वैमानिक आक्रमण का तात्पर्य वायुमार्ग से धरती पर स्थित शत्रु पर, मुख्यत: नगर में स्थित शत्रु पक्ष की असैनिक आबादी पर, हमला करना है। हवाई बमबारी का सूत्रपात प्रथम विश्वयुद्ध में हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मन अधिकारियों को ज़ेप्लिन (zoppelin) वायुपोतों से बड़ी उम्मीदें थीं। १९१५ ई. में जर्मनी की नौसेना ने लंदन पर खुला हमला करने की अनुमति माँगी और उस अनुमति मिल गई। १९ जनवरी, १९१५ ई. के दिन ग्रेट ब्रिटेन में स्थित नॉरफॉक (Norfolk) नामक स्थान पर पहला वैमानिक आक्रमण हुआ। फिर तो वैमानिक आक्रमणों का सिलसिला चला और टाइन (Tyne), साउथेंड और मई, १९१५ ई. में लंदन पर भी, हमला हुआ। अक्टूबर, १९१५ ई. में ब्रिटेन पर गंभीर वैमानिक आक्रमण हुए। १९१७ ई. तक ज़ेप्लिन के आक्रमण कुल ५२ बार हुए। कुल ५,८०६ बम, जिनका वजन लगभग १९६ टन आँका गया है, गिराए गए, जिसके फलस्वरूप ५७७ व्यक्ति मरे और १,३५८ आहत हुए। संपत्ति की हानि लगभग १५,२७,५८५ पाउंड की कूती गई। प्रारंभ में ये हमले रात में होते थे, पर बाद में दिन में भी होने लगे। आधुनिक युद्धपद्धति की एक विधा के रूप में वैमानिक आक्रमण और हवाई छापे ऐबिसिनिया, स्पेन और चीन में अत्यधिक व्यवहृत हुए हैं। वैमानिक आक्रमण का लक्ष्य जनता की इच्छाशक्ति को दुर्बल बनाना और मनोवैज्ञानिक विजय प्राप्त करना है।
विकसित हवाई युद्ध की विभीशिकाओं से, अर्थात् विस्फोटकों, आग-लगाऊ पदार्थों और गैंस आक्रमणों से, नगरों और असैनिक बस्तियों के संरक्षण पर अधिकाधिक ध्यान दिया गया है। हवाई हमलों से बचाव के एहतियाती उपायों का विकास करने के लिए अधिकांश यूरोपीय देश प्रयोग करते रहे हैं। हवाई हमलों से बचाव की आयोजना में, काफी सूक्ष्म बातों का, जिसे निष्क्रिय हवाई प्रतिरक्षा कहते हैं, विचार कर लिया जाता है।
निष्क्रिय हवाई प्रतिरक्षा - इसके तीन उद्देश्य हैं : (१) वैमानिक आक्रमणों से (असैनिक) जनसाधारण को हताहत होने से रोकना, (२) जनता के मनोबल को बनाए रखना और औद्योगिक प्रगति को, विशेषत: गोला बारूद के उत्पादन को, निर्बाध रूप से चलने देना तथा (३) जहाँ तक संभव हो हवाई बमबारी से संपत्ति हानि को सीमित करना और इस प्रकार युद्धप्रयास के विस्थापन को रोकना।
इन उद्देश्यों की सिद्धि के लिए जनसमुदाय को संगठित और प्रशिक्षित करना, उसे वैमानिक आक्रमणों की शक्ति और सीमाओं से अवगत कराना तथा इन आक्रमणों के परिणामों से बचने के साधनों और उपायों से अवगत कराना, जिससे धन जन की सुरक्षा के लिए प्रभावशाली कदम उठाए जा सकें और आवश्यक साधनों की व्यवस्था की जा सके। ये सिविल रक्षा के कर्तव्य हैं।
वे उपमा और साधन भी निष्क्रिय रक्षा की सीमा में आते हैं, जिनसे सामान्यतया असैनिक जनता तथा विशेषत: नगर और औद्योगिक
(१)��� निवारक उपाय - पूर्वानुमान के आधार पर वैमानिक आक्रमणों को निष्फल करने के लिए युद्धकालीन संकट उपस्थित होने के पूर्व ही कुछ उपाय किए जाते हैं : (क) महत्वपूर्ण निर्माण संस्थानों को बड़े नगरों से हटाना, या अधिक से अधिक संभव अंतर पर बसाना; (ख) औद्योगिक क्षेत्रों से आवश्यक जनता को हटाकर ग्रामीण अंचलों में बसाना; (ग) जिन कारखानों में विस्फोटकों, अत्यधिक ज्वलनशील द्रवों या अन्य खतरनाक पदार्थों का उपयोग होता है, उनकी सुरक्षा के लिए ऐसे पदार्थों और प्रचालनों (operations) को संयंत्र (plant) से सबंधित अन्य भवनों से दूर, एक साथ रखना चाहिए; (घ) नगरों की भावी आयोजना, सामान्यतया नगरसमुदायों का भावी विकास, परिस्थितियों पर नहीं छोड़ देना चाहिए, बल्कि आबादी और उद्योग को अधिक से अधिक विस्तृत भूभाग पर बिखेरने के मौलिक सिद्धांत के आधार पर एक निश्चित योजना के अनुसार निर्देशित होना चाहिए; (ङ) भूगत संस्थापन महत्वपूर्ण औद्योगिक संयंत्रों और जनोपयोगी भवनों को वैमानिक आक्रमणों से बचाने की सबसे प्रभावशाली विधि है। ऐसी चीजों को इतनी गहराई में होना चाहिए कि उनपर परमाणु बम, या अन्य अत्यंत विस्फोटक बम के प्रत्यक्ष आघात का ही असर हो सके और पृथ्वी की सतह पर हो रही बमबारी से उनकी कोई क्षति न हो; (च) तथा महत्वपूर्ण इमारतों और गतिविधियों को हवाई प्रेक्षण से छिपाना हवाई हमलों से सुरक्षा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपाय है, बशर्ते ये छिपे हुए भवन प्रकट हवाई लक्ष्यों से अलग और काफी दूर स्थित हों। प्रतिष्ठानों की रक्षा का प्रबंध होता है। ये हैं :
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(२)��� रक्षण उपाय - आक्रमण आरंभ होने पर रक्षा प्रदान करने के लिए रक्षण उपाय किए जाते हैं। इनकी व्यवस्था संकटकाल का आरंभ होने से पहले ही की जानी चाहिए। वैमानिक आक्रमण से कार्मिकों (personnel) की रक्षा करने के साधन और उपाय दो सामान्य विधियों के अंतर्गत आते हैं : (क) सामूहिक रक्षा तथा (ख) व्यक्तिगत रक्षा। सामान्यत: अत्यंत विस्फोटक बमों और परमाण्वीय बमों से सामूहिक रक्षा की व्यवस्था की जाती है और गैस, जीवाणु तथा परमाणु बमों के विकिरण प्रभाव से व्यक्तिगत रक्षा की जाती है।
(३)��� नियंत्रक उपाय - जनता में व्यवस्था और शांति बनाए रखने तथा उसका मनोबल अटूट रखने और हमले की गंभीरता को कम करने के लिए नियंत्रक उपाय किए जाते हैं। ये हैं : (क) संचार साधनों का नियंत्रण, (ख) परिवहन का नियंत्रण, (ग) संक्रमणों का नियंत्रण तथा (घ) वैकल्पिक लाभप्रद सेवाओं का उपयोग और क्षतिग्रस्त क्षेत्रों का पृथक्करण।
(४)��� पुनरुद्धार के उपाय - ये उपाय आक्रमण समाप्त होने के तुरंत बाद किए जाते हैं, जिससे जनसमुदाय की हानि की गंभीरता कम हो और संपत्ति की हानि का प्रतिकार हो सके। इन उपायों के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं : (क) आहतों का परित्राण और प्राथमिक उपचार, (ख) मलबे की सफाई, (ग) क्षतिग्रस्त उपयोगी रेखा तथा संचार लाइनों की मरम्मत, (घ) गैस प्रभाव दूर करना और रोगाणुनाशन तथा (ङ) आहतों को चिकित्सालय पहुँचाना। (शरद् नारायण रानडे)