विलियम ब्लेक अंग्रेजीं कवि, चित्रकार और रहस्यवादी। उसका जन्म लंदन में २८ सितंबर १७५७ ई. को हुआ और मृत्यु १२ जुलाई १८२७ को हुई। सेंट पाल के ड्राइंग स्कूल में उसने परंपरित शैली की ड्राइंग की ट्रेनिंग पाई। जेम्स बेज़ीयर उसके रायल एकेडेमी में गुरु रहे। परंतु उसने परंपरित शैली से विद्रोह किया। अच्छे घर का होने पर भी ब्लेक को बहुत संघर्षों में से गुजरना पड़ा। उसका अंत आर्थिक दैन्य में हुआ। उसने प्राचीन और नवीन लेखकों के लिए कई प्रकार के रेखाचित्र और धातुतक्षणवाले चित्र (एचिंग) आदि बाए। बर्जिल, दांते, चॉसर, मेरी वाल्स्टोनक्रैफ्ट और एडवर्ड यंग की कृतियों और अपनी स्वयं की रचनाओं पर चित्र बनाए विशेषत: प्रतीकात्मक चित्र। कविता और चित्र के निकट संबंध में प्रयोग ब्लेक का बहुत बड़ा योगदान साहित्य को है। कुछ लोग उसे विक्षािप्त समझते थे परंतु वह रूढिवाद का विरोध, धर्म संस्था के प्रति और कला साहित्य के क्षेत्र में भी, करता रहा।
ब्लेक अपने समय के अतिभौतिकवाद और अति बौद्धिकता से ऊब गया था। उसने अपने आसपास के और कल्पना में के भी पापी, अपराधी और दुष्ट व्यक्तियों का चित्रण किया, परंतु उनके भीतर कोई दैवी शक्ति निवास कर रही है, कोई सुधरने की संभावना है, यह मानकर। उसकी पंक्तियाँ हैं कि 'दया को मानवी हृदय है; करुणा को मानवी चेहरा; और प्रेम को मानवी रूप है जो दैवी है।' उसके चित्रों में बार बार खिड़की से झाँकता हुआ ईश्वरीय अंश दिखाई देता है। ईश्वर और उसके देवदूत वृक्षों की छाँह में विश्राम कर रहे हैं। हर फूल और पत्ते में वे हैं। ब्लेक ने अपनी कविताओं पर स्वयम् चित्र बनाए। कविता और चित्र ताँबे की प्लेटों पर उकेरे। स्वयम् अपनी कविता पुस्तकें छापीं, उनपर जलरंगों से चित्र बनाए। ऐसी पुस्तकें अब संग्रहकर्ताओं के लिए बहुत अमूल्य हो गई हैं। ब्लेक की कविता और चित्र दोनों का प्रधान उद्देश्य नैतिक था। आत्मा की सच्ची स्वतंत्रता की झाँकी वह अपनी रचनाओं द्वारा देना चाहता था। उसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक या दार्शनिक नहीं था। वह सामाजिक, राजनीतिक सुधार भी चाहता था और पूरी स्वतंत्रता का पक्षपाती था। वह मनुष्य की महत्ता और स्वाभिमानरक्षा में विश्वास करता था। वह हर प्रकार अन्याय और तानाशाही का विरोधी था।
परंतु ब्लेक को उसके समय के लोग पूरी तरह समझ नहीं सके। उसके संकेतवादी प्रतीकों पर अत्यधिक बल, अंतर्मुखी कला, विशिष्ट निजी शैली के कारण उसको लोगों ने पागल मान लिया। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक ब्लेक के मौलिक क्रांतिकारी सिद्धांत, शैली, विचार तथा टेकनीक को अंग्रेजी साहित्य में प्रतिष्ठा न प्राप्त हो सकी। उसकी कई कविताएँ तो अब तक अबुझ हैं। उसके छोटे छोटे गीत बहुत लोकप्रिय हुए। सुलभ सहजता जो उसकी 'दि लैंड', 'दि टाइगर', 'दि चिमनी', 'स्वीपर' जैसी कविताओं में है वह बाद के रहस्यवादी कवियों के लिए प्रेरणा बनी। बौद्धिकता के युग में उसका विरोध वैज्ञानिक शंका के युग में श्रद्धा का समर्थन ब्लेक को बहुत महत्वपूर्ण कवि बताता है।
ब्लेक की कृतियाँ : 'पोएटिक स्केचेज़' (१७८३); 'सौंग्ज ऑव इनो संस' (१७८९); 'बुक ऑव थेल' (१७८९); 'दि मैरेज और हेवेन एंड हेल' (१७९०); 'दि फ्रेंच रिवोल्यूशन' (१७९१); सौंग्ज ऑव इवस्पीरेमंस (१७९४); विजंस ऑव दि डाटर्स ऑव एल्बियान' (१७९३); अमरीका (१७९३); 'यूरोप : ए प्राफेसी' (१७९४), वि बुक ऑव यूरिज़ोन' (१७९४) 'दि सौंग ऑव लास (१७९५); 'दि सौंग ऑव आहनिया' (१७९५); 'जेरूसेलम' तथा 'मिल्टन' (१८०४); 'दि प्राफेटिक राइटिंग्ज़ ऑव डब्ल्यू. बी.। (प्रभाकर माचवे)