विमीय विश्लेषण (Dimensional Analysis) न्यूटन (Newton) द्वारा लिखित पुस्तक 'प्रिंसीपिया' (Principia) में विमाएँ तथा विमीय विश्लेषण 'सादृश्य का सिद्धांत' (Principle of Similitude) नाम से वर्णित हैं। इस विषय को बढ़ाने में जिन लोगों ने योगदान दिया है, वे हैं : ई. बकिंघम (E. Buckingham), लार्ड रैलि (Lord Rayleigh) और पी. डब्ल्यू. ब्रिजमैन (P. W. Bridgman)। प्रारंभ में विमीय विश्लेषण यांत्रिकी (mechanics) की समस्याओं में प्रयुक्त किया गया, किंतु आजकल यह सभी प्रकार की भौतिकी एवं इंजीनियरी की समस्याओं में प्रयुक्त होने लगा है। विमीय विश्लेषण का मान उसकी इस क्षमता में है कि भौतिकविज्ञानी और इंजीनियर के प्रति दिन की सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक समस्याओं के समाधान में यह सहायक होता है।

संपूर्ण भौतिक राशियाँ दो वर्गों में विभाजित की जाती हैं : (क) मौलिक (Fundamental) तथा (ख) व्युत्पन्न (Derived)। यांत्रिक समस्याओं में तीन स्पष्ट प्राथमिक राशियों (distinct primary quantities), लंबाई (length = L), द्रव्यमान (mass = M), तथा समय (time = T), को मान्यता मिली थी। किंतु यदि चुंबकीय, विद्युतीय और ऊष्मीय राशियों के लिए भी इनका उपयोग करें तो हमें बाध्य होकर दो अन्य राशियों (विद्युत् की मात्रा Q एवं ताप q ) को समाविष्ट करना होगा। अन्य सभी व्युत्पन्न भौतिक राशियों को इन पाँच मौलिक राशियों के पदों में व्यक्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, बल की विमा M L T-2, ऊष्मा चालकता की विमा L M T-3 q- और धारिता की विमा Q2 T2 M-1 L-2 हैं। वास्तविक उपयोग में मात्रक पद्धति (system of units) प्रयोग में आती है :

(१)�� सेंटीमीटर-ग्राम-सेकंड पद्धति (C. G. S. System) - इसमें लंबाई का मात्रक सेंटीमीटर, द्रव्यमान का मात्रक ग्राम और समय का मात्रक सेकंड है।

(२)�� फुट पाउंड सेंकड पद्धति (F. P. S. System) - इसमें लंबाई, द्रव्यमान एवं समय के मात्रक क्रमश: फुट, पाउंड और सेकंड हैं।

(३)�� मीटर किलोग्राम सेकंड (M. K. S. System) - इसमें लंबाई, द्रव्यमान और समय के मात्रक क्रमश: मीटर, किलोग्राम और सेकंड हैं।

सारणी (क) में यांत्रिक, सारणी (ख) में ऊष्मीय तथा (ग) में वैद्युत्-चुंबकीय राशियाँ तथा विमाएँ (देखें पृष्ठ ९२) दी गई हैं।

(क) यांत्रिक राशियाँ

क्र.

सं.

राशि

मात्रक (मी. किग्रा. से.)

विमाएँ

१.

लंबाई (१)

मी (m)

L

२.

द्रव्यमान (m)

किग्रा (kg)

M

३.

समय (t)

सेकंड (s)

T

४.

वेग (v)

मीसे-

L T-1

५.

प्रकाश का वेग (c)

२.९९८१० मीसे-

L T-1

६.

त्वरण (a)

मौसे-

L T-2

७.

बल (F)

न्यूटन (N) = १० डाइन

L M T-2

८.

कार्य, ऊर्जा (W)

जूल = न्यूटनमीटर

ML2 T-2

९.

शक्ति (P)

वाट = जूल/से.

ML2 T-3

१०.

पृष्ठतनाव (s)

न्यूटन/मी = १० डाइन/सेमी.

MT-2

११.

श्यानता (h)

न्यूटन सेकंड/मी = १० प्वॉज

ML-1 T-1

१२.

बल आधूर्ण

ML2 T-2

१३.

कोणीय त्वरण

T-2

१४.

आवृत्ति (n)

साइकिल/सेकंड

T-1

फुट-पाउंड-सेंकड पद्धति में परिवर्तन के लिए निम्न संबंध उपयोग में लाए जाते हैं :

१ मीटर = ३९.३७ इंच

१ किलोग्राम = २.२ पाउंड

(ख) यांत्रिक राशियाँ

क्र. सं.

राशियाँ

विमाएँ

१.

ताप

q

२.

ऊष्मा की मात्रा (H)

M L2 T-2

३.

विशिष्ट ऊष्मा

विभाविहीन

४.

ऊष्मा धारिता प्रति एकक द्रव्यमान

L2 T-2q-1

५.

ऊष्मा धारिता प्रति एकक द्रव्यमान

ML-1 T-2q-1

६.

चालकता (Conductivity)

MLT-3-1

७.

ऐंट्रॉपी (Entropy)

श्Hq-1

ML2 T-2q-1

विमीय विश्लेषण के सिद्धांत (Principles of Dimensional Analysis) - जल किसी समीकरण का रूप मापन (measurement) के मौलिक मात्रकों (fundamental units) पर निर्भर नहीं करता, तब वह विमीय रूप से समांगी (Homogeneous) कहलाता है। उदाहरण के लिए, सरल लोलक का दोलनकाल T = 2 p (1/g) श्मान्य है चाहे लंबाई फुट या मीटर में नापी गई हो, अथवा समय T मिनट या सेकंड में नापा गया हो। किसी प्रश्न के विमीय विश्लेषण का प्रथम सोपान प्रश्न में आए चरों (variables) का निर्णय करता है। यदि घटना (phenomenon) में वे चर, जो वास्तव में प्रभावहीन हैं, प्रयुक्त होते हैं, तो अंतिम समीकरण में बड़ी संख्या में पद दिखाई पड़ेंगे। फिर हम प्रदत्त चर-समुच्चय (set) के विमाविहीन उत्पादों (products) के पूर्ण समुच्चय का परिकलन (calculation) करते हैं और उनके बीच एक सामान्य संबंध लिखते हैं। इस संबंध में ई. बकिंहैम द्वारा प्रणीत निम्नलिखित मौलिक प्रमेय महत्वपूर्ण है : ''यदि कोई समीकरण विमीय रूप से समांगी है, तो वह विमाविहीन उत्पादों के पूर्ण समुच्चय के, जिसकी संख्या प्रश्न में समाविष्ट भौतिक चरों की संख्या एवं मौलिक प्राथमिक राशियों की संख्या के अंतर (जिनके पदों में वे व्यक्त किए जाते हैं) के बराबर होती है, संबंध में बदला जा सकता है।'' विलोमत: इसे इस तरह कहा जा सकता है कि यदि मौलिक चरों का संबंध इन चरों के उत्पादों के निम्नतम समुच्चय में बदला जा सकता है, तो ये सभी उत्पाद विमाविहीन होंगे। बकिंहैम का प्रमेय, जिसे द्वितीय (p) प्रमेय भी कहते हैं, विमीय विश्लेषण के संपूर्ण सिद्धांत का सारांश प्रस्तुत करता है।

उदाहरण के लिए कर्षणबल (drag force) F को लीजिए, जिसे D व्यास की चिकनी गोलीय वस्तु घनत्व r तथा श्यानता m के असंपीड्य तरल (incompressible fluid) की धारा (stream) में अनुभव करती है। v को धारा का वेग माना गया है। इन चरों की विमाएँ प्राथमिक राशियों लंबाई L, द्रव्यमान M तथा समम T के पदों में हम लिख सकते हैं। बकिंघम के प्रमेयानुसार ५-३ = २ विमाविहीन उत्पाद होगा, जिसे हम यों लिख सकते हैं ;

इस प्रकार निम्न रूप में यह संबंध व्यक्त किया जा सकता है-

p = f (p2)

या F = v2 D2f श्

यहाँ f एक अनिर्दिष्ट फलन (unspecified function) है तथा श्रेनाल्ड संख्या (Reynold's number) है।

यदि R क्रांतिमान (critical value) से, जिसकी कोटि (order) २००० है, अधिक है, तो f का मान अचल हो जाता है और प्रवाह तब 'विक्षुब्ध' (turbulent) कहा जाता है। फिर भी यदि रेनाल्ड संख्या क्रांतिक मान से कम है तो

F = m v D f1 ,

जहाँ फलन f1 अनिर्दिष्ट है और इस दशा में इसका मान एक अचल (constant) होता है। उदाहरणार्थ, कम वेगों के लिए स्टोक का नियम (Stoke's law) है :

अर्थात् फलन f1 अचल ३p के बराबर है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कुछ अचलों या फलों को छोड़कर, अधिकतर मौलिक प्रश्नों का हल निकाला जा सकता है।

एक दूसरा दृष्टांत रेलि समस्या (Rayleigh's problem) का दिया जा सकता है। निश्चित ज्यामितीय आकार का किंतु चर निरपेक्ष (absolute) विमा D का एक ठोस पिंड, वेग v से बहते हुए तथा पिंड से सुदूर (remote) बिंदुओं पर, द्रव के ताप से उच्चतर निश्चित ताप q पर, पोषित द्रव की धारा में बद्ध (fixed) है। पिंड से द्रव को स्थानांतरित होनेवाली ऊष्मा की दर h निकालना अपेक्षित है। यह समस्या गति के समीकरणों द्वारा आसानी से नहीं सुलझाई जा सकती, किंतु विमीय विधियों को प्रयुक्त कर यह दिखाया जा सकता है कि

h = k D q f ,

जहाँ K द्रव की ऊष्मीय चालकता (thermal conduictivity), C उसकी ऊष्मा धारिता (heat capacity) और q तापांतर (temperature difference) है। यहाँ ऊर्जा के रूप में विचरित लंबाई, समय, ताप और ऊष्मा के लिए हम लोग L, T, q और H प्राथमिक राशियों के रूप में प्रयोग कर सकते है। श्को पेस्लेट (Peclet's number) और h/kDq को नसेल्ट संख्या (Nusselt number) कहते हैं। यदि श्यानता (viscosity) को भी लिया जाए, तो h = kDq F । किसी निर्दिष्ट द्रव को लेकर प्रयोग करने पर, फलनों f और F के मान निकाले जा सकते हैं।

दूसरे द्रवों के आँकड़े (data) तथा प्राचलों (parameters) D v c/k और v D r/m के मान प्रयोग करने पर फलन F का मान निकाला जा सकता है। अत: h का मान निकल जाता है। विमाओं की विधि चालन और संवहन (convection) के प्रश्नों के लिए भी, जो सामान्यत: विश्लेषित नहीं हो सकते, प्रयुक्त हो सकती है।

विमा सिद्धांत के अत्यंत महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों (applications) में से एक 'प्रतिरूप परीक्षण' (model testing) है। किसी व्ययसाध्य (expensive) इंजीनियरी प्रायोजना (project) के पहले कभी कभी निर्मित होनेवाले आदिप्रारूप (prototype) पद्धति की लघुमान प्रतिकृति (small scale replica) की क्रिया का अध्ययन करना परामर्श्य (advisable) होता है। प्रतिरूप अध्ययन मँहगी त्रुटियों (costly mistakes) को दूर करने के लिए तथा आदि प्ररूप की अभिकल्पना (design) में सहायक सूचना प्राप्त करने के लिए किया जाता है। माना किसी प्रश्न में Q1, Q2, Q3,... आदि चर हैं, बकिंहैंम के (p) प्रमेय द्वारा इनके बीच का संबंध बहुत से विमाविहीन उत्पादों के मध्य के संबंध में परिणत किया जा सकता है। Q1 के मान में रुचि लेने पर हम लिख सकते हैं कि :

�������������������� Q1 = �������������� ..........E (p2, p3, p4)

जहाँ�������� p2 = ��������������� ...........,

������������� p3 = ��������������� ...........आदि

किसी प्रतिरूप पर, जिसके लिए सभी p के मान आदि प्ररूप के p के मानों के बराबर हैं, प्रयोग करके p के मान के विभिन्न समुच्चयों के लिए फलन F के मान ज्ञात कर सकते हैं। इसप्रकार प्रतिरूप के लिए उनके मान ज्ञात होने से आदिप्ररूप के मानों को ज्ञात किया जा सकता है। ऐसी दशा में प्रतिरूप तथा आदिप्ररूप गतिकीत: समरूप (dynamically similar) कहलाते हैं। वास्तविक विमान बनने के पूर्व, एक प्रतिरूप (आकार से विमान का ) पर वायु सुरंग (wind tunnel) में प्रयोग किए जाते हैं और विभिन्न प्रणोदों (thrusts) के मान ज्ञात किए जाते हैं। इन आँकड़ों से विमान के लिए संगत मान (corresponding values) निकाल लिए जाते हैं। यह विधि जलयान उद्योग (ship industry), अंतर्जलीय विस्फोट (underwater explosion), प्राक्षेपिकी विज्ञान (science of ballistics) और दूसरी इंजीनियरी प्रायोजनाओं में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई हैं। प्रतिरूप पर प्रयोग करना, किसी प्रस्तावित ज्वारनदमुख (estuary), या पोताश्रय (harbour), के प्रभावों के विषय में पूर्व जानकारी देने, अन्वेषण करने (investigating) तथा व्ययसाध्य व्यवसाय (undertaking) का द्रुत उपाय (ready means) है।

विमाओं के सिद्धांत ने तरलयांत्रिकी (fluid mechanics) और ऊष्मा स्थानांतरण (heat transfer) के आधुनिक विकासों (developments) में महत्वपूर्ण भाग अदा किया है। विद्युत् चुंबकीय सिद्धांत तथा बहुत सी दूसरी भौतिक समस्याओं में भी यह सिद्धांत अनुप्रयोगित है।

किसी समस्या का विस्तृत विश्लेषण करने के पूर्व किसी प्रश्न में किसी परिमाण की कोटि (order of magnitude) के परिमाण प्राप्त किए जा सकते हैं। वास्तव में विमीय विश्लेषण प्राकृतिक घटनाओं (natural phenomena) के अन्वेषण के लिए एक महत्वपूर्ण साधन (tool) हो रहा है।

(ग) वैद्युत् एवं चुंबकीय राशियाँ

क्र. सं.

राशि

मात्रक (मी. किग्रा. से.)

विमाएँ

१.

आवेश

कूलॉम

Q

२.

आकाश की विद्युत्शीलताश् ( o) (Permittivity of space)

विद्युत्शीलता ( o)

आपेक्षिक विद्युत्शीलता ( r)

(F = q.q/4p श्r2)

फैरड/मी.

श्८.८५४१०-

फैरड/मी.

(आकाश के लिए)

F-1 L-2 Q2

M-1 L-3 T2 Q2

३.

धारा (I)

ऐंपियर = कूलॉम/सेंकड

= १० स्थि. वै. मा.

T-2 Q

४.

धारा घनत्व ( )

ऐंपियर/मी.

=१० स्थि. वै. मा.

= १०- ऐंपि/सेंमी.

L-2 T-1Q

५.

विभवांतर (v)

वोल्ट = जूल/कूॅलाम

= श्स्थि. वै. मा.

ML-2 T-2Q-1

६.

विद्युत् क्षेत्र (E)

=

= श्१०- स्थि. वै. मा.

MLT-2 Q-1

७.

विद्युत्वाहक बल (E)

=

वोल्ट

ML2 T-2Q-1

८.

द्वध्रुिव आघूर्ण (Dipole moment) (q.1)

कूलॉम मी.

LQ

९.

प्रतिरोध (R)

ओम =

= श्स्थि. वै. मा.

ML-2 T-1Q-2

१०.

चालकता

म्हो/मी.

=१० स्थि. वै. मा.

Q2 TM-1L-3

११.

धारिता (C)

फैरड = कूलॉम/वोल्ट

=१०११ स्थि. वै. मा.

Q2 T2 M-1 L-2

१२.

विद्युत्विस्थापन ( )

कूलॉम/मी.

= १२p१० स्थि. वै. मा.

Q L-2

१३.

विद्युत्ध्रुवण ( )

कूलॉम/मी.

=१० स्थि. वै. मा.

Q L-2

१४.

आकाश की चुंबकशीलता (m)

(Permeability of space)

FT+2 Q-2

चुंबकशीलता (m)

आपेक्षिक चुंबकशीलता (mr)

वेवर/मी.ऐंपियर

=p१०- हेनरी/मी.

ML Q-2

१५.

चुंबकीय अभिवाह घनत्व

(Flux density)

प्रेरण

वेवर/मी.

ML2 T-1 Q-1

१६.

चुंबकीय अभिवाह (I)

वेवर = हेनरी ऐंपियर

= बोल्ट सेकंड

ML2 T-1 Q-1

१७.

चुंबकीय क्षेत्र तीव्रता ( )

ऐंपियर चक्कर/मी.

या ऐंपि/मी.

L-1 T-1 Q

१८.

प्रेरकत्व (L)

(Inductance)

हेनरी

= वोल्ट सेकंड/ऐंपि.

= वेबर/ऐंपियर

ML2Q-2

१९.

चुंबक वाहक बल

(चुंबकीय विभव)

ऐंपियर चक्कर

श्श् = ऐंपियर

QT-1

२०.

प्रतिष्टम्भ (R)

(Reluctance)

ऐंपियर चक्कर/वेवर

= रोलैड (Rowland)

M-1 L-2 Q2

२१.

चुंबकीय आधूर्ण ( )

ऐंपियर मी.

L2 T-1 Q

२२.

चुंबकीय ध्रुव प्राबल्य

ऐंपियर मीटर

LT-1 Q

२३.

चुंबकन तीव्रता ( )

(Intensity of Magnetisation)

ऐंपियर/मीटर

L-1 T-1 Q

मीटर किलोग्राम सेकंड को स्थिर वैद्युत मात्रक तथा विद्युत् चुंबकीय मात्रक के बदलने के लिए केवल आवेश के मात्रक बदलने होंगे।

अर्थात् १ कूलॉम = १०९ स्थि. वै. मा. (e. s. u.)

= श्वि. चुं. मा. (e. m. u. ) (फकीर चंद औलक)