(१) अंधनाल - यह ६ सेमी. लंबा और ७.५ सेमी. मोटा होता है। यह वृहदांत्र का पहला भाग है और दक्षिण श्रोणीय खात (right iliac fossa) में स्थित है। यह एक फूला हुआ कोश (sac) है, जो नीचे की ओर बंद है, ऊपर आरोही कोलन (ascending colon) में खुलता है और भीतर की ओर क्षुद्रांत्र से मिला है। इसकी पश्चाभ्यंतर दीवार (posterio-medial wall) एक से सीवनी (wom) की ऐसी नली निकलती है, जिसको कृमिरूप परिशेषिका (Vermiform appendix) कहते हैं। यह परिशेषिका २ सेंमी. से २० सेंमी. तक लंबी होती है। इसकी औसत लंबाई लगभग ९ सेंमी. है। इसका स्थान भिन्न भिन्न तरह का है : (क) प्रत्यक् अंध्रांत्र (retrocaccal), या प्रत्यक् कोलन (retrocolic) परिशेषिका - जहाँ परिशेषिका अंध्रांत्र या कोलन के पीछे रहती है, (ख) श्रोणीय या अवरोही परिशेषिका (pelvic or descending appendix) - जहाँ परिशेषिका श्रोणीय (pelvi) पर्वत पर, या नीचे श्रोणीय गुहा (pelvic cavity) में चली जाती है। स्त्रियों में ऐसी परिशेषिका अंडाशय या गर्भाशय (uterus) के पास भी पहुँच जा सकता है, (ग) अध:कृमिरूप परिशेषिका - जहाँ परिशेषिका अंधनाल के नीचे रहती है, (घ) और (ङ) पुर:क्षुद्रांत्र (pre-llial) और पश्चक्षुदांत्र परिशेषिका के सामने या पीछे रहता है। इन सबों में प्रत्यक् अंध्रांत्र या प्रत्यक् कोलन प्रकार (type) अधिक होता है। परिशेषिका के भिन्न भिन्न स्थान होने के कारण, इसके शोथ से जो पीड़ा होती है, वह उदर की भिन्न भिन्न दिशाओं में फैलती है।
(२)
कोलन (
(क) आरोही कोलन - यह १५ सेंमी. लंबा होता है और अंधनाल से संकीर्ण होता है। यह अंधनाल से आरंभ होता है और यकृत की दक्षिण पालि (right lobe) के अध तल तक फैला है, जहाँ एक कोलन चिन्ह (colic impression) बनाता है। यहाँ से यह बाईं ओर मुड़ता है और अनुप्रस्थ कोलन कहलाता है। इस मोड़ को दक्षिण कोलन आनमन (right colic flexure) कहते हैं।
(ख) अनुप्रस्थ कोलन - इसकी लंबाई ५० सेंमी. है और यकृत के दक्षिण खंड से प्लीहा तक फैला है। यह चित्र में दिखाया गया है और अधिकतर थोड़ा मुड़ा रहता है, किंतु किसी किसी में नाभि, या उससे भी नीचे तक उदर में, पहुँच जाता है। प्लीहा के पास पहुँचकर यह उसके पार्श्व प्रांत (lateral end) के पास से नीचे की ओर मुड़ता है और अवरोही कोलन बनाता है। इस तरह यहाँ जो वाम कोलन आनमन बनता है, वह बहुत तीक्ष्ण (acute) होता है और अनुप्रस्थ कोलन के प्रारंभ भाग के सामने हो जाता है। वाम कोलन आनमन का स्थान दक्षिण कोलन आनमन से कुछ ऊँचा होता है और इसे एक स्नायु (ligament), जिसको मध्यच्छद कोलन स्नायु (Phrenico colic ligament) कहते हैं, डायफ्रााम (diaphragm) से बाँधे रहती है।
(ग) अवरोही कोलन - यह २५ सेमी. लंबा होता है और वाम कोलन आनमन से मुख्य श्रोणि (true pelvis) के अंत:द्वार तक फैला है, जो वंक्षरण वलन (fold of groin) के पास है।
(घ) अवग्रहरूपी कोलन या श्रोणीय (pelvic) कोलन - यह प्राय: ४० सेमी. लंबा होता है और मुख्य श्रोणि के अंत: द्वार से प्रारंभ होकर एक पाश के रूप में नीचे उतरता है। अंत में सेक्रम (sacrum) के प्रथम टुकड़े के सामने मध्यम तल में मलाशय में खुलता है। यह एक पाश है जैसा चित्र में दिखाया गया है, तथा पुरुषों के मूत्राशय और स्त्रियों के गर्भाशय के ऊपर स्थित है। इसलिए जब मूत्राशय में मूत्र भर जाता है या गर्भाशय में बच्चा बढ़ता है तब अवग्रहरूपी कोलन भी उदर में ऊपर उठता है।
(३) मलाशय - यह १२ सेंमी. लंबा है और अवग्रहरूपी कोलन से सेक्रम और अनुत्रिक (coccyx) के सामने से उतरकर अनुत्रिक के निचले शिखर के २-३ सेमी. सामने और नीचे गुदानाल में प्रवेश करता है। इस यात्रा में यह पीछे की ओर मुड़ा रहता है और सेक्रम आनमन (sacral flexure) बनाता है। इसका अंतिम हिस्सा, जिसको मलाशय तुंबिका (Rectal ampulla) कहते हैं, फूला हुआ है। मलाशय के ऊपरी दो तिहाई भाग के साथ पेरिटोनियम (peritoneum) और सामने पेरिटोनियम गुहा (peritoneum cavity) है। इसके निचले एक तिहाई भाग के सामने पुरुषों में मूत्राशय का आधार, शुक्राशय (seminal vesicle), शुक्रवाहिनी (ducts deferens), मूत्रवाहिनी (ureter) का अंतिम भाग और प्रोस्टेट (Prostate) रहता है और स्त्रियों में योनि का निचला भाग रहता है। मलाशय के अंदर श्लेषमल कला में अनुप्रस्थ पुटक (transverse, or horizontal folds ) हैं, जो अर्धचंद्राकार हैं। ये साधारणतया तीन हैं, जिनमें बीच वाला स्थायी और सबसे बड़ा है। इसमें मांसपेशियाँ भी हैं। यह मलाशय के ऊपरी दो तिहाई भाग के नीचे है, जो पेरिटोनियम गुहा के पीछे है। इसलिए मलाशय का यह हिस्सा (जो मध्य स्थित पुटक के ऊपर है) मल से फलता है और इसमें मल रहता है पर इस पुटक के नीचे का हिस्सा खाली रहता है।
(४) गुदनाल - यह ३.८ सेमी. लंबा है और मलाशय के संकीर्ण भाग से प्रारंभ होकर नीचे तथा पीछे की ओर मुड़ता है और अंत में गुदा से बाहर खुलता है, जिससे मल बाहर निकलता है।
डाक्टरों को मलाशय में अँगुली डालकर कभी कभी जाँच करने की आवश्यकता होती है। इस काँच से मलाशय से मिले हुए श्रोणीय अंग (pelvic organs), जैसे पुरुषों में मूत्राशय, प्रोस्टेट, शुक्राशय, मूत्रवाहिनी और स्त्रियों में योनि, गर्भाशय-ग्रीवा आदि का ज्ञान होता है। (तारणी प्रसाद सिन्हा)