शकटार महानंद के दो मंत्री थे, एक शकटार शूद्र और दूसरा राक्षस ब्राह्मण। एक बार महानंद ने ऋतु होकर शकटार को बंदीगृह में डाल दिया। वह केवल दो सेर सत्तू उसके परिवार को देता जिससे एक एक करके उसके परिवार के सब लोग मर गए। शकटार अकेला रह गया। महानंद ने उसे राक्षस के नीचे मंत्री बना दिया। शकटार जैसे भी हो महानंद से बैर का बदला लेना चाहता था। ढूंढते ढूंढ़ते उसे एक ब्राह्मण मिला जो कुश से पाँव कट जाने के कारण कुश की जड़ में मट्ठा डालकर उसे नष्ट कर रहा था। शकटार इस ब्राह्मण को महानंद के महल में ले गया और वहाँ उसे श्राद्ध के असन पर बैठा दिया। राजा ने उसे बाल पकड़वाकर वहाँ से निकलवा दिया। आगे चलकर यही ब्राह्मण कूटनीतिज्ञ विष्णुगुप्त चाणक्य नाम से प्रसिद्ध हुआ। शकटार ने चाणक्य द्वारा महानंद और उसके पुत्रों की हत्या कराकर अपने बैर का बदला लिया। उसके बाद वह अपने पापों से संतप्त हो वन में चला गया और अनशन करके मर गया।

जैन परंपरा के अनुसार कल्पक वंश में उत्पन्न शकटार नवें बंद राजा का मंत्री था। उसके दो पुत्र थे, एक स्थूलभद्र और दूसरा श्रियक। नंद राजा की सभा में वररुचि नाम का एक ब्राह्मण रहता था जो शकटार से द्वेष रखता था। उसने राजा से झूठी चुगली लगाकर शकटार के पुत्र श्रियक के हाथ से उसे मरवा दिया। तत्पश्चात् श्रियक को मंत्री का पद दिया गया, और स्थूलभद्र ने जैन दीक्षा ले ली। आगे जाकर यही स्थूलभद्र जैन आगम के उद्धारक प्रसिद्ध जैन आचार्य हुए। (जगदीश चंद्र जैन)