विषकन्या का प्रयोग राजा अपने शत्रु का छलपूर्वक अंत करने के लिए किया करते थे। किसी रूपवती बालिका को बचपन से ही विष की अल्प मात्रा देकर पाला जाता था और विषैले वृक्ष तथा विषैले प्राणियों के संपर्क से उसको अभ्यस्त किया जाता था। इसके अतिरिक्त उसको संगीत और नृत्य की भी शिक्षा दी जाती थी, एवं सब प्रकार की छल विधियाँ सिखाई जाती थीं। अवसर आने पर इस विषकन्या को युक्ति और छल के साथ शत्रु के पास भेज दिया जाता था। इसका श्वास तो विषमय होता ही था, परंतु यह मुख में भी विष रखती थी, जिससे संभोग करनेवाला पुरुष रोगी होकर मर जाता था। (मुरारी लाल शर्मा)