विषम दृष्टि (Ametropia) जब विश्रामपूर्ण नेत्र में समांतर प्रकाश किरणें रेटिना (retina) पर संगमित न होकर उसके सम्मुख अथवा पार्श्व में होती हैं, तो ऐसी अवस्था को विषम दृष्टि कहते हैं।

विषम दृष्टि (प्रकाश के अपवर्तन की त्रुटियाँ) निम्न प्रकार की होती है : (क) दीर्घ दृष्टि (Hypermetropia), (ख) निकट दृष्टि (Myopia) तथा (ग) दृष्टि वैषम्य (Astigmatism)।

दीर्घ दृष्टि - यह उस प्रकार की विषम दृष्टि है जिसमें नेत्र का मुख्य अक्ष लघु हो जाता है, अथवा नेत्र की अपवर्तन शक्ति क्षीण होती है। अत: समांतर प्रकाशकिरणें रेटिना के पार्श्व में संगमित हो जाती हैं।

निकट दृष्टि - यह उस प्रकार की विषम दृष्टि है जिसमें नेत्र का मुख्य अक्ष दीर्घ हो जाता है, अथवा नेत्र की अपवर्तन शक्ति अधिक हो जाती है। अत: समांतर प्रकाशकिरणें रेटिना के समक्ष संगमित हो जाती हैं।

दृष्टि वैषमय - यह उस प्रकार की विषम दृष्टि है जिसमें नेत्र के वृत्ताकारों (meridians) में प्रकाश का अपवर्तन भिन्न भिन्न होता है।

दृष्टिवैषम्य दो प्रकार का होता है :

(१) नियमित (Regular)

(२) अनियमित (Irregular)

अनियमित दृष्टिवैषम्य मौलिक दोषों के कारण होता है, जैसे किरेटोनस, अथवा प्राप्त दशा, जैसे कॉर्निया की अपारदर्शकता।

(१) साधारण दीर्घ दृष्टि दृष्टिवैषम्य, (२) यौगिक दीर्घ दृष्टि दृष्टिवैषम्य, (३) साधारण निकट दृष्टि दृष्टिवैषम्य, (४) यौगिक निकट दृष्टि दृष्टिवैषम्य तथा (५) मिश्रित दृष्टिवैषम्य, जिसमें एक वृत्ताकर दीर्घ दृष्टिवैषम्य, जिसमें एक वृत्ताकार दीर्घ दृष्टि एवं अन्य निकट दृष्टि होती है। (सत्य पाल गुप्ता)