शंतनु अथवा शांतनु कहे जानेवाले कुरुवंशी राजा ने महाभारत युद्ध के चार पीढ़ियों पूर्व हस्तिनापुर में राज्य किया था। पुराणों (विष्णु, चतुर्थ, २०,८-१२; भागवत., नवम्, २२, ११-१३; मत्स्य., ५०, ३८-४१; ब्रह्म. १३, ११४-१२१; वायु., २३४-२३७) में उसे प्रतीप का द्वितीय पुत्र कहा गया है। उसके बड़े भाई देवापि के बचपन में ही वन चले जाने तथा कुष्ट होने के कारण ब्राह्मणों के नेतृत्व में जनता द्वारा उसके उत्तराधिकार का विरोध किए जाने के फलस्वरूप पिता ने उसका त्याग कर दिया था। फलत: शंतनु को राज्य मिला। शंतनु महाभिषक था और जिसे भी अपने हाथों से छू देता था, उसके सभी शारीरिक रोग दूर हो जाते तथा उसे प्रत्येक प्रकार की शांति मिल जाती थी। इसी स्पर्शगुण (शं+तनु) के कारण उसका नाम शंतनु पड़ा। उसके समय में कौरवों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी। गंगा नामक उसकी पहली रानी से देव्व्रात भीष्म पैदा हुए। उसने दूसरा विवाह एक नीच जाति की पुत्री (दासेयी) सत्यवती से किया, जिससे उसके बाद क्रमश: राज्याधिकारी होनेवाले चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक पुत्र हुए।

सं. ग्रं. - पार्जीटर : ऐंशेंट इंडियन हिस्टारिकल ट्रैडीशंस, पृष्ठ ६९, १६५-६ और २५२; पुसालकर और मजुमदार (संपादित) वैदिक एज, पृष्ठ २९५। (विवेकानंद पांडेय)