वैगन (Wagon) कोई भी चौपहिया वाहन जो केवल माल ढोने के काम में आता है वैगन या माल डिब्बा कहलाता है। जैसा भारी काम इनसे लिया जाता है उसी के अनुरूप इनकी बनावट भी होती है। बनावट में सुंदरता और सजावट पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना ध्यान उनकी दृढ़ता पर दिया जाता है। बहुत भारी बोझा लदा रहने के कारण वैगनों के नीचे के फ्रेम पर स्थितिज दाब तथा विशेष खिंचाव बल पड़ते हैं और शंटिंग (shunting) के सय उपर्युक्त स्थितिज दाब के अतिरिक्त भारी मात्रा में संघट्ट बल भी पड़ता है। इनके प्रत्येक अवयव की अभिकल्पना करते समय ढाँचे को, उक्त सब प्रकार की विषम परिस्थितियों से बचाने के उपाय सोचने की तरफ निर्माता को ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। इनकी चौड़ाई तथा ऊँचाई किसी विशेष मानक के अनुसार सीमित रखी जाती है।

प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व तक विभिन्न देशों की विभिन्न रेलवे तथा उपयोगकर्ता व्यापारिक संस्थाएँ अपनी आवश्यकताओं के अनुसार माल डिब्बे स्वयं बनवा लिया करती थीं। ये माल डिब्बे किसी एक मानक नियमावली के अनुसार न बने होने के कारण रेल के यातायात मार्गों पर चलते समय बड़ी बड़ी अड़चनें पैदा करते थे। अत: जब रेलवे प्रबंधकों ने वैगन बनाने का काम हाथ में लिया, तब उन्होंने माल डिब्बों के मानकीकरण का काम शुरू किया, जिसमें ४-५ वर्षों के भीतर ही काफी प्रगति हुई। पहले बडे लाइनों के १० से २० टन तक माल लादने के वैगनों का फिर ३० से ४५ टन तक भार लादने योग्य, वोगीयुक्त लंबे बैगनों की मानकीकरण किया गया। बड़े बैगनों का प्रचार अधिक न हो पाया। ऐसे बड़े वैगनों का उपयोग रेलवे विभाग तथा बड़ी गैस कंपनियाँ ही अधिक मात्रा में कोयला मँगवाने के लिए करती है। जब तक बोगी वैगन नहीं बने थे तब तक बहुत लंबी चीजें लादनें के लिए दो दो या तीन तीन खुले वैगनों का भी एक साथ उपयोग किया जाता था। लेकिन अब बहुत लंबे तथा मजबूत बोगी वैगन बन जाने से इस प्रकार के काम में बहुत सुविधा हो गई है। चित्र (देखें फलक) में ४५ टन भार लादने योग्य श्फुट गेज का एक खुला वैगन दिखाया गया है और चित्र में बोगीयुक्त वोल्स्टर दिखाए गए हैं (देखें फलक)। इनमें ७० फुट लंबाई तक का सामान ले जाया जा सकता है। इनके केंद्रीय तकियों (bolsters) के बीच का फासला ही ४० फुट है।

रेल यातायात में छोटे वैगनों का अधिक उपयोग होने के कारण उन्नत प्रकार के माल गोदामों में वैगन तौलने के तुलायंत्र, टन टेबल और ट्रैवर्सर आदि यंत्र भी १२ फुट फासले के चक्लोंवाले वैगनों के लिए ही लगाए जाते हैं, और मालगोदाम साइडिग (siding) भी उन्हीं के अनुसार बनाई जाती हैं। कोयले की खानों में कोयला छाँटने के जो यंत्र लगे होते हैं, वे भी इन्हीं वैगनों के नाप के होते हैं। इन यंत्रों के द्वारा कोयला सीधा ही वैगन में गिराकर भर दिया जाता है। कोयला खर्च करनेवाले स्टेशनों पर कोयला रखने की जो विशेष कोठियाँ होती हैं, वे इन वैगन के नीचे सही सही आ जाती हैं, और वैगन के नीचे का दरवाजा खोलते ही पूरा वैगन उन कोठियों में एकदम खाली हो जाता है। इसी प्रकार से कोयले की मोटर ट्रकें भी वैगन के नीचे रखकर भर दी जाती हैं। इंजन गोदामों के बड़े स्टेशनों पर इसी प्रकार से इंजनों के टेंडरों में भी वैगनों से सीधा ही कोयला भर दिया जाता है जिससे परिश्रम और समय की बचत हो जाती है। पत्थर की गिट्टियाँ लादने के लिए विशेष प्रकार का वैगन (देखें फलक) और कोयला लादने के बोगीयुक्त विशेष प्रकार के बड़े बैगन (देखें फलक) होते हैं।

जिन देशों में लकड़ी बहुतायत से मिल जाती है, वहाँ छोटे वैगनों का ऊपरी ढाँचा लकड़ी से बनाना बड़ा सुविधाजनक तथा सस्ता रहता है, क्योंकि प्रथम तो लकड़ी पर यंत्रोपचार बड़ी जल्दी से जाता है, दूसरे छोटे स्टेशनों पर उनकी मरम्मत भी सरलता से हो सकती है। जिन इलाकों के वायुमंडल में अमोनिया गैस तथा अब ऐसे रासायनिक पदार्थों के कण, जिनके कारण इस्पात की बनी वस्तुओं का अपरदन (erosion) बड़ी जल्दी होने लगता है मिले रहते हैं, अथवा उस क्षेत्र में मिलनेवाले कोयले के घटकावयव ही ऐसे हों जिनपर बरसाती पानी पड़ने से वैगनी के इस्पाती अवयवों का अपरदान बड़ी शीघ्रता से होने लगे, वहाँ बैगनों के ढाँचे लकड़ी से बनाना ही लाभकर रहता है। शुद्ध लोह से बने अवयवों पर उपर्युक्त वातावरण आदि का इतना दुष्प्रभाव नहीं पड़ता जितना इस्पात के बने वैगनों के अवयवों पर होता है। हाँ, यदि खनिज लोह-अयस्क इस्पात के बने वैगनों में लादा जाए, तो उसका बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। लकड़ी से बने वैगनों के ढाँचों के फ्रेम यदि इस्पात के बनाकर, उन्हें अपरदन विरोधी किसी रंग रोगन से पोत दें, फ्रेम पर लकड़ी के तख्ते कसकर फिर उन्हें रँग दिया जाए और समय समय पर तख्तों एव फ्रेम को रँगते रहें, तो उनकी उमर बढ़ सकती है।

२० टन से अधिक भार लादे जाने योग्य वैगनों को तो पूर्णतया इस्पात का ही बनाने का रिवाज है। आरंभ में २० टन से अधिक भार लादे जानेवाले वैगन में, जिनके चक्कों का फासला १२ फुट से अधिक होता था, तीन घुरे अर्थात् ६ पहिए लगाने की प्रथा थी, जो अब वोगियों का प्रचार हो जाने से बंद हो गई (देखें फलक)।

आजकल फल, दूध आदि विकारी, अर्थात् जल्दी बिगड़ जानेवाले पदार्थों को जल्दी जल्दी ढोने के लिए एक्सप्रेस माल गाड़ियाँ चलाने का रिवाज बढ़ता जा रहा है। अत: उनके लिए विशेष प्रकार से बने तथा छतवाले वैगनों का उपयोग होता है (देखें फलक)। आधुनिक प्रकार के इन वैगनों में, दोनों तरफ पेंचयुक्त कपलिंग, बफर, वैक्युअम द्वारा स्वचालित ब्रेक तथा लीवर, या चकरी और पेंच द्वारा चालित हाथ ब्रेक अवश्य लगाए जाते हैं। फलक में ब्रेक आदि का प्रबंध स्पष्ट दिखाया गया है। जो वैगन जिस किसी विशेष काम के लिए बनाया जाता है, उसमें उस काम के उपयोगी उपकरण भी लगाए जाते हैं। गोश्त तथा मछली आदि आमिष पदार्थ ढोने के लिए वातानुकूलित वैगन बनाए जाते हैं। पशुओं को ढोने योग्य वैगनों में हवा के लिए उपयुक्त प्रकार की जालियाँ, सफाई करने तथा गोबर आदि फेंकने के लिए विशेष खिड़की बनाई जाती है तथा उनका फर्श डामर से बनाया जाता है। घोड़े ले जानेवाले वैगनों में उपर्युक्त पशु वैगनों की सब विशेषताओं के अतिरिक्त कुछ आड़बंद तथा आड़ी दिशा में कुछ गद्दीदार दीवारें बनाकर प्रत्येक घोड़े के लिए एक एक खाना बना दिया जाता है, जिससे कीमती घोडों को सफ करने में कष्ट न हे। इन वैगनों में आगे और पीछे साईसों के लिए काम करने का गलियारा बना दिया जाता है और इनमें पानी का भी प्रबंध होता है। मोटर गाड़ियों को ढोने के लिए जो वैगन बनते हैं, उनका प्रवेशद्वार सिरे की तरफ रहता है, जिससे डेड ऐंड (dead end) प्लेटफार्म से मोटर गाड़ी सीधी ही भीतर ढकेल दी जा सके। वैगन के भीतर खड़ी की गई मोटर गाड़ी को स्थिरता से बाँधने के लिए आवश्यक साधन भी लगाए जाते हैं। तेल तथा अन्य प्रकार के द्रवों को ढोने के लिए टंकीनुमा वैगन भी, जिनपर उन्हें खाली करने तथा भरने के वाल्व, पंप और द्वार भी होते हैं, बनाए जाते हैं। पेट्रोल आदि ढोने के लिए विशेष प्रकार की टंकियाँ बनाई जाती हैं, जिससे उन द्रवों के कारण मार्ग में कोई खतरा न उपस्थित हो।

वैगनों का बृहत् उत्पादन - आजकल वैगनों के अवयवों तथा पुर्जों का पूर्णतया मानकीकरण हो चुका है, जिससे उनके बृहत्उत्पादन तथा मरम्मत में सुविधा रहे। लोकोमोटिव पब्लिशिंग कंपनी, लंदन, द्वारा प्रकाशित एक लेख के आधार पर डरबी नगरस्थ, एल.एम. ऐंड एस. (L.M. & S.) रेलवे के कारखाने में होनेवाली बृहत् उत्पादन के लिए प्रयुक्त प्रणाली का सारांश यहाँ दिया जा रहा है।

बहुमुखी रंदों आदि यंत्रों पर लकड़ी के समस्त अवयवों को सही-सही नाप में बनाकर, बहुत से बर में एक साथ लगे छिद्रणयंत्रों पर, एक समान अनेक अवयवों को एक साथ ऊपर नीचे रखकर, छेद दिया जाता है, जिससे समय की बहुत बचत हो जाती है। इन यंत्रों में लगे बरमों तथा कटरों के फासले पहले से ही सही समायोजित कर लिए जाते हैं, जिससे कम से कम प्रक्रियाओं में ही काम चल जाता है। इस्पात की चादरों से बने अवयव यांत्रिक कैचियों तथा प्रेसों पर काटे एवं मोड़े जाते हैं। इनमें छेद करने का काम जिगों की सहायता से बरता यंत्रों द्वारा किया जाता है, जिससे प्रत्येक अवयव पर छेदों का अलग-अलग रेखांकन न करना पड़े और सब छेद पूर्व निश्चित फासलों पर एक ही नाप के बन जाएं।

वैगन के अवयवों को उक्त प्रकार से बनाने के बाद, एक दूसरे से जोड़ने का का पूर्वसुनिश्चित योजना के अनुसार, क्रमानुसार प्रक्रियाओं से किया जाता है। इन प्रक्रियाओं का समय भी अनुभव के आधार पर पहले से ही निर्धारित किया होता है। विभिन्न अवयवों को सही स्थान पर जोड़ने की क्रिया जिगों द्वारा की जाती है। अवयवों को उठाने, ले जाने तथा उपयुक्त स्थान पर धरने का काम, संपीडित वायु की दाब से चलनेवाले हविसों (hoists) और वेलनयुक्त वाहकों (conveyers) से किया जाता है। अवयवों को यथास्थान जड़ते समय, स्थिरता से थामने का काम जलशक्तिचालित शिकंजों से लिया जाता है। इन अवयवों को आपस में जोड़ने में सहायता करनेवाला जिग इस प्रकार का बना होता है कि उसके कारण प्रत्येक अवयव अपने स्थान पर बना होता है कि उसके कारण प्रत्येक अवयव अपने स्थान पर सीधा एवं ठीक ठीक ही बैठ सकता है, अन्यथा नहीं। ढिवरी और पेंचों को कसने तथा विट लगान का काम संपीडित वायुचालित उठौआ यंत्रों से होता है। साथ ही साथ आवश्यक स्थानों पर बिजली द्वारा वैल्डिंग भ होता रहता है। उपर्युक्त कारखानों में एक वैगन को जोड़कर खड़ा करने की क्रिया में, आरंभ से अत तक, लगभग श्घंटे लगते हैं और ट्रेवर्सर द्वारा प्रति बीस मिनट में एक वैगन रस्से द्वारा खिंचकर अपने आगे के स्थान पर ढकेल दिया जाता है तथा इस वैगन द्वारा खाली की गई जगह में पीछे की तरफ बननेवाले अन्य वैगन क्रम से आते रहते हैं। वैगनों को रँगने आदि का काम संपीडित वायुचालित फुहारों से होता है। रँगाई किए जानेवाले स्थान का ताप तथा संवातन का प्रबंध भी ऐसा होता है कि वैगनों के रंग को सूखने में देर नहीं लगती।

सं.ग्रं. - रेलवे कैरेज ऐड वैगन, थ्योरी ऐंड प्रैक्टिस। (ओंकार नाथ शर्मा)