विनोग्रैड्स्की, एस. एन. रूस के निवासी थे, किंतु इन्होंने फ्रांस में रहकर वैज्ञानिक कार्य किए। ये बड़े प्रसिद्ध सूक्ष्मजीव विज्ञानी (microbiologist) थे। इन्होंने सन् १८९१ में स्लोएसिंग तथा मुंट्स द्वारा खोज की गई नाइट्रीकरण क्रिया पर कार्य करते हुए, उन दो जीवाणुओं को ढूँढ निकाला जो नाइट्राइट तथा नाइट्रेट बनाते थे। इन्होंने मिट्टी में अमोनिया को नाइट्राइट में परिवर्तित करनेवाले जीवाणुओं को नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) तथा नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करनेवाले जीवाणुओं को नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) नाम प्रदान किए। भूमि संबंधी सूक्ष्मजीवविज्ञान के क्षेत्र में यह खोज अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस खोज के पूर्व सन् १८९० में इन्होंने स्वपोषित (autotrophic) सूक्ष्म जीवाणुओं के संबंध में विस्तार से कार्य किया और गंधक जीवाणुओं (sulphur bacteria) तथा लौह जीवाणुओं (iron bacteria) की खोज की थी। १८९३ ई. में इन्होंने कतिपय जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन के यौगिकीकरण पर कार्य किया। इस दिशा में कार्य करते हुए, इन्होंने क्लॉस्ट्रीडियम पैस्टुरियानम (Claustridium pasturianum) नामक अवायु (anaerobic) जीवाणुओं की खोज की। ये जीवाणु मिट्टी में कुछ गहराई तक बिना ऑक्सीजन के भी वायुमंडल के नाइट्रोजन को यौगिकीकृत करने में समर्थ होते हैं। इन जीवाणुओं की विशेषता यह है कि इन्हें जलविलेय शर्करा के विघटन से ऊर्जा प्राप्त होती है। यदि प्रणाली में अमोनियम लवण का लेशमात्र भी पाया जाता है, तो नाइट्रोजन का यौगिकीकरण नहीं हो पाता।
इन खोजों के संबंध में जीवाणुओं के संबंध प्राप्त करने के लिए इन्होंने 'सिलिका जेल' विधि का सूत्रपात किया, जो बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है।
सन् १९४९ में इन्होंने माइक्रोबायलोजी ड सोल प्राब्लेम्स एट मेथोड (Microbiologie du Sol Problems et Methode) नामक एक पुस्तक फ्रांसीसी भाषा में प्रकाशित की, जिसमें न केवल इनके द्वारा किए गए कार्य का विस्तृत वर्णन है वरन् सूक्ष्मजीवविज्ञान के क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण कार्य किया जा चुका था। उसकी भी विवेचना है। (शिव गोपाल मिश्र)