वैद्युतमुद्रण (Electrotyping) वैसे तो अधिकांश मुद्रणमशीनें विद्युत् शक्ति से परिचालित होती हैं, परंतु वैद्युत्मुद्रण, वस्तुत:, उस विधि का नाम है, जिससे विद्युत् की सहायता से टाइप (type) तैयार किए जाते हैं। सामान्यत:, मुद्रण के लिए दोहरे प्लेट (duplicate plates) बनाए जाते हैं और विद्युत् टाइप, जिसे इलेक्ट्रो (Electro) कहते हैं, मूल टाइप के स्थान पर लगा दिया जाता है। ये लकड़ी काट (wood cut) एवं लकड़ी की पच्चीकारी (wood engraving) के स्थान पर भी प्रयुक्त किए जाते हैं।

वैद्युतमुद्रण, की विधि का आविष्कार एक जर्मन वैज्ञानिक, मोरित्स जैकोबी, ने सन् १८३९ में किया, परंतु इसका व्यावहारिक प्रयोग करनेवाली मशीन पहले पहल अमरीका में सन् १८६५ में बनाई गई। वैद्युत्मुद्रण के लिए पहले विद्युत् टाइप बनाया जाता है। यह विद्युत् अपघटन (electrolysis) द्वारा मूल काट (original cut) अथवा टाइप के साँचे (mould) पर धातु की पतली तह जमाने से बनाया जाता है। सबसे पुरानी और सस्ती विधि, मोम के साँचे बनाने की है। टाइप अथवा कट को, जिनकी अनुलिपि करनी हो, एक विशेष फ्रेम में बाँधकर हलके गरम किए हुए मोम में दबाया जाता है। इस साँचे के ठंढा होने पर उसमें चाँदी, अथवा ग्रेफाइट और पानी के छींटे दिए जाते हैं, जिससे साँचा विद्युत् का चालक बन जाए। तब साँचे को एक टंकी में, जिसमें सलफ्यूरिक अम्ल और ताम्र सल्फेट का विलयन भरा होता है, डुबा दिया जाता है और विद्युत् के ऋण इलेक्ट्रोड से संबद्ध कर दिय जाता है। इस प्रकार ताँबे की एक पतली तह इस साँचे पर जम जाती है। इस पर सीसे की एक दूसरी तह जमाकर, टाइप बनाया जाता है। विशिष्ट कार्यों के लिए ताँबे के स्थान पर निकल का भी प्रयोग किया जाता है।

इस विधि से बनाए गए टाइप बहुत मजबूत और साफ होते हैं। जब किसी चीज को बार बार छापना हो, अथवा एक ही प्लेट बहुत से मुद्रकों के पास भेजनी हो, तो विद्युत् टाइप बहुत उपयोगी होते हैं। इस विधि का मुख्य लाभ टाइप को, जिनकी अधिक व्यवहार में आने के कारण घिस जाना अवश्यंभावी है, क्षति से बचाना है। वैद्युतमुद्रण द्वारा उपयुक्त प्रकार से बनाए गए टाइपों से चार लाख प्रतियाँ कर पाना भी संभव है। इस प्रकार, मुद्रण के क्षेत्र में, वैद्युतमुद्रण विधि बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई है। (राम कुमार गर्ग)