंग हैं : पंप करने का यंत्र, द्रवचालित मोटर, और दो मुख्य अंगों को मिलाने के लिए उपकरण। चूँकि पंप करने का तंत्र तरल दाब को प्रेषित करता है, इसलिए यंत्र को प्रेषी कहते हैं। द्रवचालित मोटर तरल दाब की सहायता से शक्ति प्राप्त करता है, इसलिए मोटर को ग्राही (receiver) कहा जाता है। इस प्रकार की प्रणाली का उदाहरण है, द्रवचालित संपीडक (Hydraulic Press)। इसमें पंप करने का यंत्र प्रेषी है और द्रवचालित संपीडक ग्राही। पंप द्वारा किए गए कार्य का उपयोग बल के विरुद्ध तेल को विस्थापित करने के लिए किया जाता है। द्रवचालित संपीडक-पिस्टन (piston) की गति से उत्पन्न अवरोध से बल की उत्पत्ति होती है। द्रवचालित गतिज प्रणाली में, क्रियाशील तरल के प्रवाह की गति के परिवर्तन की सहायता से शक्ति प्रेषित की जाती है। इसमें दाब के परिवर्तन को यथासाध्य कम करने का प्रयास किया जाता है। द्रवचालित गतिज प्रेषी के मुख्य अंग हैं : चालक शैफ्ट पर स्थित अपकेंद्री पंप प्रणोदक और चालित शैफ्ट पर स्थित अपकेंद्री पंप प्रणोदक और चालित शैफ्ट पर स्थित तेल टरबाइन रोटर (rotar)। पंप प्रणोदक और टरबाइन रोटर के बीच तेल के परिवहन से शक्ति चालक शैफ्ट को प्रेषित होती है। इसप्रकार की प्रणाली के उदाहरण हैं : द्रवचालित युग्मन (Hydraulic Coupling), द्रवचालित बलआघूर्ण परिवर्तक (Hydraulic Torque Converter) आदि।

आजकल शक्तिप्रेषण के द्रवचालित तरीके का उपयोग यंत्र को चलाने में अधिक हो रहा है। तरल की दाब की सहायता से आधुनिक यंत्रों में विभिन्न प्रकार की गतियों को प्राप्त किया जाता है। एक या एक से अधिक पंप के द्वारा तेल उच्च दाब पर भेजा जाता है। हाल के कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई है। यंत्र में शक्तिप्रेषण के लिए इस विधि के उपयोग से ये लाभ होते हैं : (१) गति एक समान रूप से और धीरे धीरे परिवर्तित की जा सकती है, (२) विस्तृत गतिसीमा प्राप्त होती है, (३) यांत्रिक प्रेषण द्वारा युक्त

द्रवचालित बलआघूर्ण परिवर्तक

चित्र ४.

यंत्र की तुलना में इस विधि से चलनेवाला यंत्र ५०% अधिक टिकाऊ होता है, (४) गति की उत्क्रमणीयता शीघ्र एवं आघातहीन रूप में प्राप्त की जा सकती है तथा (५) इस विधि से चलनेवाले यंत्र की डिजाइन और निर्माणविधि आसान होती है। आधुनिक युग में व्यवहृत प्राय: सभी यंत्रों एवं उपकरणों में शक्तिप्रेषण की इस विधि का प्रयोग हो रहा है। शक्तिप्रेषण की द्रवचालित स्थैतिक प्रणाली का उपयोग इसके अलावा निम्नलिखित यंत्रों में भी होता है : द्रवचालित दाबक, द्रवचालि क्रेन, द्रवचालित लिफ्ट (Hydraulic Lift) आदि। कृषि संबंधी यंत्रों, जैसे ट्रैक्टर आदि में भी शक्तिप्रेषण के द्रवचालित तरीकों का उपयोग होता है।

द्रवचालित गतिज प्रणाली के आधार पर शक्तिप्रेषण के लिए निर्मित, द्रवचालि युग्मन में चालक शैफ्ट और चालित शैफ्ट में कोई यांत्रिक संबंध नहीं रहता है। इस तरह के यंत्र में आघात और कंपन नहीं होता है। द्रवचालित युग्मन में शाक्ति को प्रेषित करते समय चालक और चालित शैफ्ट पर समान बलआधूर्ण कार्य करता बलआधूर्ण की वृद्धि करता है। द्रवचालित युग्मन का उपयोग

द्रवचालित युग्मन

चित्र ५.

रेलगाड़ियों और मोटर गाड़ियों में अंतर्दहन इंजन से गतिपाल चक्र को शक्ति प्रेषित करने में किया जाता है। डीजल इंजन चालित युद्धयान में बड़े आकार के द्रवचालित युग्मन का प्रयोग होता है। १ अश्वशक्ति से लेकर ३६,००० अश्वशक्ति तक के द्रवचालित युग्मन का निर्माण हो चुका है। द्रवचालित युग्मन और बलआधूर्ण परिवकं के अनुसंधान के' बाद आधुनिक मोटर गाड़ियों में शक्तिप्रेषण के पुराने प्रकार के उपकरण जैसे दंतिधान आदि का व्यवहार कम ही होने लगा है। इस तरह शक्तिप्रेषण के द्रवचालित तरीकों की उपयोगिता बहुत ही बढ़ गई है और अभी भी नित्य नई नई खोजें हो रही हैं, ताकि इस प्रणाली का कार्यक्षेत्र और भी विस्तृत हो जाए।

वैद्युत युक्ति - शक्तिप्रेषण की वैद्युत युक्ति पर निरंतर अनुसंधान हो रहे हैं। सतत परिवर्ती वैद्युत दंति का आविष्कार बहुत पहले हो चुका है। अवरोध को अंतरास्थापित करके बल के ्ह्रास की प्राप्ति की युक्तियाँ वस्तुत: परिवर्ती प्रेषण नहीं कही जा सकती हैं। शक्तिप्रेषण की वैद्युत युक्तियों का उपयोग वैद्युत रेलगाड़ियों में अधिक होता है। अंतर्दहन इंजन के डायनेमो (dynamo) के लिए मूलचालक के रूप में व्यवहृत कर विद्युत उत्पन्न की जाती है और चक्रों को घुमाने के लिए खास डिजाइन किए हुए दंति को वैद्युत मोटर की सहायता से चलाया जाता है।

गैसप्रणाली - गैस परिवर्ती प्रेषण को उपयोग में लाने के लिए अनेकानेक प्रयत्न किए जा रहे हैं। इस विधि का मुख्य उपयोग रेलगाड़ियों में अधिक होता है। अभी भी इस क्षेत्र में अनुसंधान हो रहे हैं, क्योंकि इन विधियों की दक्षता बहुत ही कम है। आशा की जाती है, निकट भविष्य में अन्वेषक गण अपने प्रयोग में सफल हो सकेंगे और इस प्रणाली की उपयोगिता अन्य क्षेत्रों में और भी अधिक बढ़ जाएगी।

(चंद्र भूषण मिश्र)