वेलेज़ली, लार्ड रिचर्ड कोले वेलेज़ली का जन्म डबलिन में २० जून, १७६० ई. को आयरलैंड के एक समृद्ध परिवार में हुआ। उसकी मृत्यु लंदन में २६ सितंबर, १८४२ को हुई। रिचर्ड कोले वेलेज़ली की शिक्षा हैरो तथा ईटन में हुई, और बाद में सन् १७७८ ई. में उसे ऑक्सफोर्ड पढ़ने के लिए भेजा गया। उसे १७८१ ई. में बिन कोई उपाधि प्राप्त किए ऑक्सफोर्ड छोड़ना पड़ा। उसे पिता की मृत्यु पर उसे मॉर्निग्टन के द्वितीय अर्ल का स्थान प्राप्त हुआ।

बेलेज़ली पहले आयरलैंड के 'हाउस ऑव लार्ड्स' का सदस्य बना किंतु अधिक प्रखर बुद्धि का तथा महत्वाकांक्षी होने के कारण वह सन् १७८४ ई. में ब्रिटेन के 'हाउस ऑव कामंस' का भी सदस्य हो गया। सन् १७८६ ई. में वह 'जूनियर लार्ड ऑव द ट्रेज़री' और सन् १७९३ ई. में 'बोर्ड ऑव कंट्रोल का सदस्य हुआ। बोर्ड ऑव कंट्रोल के प्रधान डंडस थे। सन् १७९७ ई. में वेलज़ली ब्रिटिश भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ, और इस पपद को सँभालने के लिए वह ९ नवंबर को इंग्लैंड से प्रस्थान करके मई, सन् १७९८ ई. में कलकत्ते पहुँचा।

वेलेज़ली भारत में विस्तारवादी नीति का समर्थक था। उसका पहला उद्देश्य फ्राँसीसियों के प्रभाव को कम करना और दूसरी अंग्रेजी प्रभुत्व को भारत में स्थापित करना था। अपने उद्देश्य में सफलता पाने के लिए उसने क्लाइव और वारेन हेंस्टिंग्ज़ के समय से चल रही सहायक-संधि-प्रणाली को प्रोत्साहित तथा विस्तृत किया।

वेलेज़ली की सहायक-संधि-प्रणाली के अनुसार अंग्रेजों ने अपने मित्रराज्यों को सेना प्रदान की, जो मित्रराज्यों की सीमाओं में रहती थी और जिसका खर्च मित्रराज्यों को ही सहन करना पड़ता था। वे राज्य किसी दूसरे यूरोपीय देशों के लोगों को अपने राज्य में नहीं रख सकते थे, तथा अन्य किसी भारतीय राज्य से कोई संबंध, अंग्रेजों की आज्ञा के बिना, नहीं रख सकते थे। हर आरक्षित राज्य के दरबार में एक अंग्रेज रेज़ीडेंट नियुक्त किया जाता था। संधि की शर्तों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रणाली मुख्यत: अंग्रेजों के लिए ही लाभदायक थी क्योंकि इसके द्वारा उनके प्रभाव का क्षेत्र बिना किस खर्च के विकसित हो रहा था। यह भारतीय राज्यों में विरोधात्मक प्रवृत्तियों पर कड़ा नियंत्रण रख सकती थी। किंतु यह नीति भारतीय राज्यों के लिए हानिकारक सिद्ध हुई।

वेलेजली ने पहली सहायक संधि निज़ाम से सितंबर, १७९८ ई. में की। इसके कारण निज़ाम की फ्रांसीसी रेमंड के नेतृत्व में संगठित किए ग १४,००० सैनिकों के स्थान पर अंग्रेजों की ६ बटैलियन हैदराबाद में अपने खर्चे पर रखनी पड़ी। बाद में सन् १७९२ ई. और १७९९ ई. में निज़ाम ने फौज के खर्चे के लिए मैसूर से प्राप्त राज्य को अंग्रेजों को सौंप दिया।

टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के विरुद्ध फ्राँसीसियों से सहायक संधि कर ली थी। वेलेज़ली ने टीपू सुल्तान से उसके फ्रांसीसियों से मित्रता स्थापित करने के सबंध में स्पष्टीकरण माँगा। चूँकि वह उसके उत्तर से सतुष्ट न था उसने टीपू के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और टीपू के आंतरिक विरोधियों की सहायता से उसकी शक्ति समाप्त कर दी (४ मई, १७९९)। अपनी इस नीति से न केवल वेलेजली ने मैसूर में फ्रांसीसियों के प्रभाव को समाप्त किया वरन् एक विस्तृत महत्वपूर्ण भूभाग पर अंग्रेजी अधिकार प्राप्त कर लिया गया।

अक्तूबर, १७९९ ई. में वेलेजली ने तंजोर पर, उत्तराधिकर के प्रन पर होनेवाली गड़बड़ी से लाभ उठाकर, अधिकार कर लिया इसी वर्ष सूरत के नवाब की मृत्यु पर उसने नए नवाब को पेंशन देकर उसके राज्य पर भी अधिकार कर लिया। १८०१ ई. मे उसने अवध के नवाब को सहायक संधि करने पर विवश कर दिया तथा उसके राज्य की आधी आय, उसके राज्य में अंग्रेजी सेना रखकर, वसूल कर ली। २५ जुलाई, १८०१ ई. में कर्नाटक के नवाब मुहम्मद अली पर अंग्रेजों के विरुद्ध टीपू सुल्तान से मिले होने का आरोप लगाकर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया।

बेलेजली मराठों को सहायक संधि द्वारा अपने अधीन करने के लिए बहुत उत्सुक था। पूना में चल रहे मराठों के आंतरिक संघर्ष ने गवर्नर-जनरल को पूरा अवसर प्रदान किया। अक्टूबर, १८०२ ई. में जसवंतराव होल्कर ने पेशवा और सिंधिया दोनों की संयुक्त सेनाओं को परास्त किया जिसके कारण बाजीराव को बसईं भागना पड़ा तथा अंग्रेजों की सहायता से उसे पुन: पूना प्राप्त हो गया। किंतु मराठा सामंतों ने इस संधि को स्वीकार कने से इनकार कर दिया जिसके परिणामस्वरूप युद्ध छिड़ा। ऑर्थर वेलेजली की 'असाई' और 'अरगाँव' की विजयों से भोंसले राजा की शक्ति टूट गई। लेक द्वारा पेरों की सेना को दिल्ली एवं लसवाड़ी में हराकर दिल्ली पर अधिकार किए जाने से सिंधिया और भोंसले को सहायक संधि स्वीकार करनी पड़ी और अंग्रेजों ने भोंसला से कटक अपने अधिकार में ले लिया। सिंधिया से गंगा-जमुना-दुआब का भाग तथा दिल्ली और आगरा अंग्रेजों ने प्राप्त किए। इस पकार मुगल सम्राट् शाह आलम अंग्रेजों के अधीन हो गया। होल्कर के साथ वेलेजली अपनी नीति में कम सफल हुआ। अप्रैल, १८०४ ई. में जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो मॉन्सन को हार खानी पड़ी और लेक भरतपुर पर अधिकार करने में असफल रहा। इन युद्धों पर अपार धनराशि व्यय करने के कारण वेलेजली की घोर निंदा हुई और उसे १८०५ ई. में भारत से वापस इंग्लैंड लौटना पड़ा।

इंग्लैंड लौटने पर वेलेजली पर वेलेजली ने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। सन् १८०९ ई. में वह स्पेन में राजदूत नियुक्त हुआ तथा १८०९ ई से १८१२ ई. तक विशेष सचिव के पद पर कार्य करता रहा। १८२१ से १८२८ तक वह आयरलैंड में लार्ड लेफटिनेंट के पद पर आसीन रहा। उसे लॉर्ड स्ट्यूवर्ड तथा बाद में लार्ड चेंबरलेन के पद पर भी कार्य करने का अवसर मिला। किंतु उसके जीवन के महत्वपूर्ण दिन भारत में ही व्यतीत हुए थे। उसने भारत का फ्रांसीसियों के प्रभाव को समाप्त कर दिया। उसने टीपू सुल्तान को पराजित किया तथा मराठों की शक्ति क्षीण करके भारत में अंग्रेजों की सत्ता को शक्तिशाली बनाया। वेलेजली की सफलता उसी परिश्रमशीलता, महान् कार्यक्षमता आदि गुणों का परिणाम थी। इसमें मैलकम, मुनरो, एलफिंल्टन, एवं ऑर्थर वेलेजली जैसे व्यक्तियों का भी योगदान कम न था। उसे कार्य न उसके अनजाने ही भारत की राजनीतिक एवं प्रशासनिक एकता को शक्ति प्रदान की। (मुहम्मद हबीब)