वैश्वानर पुराणों में इस नाम से कई व्यक्ति हैं। पहला वैश्वानर दानवपति कश्यप तथा दनु के सौ पुत्रों में से एक था, जिसकी दो कन्याएँ कालका तथा पुलोमा थीं। भागवत के अनुसार इसकी चार कन्याएँ उपदानबी, कोला, पुलोमा तथा हयशिरा थीं। इनमें से कोला तथा पुलोमा का विवाह ब्रह्मा के आदेश से कश्यप प्रजापति के साथ और उपदानवी का व्याह हिरण्याक्ष एवं हयशिरा का क्रतु के साथ हुआ था (भाग, ६-६-६)। दूरे वैश्वानर की कन्या शांडिली को गरुड़ हिमालय की ओर ले जाना चाहते थे परंतु उनके पंख जल गए। तीसरे वैश्वानर ने केतु के साथ उस समय युद्ध किया था जब समुद्रमंथन के पश्चात् देवताओं को जालंधर नामक दैत्य से लड़ना पड़ा था।
ऋग्वेद में अग्नि का नाम भी वैश्वानर दिया है और उन्हें एक प्रधान देवता माना गया है। उसके तृतीय मंडल के द्वितीय अष्टक के अनुसार विश्वामित्र ने वैश्वानर देव की स्तुति करके कुछ ऋक् मंत्रों की रचना की थी।