वेलासक्वेज, दिएगो डि सल्वा ई (Velasquez, Diego de Silva y, १५९९-१६८० ई.) स्पेन का प्रसिद्ध चित्रकार जो रूबेंस, रेंब्राँ आदि का समकालीन था। बाल्यकाल में उसका पिता उसे चित्रकला का शिक्षण ग्रहण करने के लिए उत्साहित करता रहा। फ्रानचिस्को पाचेको उसके कलागुरु बने। बाद में पाचेको की लड़की जुबाना द मिरांदा से (सन् १६१८ में) वेलासक्वेज का विवाह हो गया। उसके यश का सूत्रपात हुआ जब उसकी उम्र थी २४ साल की। वह राजा फिलिप चतुर्थ का व्यक्तिचित्र (पोट्रेंट) बनाने के लिए माद्रिद आया। उसने अपने काम से और व्यवहार से राजा पर ऐसा जादू डाला कि उस समय से वह देश क दरबार-नियुक्त एक शक्तिशाली चित्रकार बन गया। सन् १६२८ में जब रूबेंस नामक ख्यातनामा उत्तरी चित्रकार स्पेन के दरबार में उपस्थित हुआ तब उसने स्वयं पत्र में लिखा था कि 'राजा फिलिप और वलासक्वेज में घनिष्ठ संबंध है और वेलासक्वेज एक प्रतिभासंपन्न चित्रकार है।'

सन् १६३० में वेलासक्वेज ने पहली बार इटली की यात्रा की। उन दिनों वेनिस और रोम अपने कलावैभव के कारण अधिक प्रसिद्ध थे। उसकी यह यात्रा बड़ी ही सफल रही। वेनिस, फ्लारेंस, रोम के मार्ग से वह नेपल्स आ पहुँचा। यहाँ उसने राजा फिलिप की सहोदरा मेरी का व्यक्तिचित्र बनाया।

वेलासक्वेज ने राजा फिलिप के अनेक व्यक्तिचित्र, युवावस्था से लेकर वार्धक्य तक के, बनाए। इन चित्रो मे उसकी चित्र विषयक उत्क्रांति पूर्णतया दृष्टिगोचर होती है उसका एक ऐतिहासिक चित्र सरेंडर ऑव ब्रेडा' (Surrender of Breda) बहुत प्रसिद्ध है। इस चित्र का षिय है, डच सेनापति ब्रेडा शहर की कुंजी स्पेन के उदार वीर स्थिनोला के हाथ सौंप रहे हैं। पार्श्वभूमि में सैनिक, घोड़े, शस्त्रास्त्र आदि का निसर्ग दृश्य, अत्यंत सहृदय हाथों से प्रस्तुत किया गया है। सारा वातावरण जयपराजय के द्वंद्वों के ऊपर उठ गया है; रही है मात्र एक महान् धीरोदात्त मानवता, जिससे पराजित को भी प्रेम की विजय मिलती है।

१६४९ में वेलासक्वेज दूसरी बार इटली की यात्रा करने के लिए निकला। इस यात्रा में फिलिप के संग्रहालयार्थ उसने अनेक इतालवी चित्र खरीदे। इसी यात्रा में उसने पोप दशम इनोसेंट का अद्वितीय चित्र तैयार किया जो अब दोरिया प्रासाद (रोम) का अग्रगण्य चित्र माना जाता है।

१६५१ में माद्रिद लौटने पर कुछ विख्यात चित्रों पर उसने काम किया। अब राजदरबार में उत्तरोत्तर उसका सम्मान बढ़ता गया। सन् १६६० में जब उसकी मृत्यु हुई तो उसकी अंत्येष्टि में सारे स्पेन का दरबार पूरी शान शौकत से उपस्थित हुआ था।

वेलासक्वेज की चित्रकारी यूरोपीय कला के इतिहास में अपना एक विशेष और अटल स्थान रखती है, हालाँकि उसकी मृत्यु के पश्चात् दो सौ साल तक उसकी विशेष ख्याति नहीं हुई। सारे के सारे कलारसिक इटली की ही यात्राएँ किया करते थे और इतालवी चित्रकारों का सर्वत्र गौरवपूर्ण उल्लेख हुआ करता था, परंतु वेलासक्वेज के लिए कोई विशेष चाह दिखाई नहीं देती थी। गत शताब्दी के मध्य में माने (Manet), व्हिस्लर आदि चित्रकारों ने जब उसका स्तुतिगान किया तब से उसका नाम फिर से विश्वमान्य हो गया। कलासमीक्षकों ने भी उसकी प्रशंसा में किताबें लिखीं और उसकी कीर्ति फैलाई।

वेलासक्वेज़ को बरीक (Baroque) कलाप्रथा का चरम दृष्टांत माना जाता है; कारण, वह क्लैसिक प्रथा की तरह सत्य को ध्येय या सत्व के साँचे में ढालना नहीं चाहता। वह सत्य को ज्यों का त्यों निहारता था। उस सत्य को एल ग्रेको या रूवेंस की तरह भावनाओं की आग से तिलमिलाता नहीं था। (दिनकर कौशिक)