वीरसिंह, भाई (१८७२-१९५७ ई.) आधुनिक पंजाबी साहित्य के प्रवर्तक; नाटककार, उपन्यासकार, निर्बधलेखक, जीवनीलेखक तथा कवि। जन्मस्थान अमृतसर (पंजाब), पिता सिख नेता डाक्टर चरणसिंह। आरंभ में चीफ खालसा दीवान और 'सिंघसभा' आंदोलन की सफलता के लिए अनेक ट्रैक्ट लिये जिनका उद्देश्य सिखमत की श्रेष्ठता, एकता और हिंदू धर्म से पृथक्ता का जनता में प्रचार करना था। पंजाबी के निबंध साहित्य मे इन ट्रैक्टों का महत्वपूर्ण स्थान है। १८९४ ई. में आपने 'खालसा ट्रैक्ट सोसाइटी' की नींव रखी। १८९९ ई. में साप्ताहिक 'खालसा समाचार' निकाला। इससे पहले 'सुंदरी' (१८९७ ई.) के प्रकाशन के साथ आप पंजाबी के प्रथम उपन्यासकार के रूप में आ चुके थे। १८९९ ई. में आपका दूसरा उपन्यास 'बिजैसिंध' और १९०० ई. में तीसरा उपन्यास 'सतवंत कौर' प्रकाशित हुआ। इनका अंतिम उपन्यास 'बाबा नौध सिंध' बहुत बाद (१९२१ ई.) में प्रकाश में आया। कला की दृष्टि से यह उपन्यास उच्च कोटि के नहीं कहे जा सकते। सुधारवाद इनका प्रमुख ध्येय है। इनके सिख पात्र धार्मिक, त्यागी और वीर हैं; मुसलमान पात्र क्रूर, निर्दय और भिखारी हैं; तथा हिंदू पात्र प्राय: भीरु, स्वार्थ तथा धोखेबाज हैं। कथानक की दृष्टि से आज ये उपन्यास पाठकों को नीरस और संकीर्ण लगते हैं, किंतु वर्तमान शती के प्रथम चरण में इनका सिखों में बहुत प्रचार था। इनकी कहानियाँ भी इसी तरह की हैं - अधिकतर का संबंध सिख इतिहास से है। छोटी-छोटी जीवनियों के अतिरिक्त आपने गुरु गोविंदसिंह की जीवनी 'कलगीधर चमत्कार' नाम से और नानक की 'गुरु नानक चमत्कार' नाम से प्रकाशित की। 'राजा लखदातासिंध' आपका एकमात्र नाटक है। आपके गद्य साहित्य के विशेष गुण है भावों की सुष्ठुता, भाषा का ठेठपन, व्यजना की तीव्रता, वर्णन की काव्यात्मकता, और गठन की साहित्यिकता।

यद्यपि मात्रा में कविता की अपेक्षा आपका गद्य अधिक है, तथापि आप मुख्यत: कवि के रूप में विख्यात हैं। आपकी प्रथम कविता 'राणा सूरतसिंध' सिरखंडी छंद में अतुकांत कथा है। विषय धार्मिक और कथावस्तु प्रचारात्मक है। कुछ साहित्यिक गुण अवश्य है परंतु कम। बाद की कविताएँ मुक्तक हैं और इनमें भाई जी सांप्रदायिक संकीर्णता से मुक्त होते गए हैं। 'लहरां दे हार' (१९२१), 'प्रीत वीणा', 'कंब दी कलाई', 'कंत महेली' और 'साइयाँ जीओ' आपके प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। इनमें अधिकतर गीत हैं। अन्य छोटी कविताओं में रुबाइयाँ हैं जो पंजाबी साहित्य में विशेष देन के रूप में बहुमान्य हैं। बड़ी कविताओं में 'मरद दा कुत्ता' और 'जीवन की है' आदि हैं, पर इनमें वह रस नहीं है। कवि का काव्यक्षेत्र प्रकृति के 'सिरजनहार' के बाहर नहीं रहा। वे राजनीति और समाज के झमेलों से दूर भावलोक में रहकर मस्ती और बेहोशी चाहते हैं। उनका कहना है कि जीवन की दुरंगी से दूर एकांत में मंतव्य की प्राप्ति हो सकती है। उनकी कविताएँ प्राय: छायावादी या रहस्यवादी है। शांत रस की प्रधानता है। प्रकृति संबंधी कविताओं में कश्मीर के दृश्य बहुत सुंदर बन पाए हैं। कवि पदार्थों का वर्णन यथातथ्य रूप में नहीं करते, अपितु उनमें से संदेश पाने का प्रयत्न करते हैं। कवि ने अंग्रेजी और उर्दू काव्य तथा पंजाबी लोकगीतों से अनेक तत्व ग्रहण करके उन्हें नया रूप प्रदान किया है। कुछ काव्यरूप और छंद भी इन्हीं स्रोतों से अपनाए है, कुछ अपने भी दिए हैं। छंदों की विविधता, विचारों और भावों का संयम और भाषा की प्रभावपूर्णता अपकी कविता के विशेष गुण है।

व्यक्तिगत रूप से आप संगीत और कला के प्रेमी थे। पंजाब विश्वविद्यालय ने आपको डी.लिट्. की उपाधि देकर सम्मानित किया था। भाई जी की रचनाएँ भाषाविभाग (पंजाब) और साहित्य अकादमी (नई दिल्ली) द्वारा पुरस्कृत हुई हैं। (हरदेव बाहरी)