वृत्त (Circle) किसी समतल में ऐसे एक चर बिंदु का बिंदुपथ है, जिसकी एक स्थिर बिंदु (केंद्र) से दूरी (त्रिज्या) सदा बराबर हो। चित्र १. में बंद वक्र एक वृत्त है और परिबद्ध (enclosed) भाग अभ्यंतर (Interior) कहलाता है। वृत्त पर स्थित किन्हीं दो बिंदुओं को मिलानेवाली सरल रेखा जीवा (chord) कहलाती है। महत्तम जीवा व्यास है, जो त्रिज्या का दूना होता है। परिधि के दो बिंदुआं के बीच का भाग चाप (Arc) कहलाता है। ल प फ न दीर्घ चाप और ल ब न लघु चाप है। चाप और जीवा के मध्य स्थित सतल का भाग वृत्त का खंड (segment) है। ल प फ न म ल दीर्घ खंड और ल ब न म ल लघु खंड है। दो त्रिज्याओं और उनके छोरों को मिलानेवाले किसी चाप के बीच का क्षेत्र वृत्त का त्रिज्यखंड (Sector) कहलाता है। स ल ब न स त्रिज्यखंड और कोण ल स न त्रिज्यखंड का कोण है।

विश्लेषिक विवेचन (Analytical treatment)

यदि किसी वृत्त (चित्र २) की त्रिज्या और केंद्र (च, छ) ज्ञात हों, और वृत्त पर (य, र) कोई बिंदु हो, तो परिभाषा के अनुसार :

स प = = (य-च)+(र-छ)

अत: वृत्त का समीकरण है :

(य-च)+(र-छ) = .... ...... (१)

यदि केंद्र मूल बिंदु पर हो, तो वृत्त के समीकरण का रूप निम्नलिखित हो जात है :

+=

समीकरण (१) वृत्त का मानक रूप (standard form) है और इस प्रकार भी लिखा जा सकता है :

++२ द य +२ ध र += o������������������������������������������������������������������������������������ .... .... (२)

जिसमें द, ध और स स्थिरांक हैं। समीकरण (२) को निम्नलिखित रूप में भी निगमित (deduced) किया जा सकता है :

(-)+ (-) =

यदि स > o, तो = रखकर समीकरण को मानक रूप में प्राप्त किया जा सकता है। यदि = o, तो वृत्त घटकर बिंदु हो जाता है और यदि < o तो समीकरण (२) वाले वृत्त के बिंदुपथ का अस्तित्व शून्य हो जाता है। अत: समीकरण (२) यदि इसका बिंदुपथ हो, तो यह वृत्त या बिंदु का समीकरण होता है और वृत्त का सामान्य रूप कहलाता है। समीकरण के मानक रूप का महत्व यह है कि वह च, छ और के गुणों को स्पष्टत: व्यक्त करता है, जिनसे वृत्त ज्यामितीय रूप से लक्षित होता है और वृत्त का सामान्य समीकरण वृत्त की सरल बीजगणितीय संरचना बताता है। यह एक द्विघात समीकरण है, जिसमें , र के गुणांक बराबर हैं और य र पद अनुपस्थित है। स्थिरांकों की संख्या तीन है, जो वृत्त के ज्यामितीय गुणों के अनुरूप है, अर्थात् वृत्त तीन स्वतंत्र प्रतिबंधों (independent conditions) को पूरा करता है। उदाहरणार्थ, वह दिए हुए तीन बिंदुओं से गुजर सकता है, या तीन सरल रेखाओं को स्पर्श कर सकता है।

यदि हम समीकरण (२) के बाएँ बाजू को से निरूपित करें तो यह सिद्ध किया जा सकता है कि कोई बिंदु (य, र) वृत्त ज = o के बाहर, वृत्त पर या वृत्त के अंदर पड़ता है। इसका प्रतिबंध ज ( = और = होने पर का मान) का मान एक से अधिक, एक या शून्य होता है। समीकरण (२) द्वारा निरूपित वृत्त का केंद्र (-द, -) है और त्रिज्या श्है।

रेखा और वृत्तश् का प्रतिच्छेदन (Intersection) - वृत्त + = (१) और रेखा = मय + (२) का प्रतिच्छेदन बिंदु समीकरण (१) और (२) से को मुक्त करके द्विघात समीकरण को हल करने से प्राप्त होता है।

(१+म२) +म स य + (- २) = o

समीकरण के मूल वास्तविक (और भिन्न), बराबर या काल्पनिक इस प्रतिबंध के अनुसार होते हैं : (१+) - या o । पहली स्थिति में रेखा वृत्त को दो वास्तविक और सुस्पष्ट बिंदुओं पर काटती है। दूसरी स्थिति में रेखा वृत्त को दो समपाती (coincident) बिंदुओं पर काटती है तथा तीसरी स्थिति काल्पनिक बिंदुओं की है।

वृत्त की स्पर्शरेखा और अभिलंब (normal) - बिंदु जब की ओर रुख करता है, तो वृत्त की जीवा प फ जिस सरल रेखा की ओर रुख करती है, उसे बिंदु पर वृत्त का स्पर्शी कहते हैं। अत: अक्सर कहा जाता है कि स्पर्शरेखा वृत्त से संपाती बिंदुओं पर मिलती है। वृत्त + +द य + + = o के (य,र) बिंदु पर स्पर्शरेखा का समीकरण होता है :

य य + र र +(+) + (+) = o वृत्त के किसी बिंदु पर अभिलंब वह सरल रेखा है, जो उस बिंदु से गुजरती है और उस बिंदु की स्पर्श रेखा पर लंब होती है। अभिलंब का समीकरण है :

र (य+द) - य (र+ध) + द य - ध र = o समीकरण से जाहिर है कि अभिलंब केंद्र से गुजरता है।

किसी भी बिंदु से वृत्त पर दो स्पर्शरेखाएँ खींची जा सकती हैं और ये वास्तविक, संपाती या काल्पनिक होंगी। इसका प्रतिबंध क्रमश: बिंदु का वृत्त के बाहर, वृत्त पर या वृत्त के अंदर होना है। समीकरण (३) वाले वृत्त पर बाहरी बिंदुश् (य, र), से खींची गई स्पर्शरेखा की लंबाई है ++ २द य + २ ध र +

संपर्क की जीवा (Chord of Contact) - यदि किसी बाह्य बिंदु से वृत्त पर दो स्पर्शरेखाएँ खींची जाएँ,, तो संपर्क के बिंदुओं को मिलानेवाली सरल रेखा उस बिंदु से खींची गई स्पर्शी रेखाओं के संपर्क की जीवा कहलाती है। (, र) बिंदु से समीकरण (२) वाले वृत्त पर बनाई गई स्पर्शरेखाओं के संपर्क की जीवा का समीकरण होगा :

य य + र र + द (य+) + ध (र+) + = o

ध्रुवी (Polar) - किसी स्थिर बिंदु से गुजरनेवाली वृत्त की जीवा के सिरों पर खींची गई स्पर्शरेखाओं के प्रतिच्छेदनबिंदु के बिंदुपथ को उस बिंदु का ध्रुवी और बिंदु को ध्रुव (Pole) कहते हैं। (, ) बिंदु का ध्रुवी समीकरण (२) वाले वृत्त के संदर्भ में निम्नलिखित सरल रेखा होगी :

य य + र र + द (य+) + (र+) + = o

मूलाक्ष (Radical axis) - दो वृतों का मूलाक्ष उस बिंदु का बिंदुपथ है जो इस प्रकार चर होता है कि उससे दोनों वृत्तों पर खींची गई स्पर्शरेखाएँ बराबर लंबाई की होती हैं। इसका समीकरण होगा :

२ (द-)य + २ (ध -)र +- = o

यह समीकरण सरल रेखाओं को निरूपित करता है, जिससे स्पष्ट है कि दो वृत्तों का मूलाक्ष उनकी उभयनिष्ठ जीवा है। इसे अनंत त्रिज्या के वृत्त के रूप में समझा जा सकता है।

समाक्ष वृत्त (Coaxal Circles) - उस वृत्त निकाय (system) को समाक्ष वृत्त कहते हैं, जिसके हर दो वृत्तों का मूलाक्ष एक ही हो। दो स्थिर बिंदुओं से गुजरनेवाले वृत समाक्ष निकाय निर्मित करते हैं। समीकरण ++l+ = o समाक्ष वृत्तों के निकाय को निरूपित करता है, जिनका मूलाक्ष र-अक्ष है। यदि ऋणात्मक है, तो वृत्त -अक्ष को वास्तविक बिंदुओं (o, + ) और (o, - ) पर काटता है और ये बिंदु वृत्तनिकाय के हर वृत्त के लिए होते हैं। यदि धनात्मक हो, तो वृत्त -अक्ष को काल्पनिक बिंदुओं पर काटता है।

लंबकोणीय वृत्त (Orthogonal circles) - यदि दो वृत्त बिंदु और पर मिलें, तो वे और पर बराबर कोण पर एक दूसरे को काटते हैं। जब यह कोण समकोण होता है, तो वृत्त लंबकोणीय कहलाते हैं। लंबकोणीय वृत्त का प्रतिबंध है :

२ द द + २ ध ध =+

वृत्त के संदर्भ में किसी बिंदु की शक्ति (Power) - यदि (, ) से गुजरनेवाली रेखा समीकरण (२) वाले वृत्त को और पर काटे तो गुणनफल पअ पब, जो से गुजरनेवाली रेखा की दिशा से स्वतंत्र है, वृत्त के संदर्भ में बिंदु की शक्ति कहलाता है। यह धनात्मक, शून्य या ऋणात्मक होती है, जिसका प्रतिबंध क्रमश: बिंदु का वृत्त के बाहर, वृत्त पर या वृत्त के भीतर होता है।

वृत्त का विस्तार कलन (Mensuration)

वृत्त की ज्यामिति उसके कुछ बहुत महत्व के गुणों को प्रदर्शित करती है। ये गुण वृत्त की सममित (symmetry) प्रकृति के कारण है। केंद्र के चारों ओर घूर्णन करने (rotate) पर वृत्त का रूप नहीं बदलना। एक महत्वपूर्ण गुण यह है कि प्रत्येक जीवा उस लंब से समद्विभाजित होती है जो उसपर केंद्र से डाला जाता है। वृत्त के किसी चाप के छोरबिंदुओं को केंद्र से मिलाने वाली रेखाओं के बीच का कोण उस कोण का दूना होता है जो इन्हीं छोर के बिंदुओं को बाकी चाप के किसी बिंदु से मिलानेवाली रेखाओं के बीच बनता है। अर्धवृत्त का कोण समकोण होता है।

वृत्त का क्षेत्रफल p होता है, जहाँ त्रिज्या तथा p परिधि और व्यास की लंबाइयों का अनुपात है। दशमलव के बीस स्थानों तक p का परिशुद्ध मान ३.१४१५९२६५३५८९७९ ३२३८४६ है और स्थूल रूप से २२/७ है। सामान्यतया २२/७ मान का उपयोग किया जाता है। त्रिज्य खंड का क्षेत्रफल श्ब ल है, जहाँ चाप की लंबाई है और त्रिज्या है। वृत्त श्की परिधि २p है। इन परिणामों से यह ज्ञात होता है कि वृत्त की परिधि की लंबाई की सरल रेखा, या वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर का वर्ग खींचना संभव नहीं है। वृत्त के किसी चाप के बराबर लंबाई की सरल रेखा भी नहीं खींची जा सकती। ( ब्रज रत्न दास)