विश्वयुद्ध, प्रथम (१९१४-१९१९) औद्योगिक क्रांति के कारण सभी बड़े देश ऐसे उपनिवेश चाहते थे जहाँ से वे कच्चा माल पा सकें तथा मशीनों से बनाई हुई वस्तुएँ बेच सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सैनिक शक्ति बढ़ाई गई और गुप्त कूटनीतिक संधियाँ की गईं। इससे राष्ट्रों में अविश्वास और वैमनस्य बढ़ा और युद्ध अनिवार्य हो गया। ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी का वध इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। यह घटना २८ जून, १९१४, को सेराजेवो में हुई थी। एक मास पश्चात् ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की। अगस्त में जापान, ब्रिटेन आदि की ओर से, और कुछ समय बाद टर्की, जर्मनी की ओर से, युद्ध में शामिल हुए। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका तीन महाद्वीपों और जल, थल तथा आकाश में लड़ा गया। प्रारंभ में जर्मनी की जीत हुई। १९१७ में जर्मनी ने अनेक व्यापारी जहाजों को डुबोया। इससे अमरीका ब्रिटेन की ओर से युद्ध में कूद पड़ा किंतु रूसी क्रांति के कारण रूस महायुद्ध से अलग होगा। १९१८ ई. में ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका ने जर्मनी आदि राष्ट्रों को पराजित किया। जर्मनी और आस्ट्रिया की प्रार्थना पर ११ नवंबर, १९१८ को युद्ध की समाप्ति हुई। (ओं. प्र.)
इस महायुद्ध के अंतर्गत अनेक लड़ाइयाँ हुई। इनमें से टेनेनबर्ग (२६ से ३१ अगस्त, १९१४), मार्नं (५ से १० सितंबर, १९१४), सरी बइर (Sari Bair) तथा सूवला खाड़ी (६ से १० अगस्त, १९१५), वर्दूं (२१ फरवरी, १९१६ से २० अगस्त, १९१७), आमिऐं (८ से ११ अगस्त, १९१८), एव वित्तोरिओ बेनेतो (२३ से २९ अक्तूबर, १९१८) इत्यादि की लड़ाइयों को अपेक्षाकृत अधिक महत्व दिया गया है। यहाँ केवल दो का ही संक्षिप्त वृत्तांत दिया गया है।
जर्मनी द्वारा किए गए १९१६ के आक्रमणों का प्रधान लक्ष्य बर्दूं था। महाद्वीप स्थित मित्र राष्ट्रों की सेनाओं का विघटन करने के लिए फ्रांस पर आक्रमण करने की योजनानुसार जर्मनी की ओर स २१ फरवरी १९१६ ई. को बर्दूं युद्धमाला का श्रीगणेश हुआ। नौ जर्मन डिवीज़न ने एक साथ मॉज़ेल (Moselle) नदी के दाहिने किनारे पर आक्रमण किया तथा प्रथम एवं द्वितीय युद्ध मोर्चों पर अधिकार किया। फ्रेंच सेना का ओज जनरल पेतैं (Petain) की अध्यक्षता में इस चुनौती का सामना करने के लिए बढ़ा। जर्मन सेना २६ फरवरी को बर्दूं की सीमा से केवल पाँच मील दूर रह गई। कुछ दिनों तक घोर संग्राम हुआ। १५ मार्च तक जर्मन आक्रमण शिथिल पड़ने लगा तथा फ्रांस को अपनी व्यूहरचना तथा रसद आदि की सुचारु व्यवस्था का अवसर मिल गया। म्यूज के पश्चिमी किनारे पर भी भीषण युद्ध छिड़ा जो लगभग अप्रैल तक चलता रहा। मई के अंत में जर्मनी ने नदी के दोनों ओर आक्रमण किया तथा भीषण युद्ध के उपरांत ७ जून को वाक्स (Vaux) का किला लेने में सफलता प्राप्त की। जर्मनी अब अपनी सफलता के शिखर पर था। फ्रेंच सैनिक मार्ट होमे (Mert Homme) के दक्षिणी ढालू स्थलीय मोर्चों पर डटे हुए थे। संघर्ष चलता रहा। ब्रिटिश सेना ने सॉम (Somme) पर आक्रमण कर बर्दूं को छुटकारा दिलाया। जर्मनी का अंतिम आक्रमण ३ सितंबर को हुआ था। जनरल मैनगिन (Mangin) के नेतृत्व में फ्रांस ने प्रत्याक्रमण किया तथा अधिकांश खोए हुए स्थल विजित कर लिए। २० अगस्त, १९१७ के बर्दूं के अंतिम युद्ध के अतिंम युद्ध के उपरांत जर्मनी के हाथ्प में केवल ब्यूमांट (Beaumont) रह गया। युद्धों ने फ्रैंच सेना को शिथिल कर दिया था, जब कि आहत जर्मनों की संख्या लगभग तीन लाख थी और उसका जोश फीका पड़ गया था। (गिरिजाांकर मिश्र)
आमिऐं (Amiens) के युद्धक्षेत्र में मुख्यत: मोर्चाबंदी अर्थात् खाइयों की लड़ाइयाँ हुईं। २१ मार्च से लगभग २० अप्रैल तक जर्मन अपने मोर्चें से बढ़कर अंग्रेजी सेना को लगभग २५ मील ढकेल आमिऐं के निकट ले आए। उनका उद्देश्य वहाँ से निकलनेवाली उस रेलवे लाइन पर अधिकार करना था, जो कैले बंदरगाह से पेरिस जाती है और जिससे अंग्रेजी सेना और सामान फ्रांस की सहायता के लिए पहुँचाया जाता था।
लगभग २० अप्रैल से १८ जुलाई तक जर्मन आमिऐं के निकट रुके रहे। दूसरी ओर मित्र देशों ने अपनी शक्ति बहुत बढ़ाकर संगठित कर ली, तथा उनकी सेनाएँ जो इससे पूर्व अपने अपने राष्ट्रीय सेनापतियों के निर्देशन में लड़ती थीं, एक प्रधान सेनापति, मार्शल फॉश के अधीन कर दी गईं।
जुलाई, १९१८ के उपरांत जनरल फॉश के निर्देशन में मित्र देशों की सेनाओं ने जर्मनों को कई स्थानों में परास्त किया।
जर्मन प्रधान सेनापति लूडेनडार्फ ने उस स्थान पर अचानक आक्रमण किया जहाँ अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी सेनाओं का संगम था। यह आक्रमण २१ मार्च को प्रात: ४।। बजे, जब कोहरे के कारण सेना की गतिविधि का पता नहीं चल सकता था, ४००० तोपों की गोलाबारी से आरंभ हुआ। ४ अप्रैल को जर्मन सेना कैले-पेरिस रेलवे से केवल दो मील दूर थी। ११-१२ अप्रैल को अंग्रेजी सेनापतियों ने सैनिकों से लड़ मरने का अनुरोध किया।
तत्पश्चात् एक सप्ताह से अधिक समय तक जर्मनों ने आमिऐं के निकट लड़ाई जारी रखी, पर वे कैले-पैरिस रेल लाइन पर अधिकार न कर सके। उनका अंग्रेजों को फ्रांसीसियों से पृथक् करने का प्रयास असफल रहा।
२० अप्रैल से लगभग तीन महीने तक जर्मन मित्र देशों को अन्य क्षेत्रों में परास्त करने का प्रयत्न करते रहे, और सफल भी हुए। किंतु इस सफलता से लाभ उठाने का अवसर उन्हें नहीं मिला। मित्र देशों ने इस भीषण स्थिति में अपनी शक्ति बढ़ाने के प्रबंध कर लिए थे।
२५ मार्च को जेनरल फॉश इस क्षेत्र में मित्र देशों की सेनाओं के सेनापति नियुक्त हुए। ब्रिटेन की पार्लमेंट ने अप्रैल में सैनिक सेवा की उम्र बढ़ाकर ५० वर्ष कर दी, और ३,५५,००० सैनिक अप्रैल मास के भीतर ही फ्रांस भेज दिए। अमरीका से भी सैनिक फ्रांस पहुंचने लगे थे, और धीरे धीरे उनकी संख्या ६,००,००० पहुंच गई। नए अस्त्रों तथा अन्य आविष्कारों के कारण मित्र देशों की वायुसेना प्रबल हो गई। विशेषकर उनके टैक बहुत कार्यक्षम हो गए।
१५ जुलाई को जर्मनों ने अपना अंतिम आक्रमण मार्न नदी पर पेरिस की ओर बढ़ने के प्रयास में किया। फ्रांसीसी सेना ने इसे रोकर तीन दिन बाद जर्मनों पर उसी क्षेत्र में शक्तिशाली आक्रमण कर ३०,००० सैनिक बंदी किए। फिर ८ अगस्त को आमिऐं के निकट जनरल हेग की अध्यक्षता में ब्रिटिश तथा फ्रांसीसी सेना ने प्रात: ४।। बजे कोहरे की आड़ में जर्मनों पर अचानक आक्रमण किया। इस लड़ाई में चार मिनट तोपों से गोले चलाने के बाद, सैकड़ों टैंक सेना के आगे भेज दिए गए, जिनके कारण जर्मन सेना में हलचल मच गई। आमिऐं के पूर्व आब्र एवं सॉम नदियों के बीच १४ मील के मोरचे पर आक्रमण हुआ, और उस लड़ाई में जर्मनों की इतनी क्षति हुई कि सूडेनडोर्फ ने इस दिन का नामकरण जर्मन सेना के लिए काला दिन किया।
बर्साई की संधि में जर्मनी पर कड़ी शर्तें लादी गईं। इसका बुरा परिणाम द्वितीय विश्वयुद्ध के रूप में प्रकट हुआ और राष्ट्रसंघ की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य की पूर्ति न हो सकी। (प.)
द्वितीय - (१९३९-१९४५) पेरिस की संधि के पश्चात् विजयी राष्ट्रों को मनमाना दंड देना चाहा। जर्मनी और इटली आदि देशों में आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि सत्ता हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाही शासकों के हाथ में आ गई। राष्ट्रसंघ ने उनके अत्याचारों को रोकना चाहा परंतु असफल रहा। रूस और जर्मनी ने पोलैंड पर अधिकार कर लिया। ब्रिटेन और फ्रांस पोलैंड की ओर से युद्ध में कूद पड़े। प्रारंभ में जर्मनी और इटली ने फ्रांस को पराजित किया और उसे इन दोनों देशों से संधि करनी पड़ी। अमरीका की सहायता से ब्रिटेन लड़ता रहा। जापान जर्मनी की ओर से अमरीका के विरुद्ध युद्ध में कूद पड़ा। इटली ने ब्रिटेन के विरुद्ध अफ्रीका में भी युद्ध प्रारंभ कर दिया। १९४१ में जर्मनी और रूस ने प्राय: समस्त यूरोप पर अधिकार कर लिया। जब बालकन प्रदेशों पर जर्मनी ने अधिकार किया तो रूस उसके विरुद्ध हो गया। जर्मनी ने उसपर आक्रमण किया तो ब्रिटेन और अमरीका ने उसकी सहयता की। १९४२-४४ तक जर्मनी आदि देश आक्रामक नीति छोड़कर अपनी सुरक्षा में लगे रहे। अंत में रूस, ब्रिटेन और अमरीका विजयी हुए। ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी और इटली को बुरी तरह हराया। ७ मई, १९४५ को जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया। अमरीका ने पहली बार परमाणु बम का प्रयोग हीरोशीमा (६ अगस्त, १९४५) तथा नागासाकी पर करके जापान को पराजित किया। भविष्य में शांति रखने के लिए ५१ राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना की। (ओं. प्र.)