वूल्जे, टॉमसश् (१४७५-१५३०) राबर्ट वूल्जे और उनकी पत्नी जोन के पुत्र टॉमस वूल्जे का जन्म १४७५ के लगभग इप्सविच में हुआ। उनकी शिक्षा आक्सफोर्ड के मैग्डालेन कालिज में हुई, जहाँ उन्होंने १५ वर्ष की उम्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे इस कालिज में शिक्षक भी नियुक्त हुए। १४९८ में उन्हें धर्माचार्य बना दिया गया, और 'डारसेट के मार्क्विस् की कृपा से 'लिमिंगटन' के रैक्टर नियुक्त हुए। १५०१ में डीन के आर्चबिशप ने उन्हें अपना निजी पादरी नियुक्त किया। इसके बाद वे सर रिचर्ड नान फान के द्वारा अपने पादरी नियुक्त किए गए श्और उन्होंने इनकी सिफारिश इंग्लैंड के राजा हेनरी सप्तम से की। १५०७ में नान फान की मृत्यु के पश्चात् राजा ने उन्हें अपना पादरी नियुक्त किया और उन्हें कूटनीतिक कार्य भी दिया। १५०८ में उन्हें स्कॉटलैंड के राजा जेम्स चतुर्थ के पास भेजा गया।
राजा हेनरी अष्टम ने उन्हें पुरोहित संबंधी अनेक कार्य सौंपे। १५११ में वे प्रिवी काउंसिल के सदस्य नियुक्त हुए, और इस नियुक्ति ने उन्हें सरकार के कार्यों पर नियंत्रण रखने का अवसर दिया। इस समय सरकार का नियंत्रण दो दलों में विभक्त था। (१) पादरी और शांतिदल-जिसका नेतृत्व रिचर्ड फॉक्स तथा आर्चबिशप वारहम करते थे। (२) युद्ध दल-वूल्जे इस संतुलन को भंग कर युद्ध दल में मिल गए, और १५१२-१३ में युद्ध की तैयारी कर उत्तरी फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। फ्रांस को पराजित कर १५१४ में मेरी टयूडर का विवाह फ्रांस के लुई द्वादश से करवाया। १५१५ में फ्रांस के राजा फ्रांसिस प्रथम की विजय 'मैरिगनानो' के युद्धस्थल में हुई। फ्रांसिस को नीचा दिखाने के लिए वूल्जे ने सम्राट् मैक्सिमिलियन की सहायता की। वूल्जे की इन युद्धयोजनाओं को देखकर फॉक्स और वारहम ने त्यागपत्र दे दिए और इस प्रकार परिस्थिति वूल्जे के हाथ में आ गई।
वे विदेश नीति में काफी सफल रहे। सम्राट् चार्ल्स पंचम से उनकी मित्रता थी। चार्ल्स ने उन्हें पोप बनाने का आश्वासन दिया। परंतु वे १५२१ और १५२४ में असफल रहे। १५२५ में वूल्जे ने चार्ल्स को फ्रांस की पराजय में सहायता दी। इस प्रकार शक्ति का संतुलन हुआ। इस संतुलन पर इंग्लैंड का मान निर्भर था। १५२६ में और १५२८ के बीच वे जनता में अप्रिय रहे। बूल्जे परश् इन निरर्थक युद्धों में इंग्लैंड को फँसाने का आरोप लगाया गया। १५२९ में सम्राट् और फ्रांस के बीच संधि हुई, और इस संधि में इंग्लैंड को नहीं पूछा गया।
वूल्जे की विदेशी नीति की असफलता की प्रतिक्रिया गृहनीति पर भी हुई। न्याय का सृदृढ़ शासन, सामंतों का दमन और उनकी राजा के प्रति राजभक्ति ने उन्हें अप्रिय बनाया। सामंत पादरियों द्वारा शासित नहीं होना चाहते थे१ वूल्जे के दुर्भाग्य से १५२९ में एक दुर्घटना हुई। इंग्लैंड का राजा हेनरी अष्टम अपनी पत्नी कैथरीन को त्यागना चाहता था, और उसके लिए वह पोप से आज्ञा लेना चाहता था। यह कार्य वूल्जे को सौंपा गया। पोप सम्राट् चार्ल्स के हाथ में था। वूल्जे अपने राजा की इस इच्छा को पूरा न कर सके। संसद् उनके विरोध में थी। सामंत उनसे घृणा करते थे। पादरी भी उनसे रुष्ट थे। ऐसी परिस्थिति में राजा का भी खिन्न हो जाना गिरते को लात मारना था। राजा ने निश्चय किया कि अब वह स्वयं शासन करेगा। वूल्जे को अपने समस्त पदों को त्यागना पड़ा और उन्हें पेंशन दी गई। अपने जीवन के कुछ अंतिम क्षण उन्होंने धार्मिक कृत्यों के पालन में बिताए। राजा का उनपर संदेह पूर्ववत् बना रहा और उन्हें लंदन बुलाया गया। मार्ग में लिसिस्टर में ३० नवंबर, १५३० को उसकी इहलीला समाप्त हो गई। (गिरिजा कािशेर गहराना.)