वेस्ट लैंड (
इसका प्रकाशन सन् १९२२ में हुआ। यह प्रथम महासमर के बाद का काल था। इलियट इस काव्य में बंजर धरती का वर्णन करते हैं, जहाँ कुछ भी नहीं उगता। न यहाँ जल है, न छाया। वे रोमन कैथलिक विश्वासों के कवि है। जिस बंजर भूमि का वे वर्णन करते हैं, वह आस्था और विश्वासों से रहित भूमि हैं। महासमर के बाद संपूर्ण देश ही वीरान और उजड़ा लगता था।
'वेस्ट लैंड' एक नई शैली की कविता है। इसमें अनेक सूत्र एक साथ जुड़े हैं और वे उलझा दिए गए हैं। अनेक पंक्तियाँ पुराने साहित्य की प्रतिध्वनियाँ जगाती है। कहीं विदेशी भाषाओं के प्रयोग हैं, कहीं विचित्र उपमाएँ हैं। नहीं अतीत का वर्णन है, कहीं वर्तमान का। कहीं यथार्थवादी चित्र हैं, कहीं रोमैंटिक चित्र।
'वेस्ट लैंड' में आधुनिक यूरोपीय जीवन की गहरी पीड़ा व्यक्त हुई है। इसका स्वर दु:खांत काव्य का स्वर है। शैली और तकनीक की दृष्टि से इस रचना क अंग्रेजी काव्य के विकास पर भारी प्रभाव पड़ा है। (दे. इलियट, टी.एस.) (प्रकाश चंद्र गुप्त)