विश्वेश्वरैया, मोक्षगुंदम (सन् १८६१-१९६२) प्रसिद्ध भारतीय इंजीनियर तथा प्रशासक थे। इनकी शिक्षा बैंगलूरु के सेंट्रल कॉलेज तथा सायंस कॉलेज, पूना, में हुई थी। पूना से ही सन् १८८३ के परीक्षार्थियों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर, आप इंजीनियरी के स्नातक हुए तथा बंबई के सरकारी निर्माण विभाग में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त हुए। इस पद से उन्नति करते हुए अधीक्षक इंजीनियर के पद तक पहुँचकर सन् १९०८ में आपने स्वेच्छा से अवकाश ग्रहण किया।
इन चौबीस वर्षों में आपने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमें एक नए प्रकार के अपशिष्ट-बंधिका पूरद्वार (waste weir floodgate) का निर्माण तथा एडेन (Aden) की सैनिक बस्ती के जलसंभरण तथा जलनिकास आयोजन तैयार करना, सम्मिलित है।
अवकाश ग्रहण के पश्चात् कुछ काल तक निजाम के हैदराबाद राज्य में बाढ़ रोकने और जलनिकास के संबंध में राय देने का काम आपने किया, पर बाद में मैसूर राज्य के सरकारी निर्माण विभाग में मुख्य इंजीनियर और सेक्रेटरी नियुक्त हुए तथा सन् १९१२ में इसी राज्य के दीवान का पद आपने सम्हाला। इस पद पर छह वर्ष रहकर आपने न केवल इंजीनियरी, वरन् समाजसुधार तथा शिक्षा के क्षेत्र में अपूर्ण काम किए। आपके सुझावों से राज्य के शासन तथा शिक्षापद्धति में सुधार हुए, सन् १९१६ में मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तथा प्रजा की प्रतिनिधि संस्थाओं को विस्तृत अधिकार मिले। यहाँ का कृष्णराज सागर बाँध आपका ही बनवाया हुआ है। आपकी चेष्टाओं के फलस्वरूप राज्य में नए नए उद्योग स्थापित हुए। राज्य से गुजरनेवाली रेल का प्रबंध भी आपने अपने हाथ में लेकर उसमें सुधार किए। सेवानिवृत्त होने पर भी राज्य के लाभ के अनेक काम आपके हाथों पूरे हुए।
इंजीनियरी विषयक कामों के संबंध में आपकी सलाह की समस्त देश में बहुत माँग थी। बंबई और कराची के कॉर्पोरेशनों को सलाह देने के सिवाय, कई नगरों के जलसंभरण और निकास, उड़ीसा में बाढ़ नियंत्रण तथा तुंगभद्रा से संबंधित आयोजन आपकी ही सूझ के परिणाम थे। बाँधों और जलाशयों पर सौराष्ट्र शासन को तथा बिहार में गंगा के पुल निर्माण पर केंद्रीय सरकार को भी आपने बहुमूल्य सलाहें दीं।
सन् १९२२ के सत्याग्रह आंदोलन के समय सर्वदल परिषद् के अध्यक्ष के रूप में आपने राउंड टेबुल कॉन्फरेंस बुलाने पर जोर दिया तथा सन् १९२९ में आप दक्षिण भारत राज्य जन परिषद् के सभापति रहे। सन् १९४१ में आपने सर्वभारतीय निर्माता संघ की स्थापना की, जिससे उद्योगों का लाभ पहुंचा।
कलकत्ता, पटना तथा इलाहाबाद के विश्वविद्यालयों ने आपको डी.एस.सी., बंबई तथा मैसूर विश्वविद्यालयों ने एल.एल.डी. तथा बनारस हिंदू युनिवर्सिटी ने डी.लिट्. की सम्मानसूचक उपाधियाँ दी। ब्रिटिश भारत सरकार ने सन् १९१५ में के.सी.आइ.ई. की तथा स्वतंत्र भारत ने सन् १९५५ में भारतरत्न की उपाधि प्रदान की।
देश की सेवा में अनेक सृजनात्मक कार्यों का संपादन और अक्षय कीर्ति प्राप्त कर, पूरे सौ वर्ष की आयु भोगकर, अपनी जन्मशताब्दी के उत्सव के बाद, १४ अप्रैल, १९६२, को आप दिवंगत हुए। (भगवान दास वर्मा)