िवश्वकर्मा वैदिक सौर देवता जिन्हें 'धातृ' तथा 'विधातृ', सर्वद्रष्टा, पृथ्वी तथा प्राणिजगत् का जनक और समस्त देवों का नामकरण करनेवाला कहा गया है। वैदिकोत्तर साहित्य में ये ही शिल्पशास्त्रज्ञ या शिल्पप्रजापति के रूप में प्रतिष्ठा हैं जो प्रभास वसु और वृहस्पति की बहन वरवर्णिनी या योगसिद्धा अथवा वास्तु और आंगिरसी के पुत्र थे। इन्होंने देवताओं के लिए विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र, आभूषण, विमान, प्रासाद आदि बनाए और द्वारका, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, बृंदावन, लंका, इंद्रलोक आदि की रचना की। ब्रह्मा के लिए पुष्पक विमान बनाया था जो ब्रह्मा से कुबेर और कुबेर से रावण को मिला। इनके पुत्र नल ने लंका का सेतु बनाया था। इन्होंने दो प्रकार के धनुषों की रचना की थी। इनमें से एक देवताओं ने त्रिपुरासुर के वधार्थ शिव जी को दिया था। दूसरा विष्णु को दिया जो परशुराम को प्राप्त हुआ था।
रामायण में विश्वकर्मा के पुत्र विश्वरूप का वध इंद्र द्वारा कराया गया है (किष्किंधाकांड) और उसी में उस भवन का वर्णन है जिसे कुंजर पर्वत पर विश्वकर्मा ने अगस्त्य के लिए बनाया था। इनकी अन्य रचनाओं में सहस्रार चक्र और कुबेर की अलकापुरी भी थी। कृति के अतिरिक्त रति, प्राप्ति और नंदी इनकी चार भार्याओं, मनु चाक्षुष, शम, काम, हर्ष, नल, विश्वरूप, वृत्रासुर सात पुत्रों और संज्ञा, छाया, तिलोत्तमा तथा वर्हिष्मती चार कन्याओं का उल्लेख मिलता है। ((स्वर्गीय) रामाज्ञा द्विवेदी)