विधि शासन (Rule of Law) विधि शासन का प्रमुख सिद्धांत है कानून के समक्ष सब लोगों की समता। भारत में इसे उसी अर्थ में ग्रहण करते हैं, जिसमें यह अंग्रेजी-अमरीकी विधान में ग्रहण किया गया है। भारतीय संविधान में घोषि किया गया है कि प्रत्येक नागरिक के लिए एक ही कानून होगा जो समान रूप से लागू होगा। जन्म, जाति इत्यादि कारणों से किसी को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होगा (अनुच्छेद १४)। किसी राज्य में यदि किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त है तथा अन्यान्य लोग इससे वंचित हैं, तो वहाँ विधि का शासन नहीं कहा जा सकता। अत: प्राचीन राज्यों में अथवा मध्य युग के सामंत समाज में जहाँ शासक वर्ग एवं जनसाधारण के अधिकारों में अंतर था, वहाँ विधि की समता नहीं थी। उदाहरण के लिए रोम साम्राज्य के विधान में हम पैट्रीशियन (उच्च वर्ग) एवं प्लीबियन (जनसाधारण) तथा रोमन नागरिक एवं पेरेग्रिनस (विजित देश के निवासी) के अधिकारों में अंतर पाते हैं। दासता भी विधि द्वारा समर्थित थी। भारत में प्रत्येक व्यक्ति पर, चाहे वह राजा हो या निर्धन, देश का साधारण कानून समान रूप से लागू होता है और सभी को साधारण न्यायालय में समान रूप से न्याय मिलता है। राजनीतिक एवं अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक मर्यादा की दृष्टि से इस नियम के थोड़े से अपवाद हैं। यथा, राष्ट्रपति एवं राज्यपाल देश के साधारण न्यायालय द्वारा दंडित नहीं हो सकते (अनुच्छेद ३६१ (१)) विदेश के राजा, राष्ट्रपति या राजदूत न्यायालय के अधिकारक्षेत्र से बाहर हैं (अनुच्छेद ५१)।

भारतीय संविधान में कानून के संरक्षण की समानता न केवल देश के नागरिकों को, अपितु विदेशियों को भी समान रूप से, जाति, धर्म, वर्ण, जन्मस्थान आदि का भेद भाव किए बिना, दी गई है। पुरुषों और स्त्रियों के अधिकार में भी अंतर नहीं किया गया है (अनुच्छेद १५)। सभी नागरिकों को जीविका अथवा सरकारी नियुक्ति में समान अवसर मिलने का अधिकार मिला है (अनुच्छेद १६)। अस्पृश्यता का पूर्ण रूप से निषेध हुआ है (अनुच्छेद १७)। सैनिक एवं शैक्षणिक उपाधियों के अतिरिक्त राज्य अपने नागरिकों को अन्यान्य उपाधि नहीं दे सकता (अनुच्छेद १८)। कोई नागरिक विधि द्वारा निर्धारित अपराध के लिए ही केवल एक बार दंडित हो सकता है (अनुच्छेद २०)। किसी भी व्यक्ति को मृत्युदंड अथवा कारावास विधिसम्मत रूप में ही दिया जा सकता है (अनुच्छेद २१) किसी की संपत्ति यदि सरकार ले तो उसे उसके लिए क्षतिपूर्ति करनी पड़ेगी (अनुच्छेद ३१)। संकटकालीन असाधारण परिस्थिति में ही सरकार बिना मामला चलाए किसी को नजरबंद कर सकती है (अनुच्छेद १९ (२))।

संविधान द्वारा प्रदत्त अपने मूल अधिकारों के अपहरण पर कोई नागरिक न्यायालय में सरकार के विरुद्ध मामला चला सकता है। संविधान में यह निर्देश दिया गया है कि राज्यों के उच्च न्यायालय तथा देश का सर्वोच्च न्यायालय इन मूल अधिकारों की रक्षा करें। निष्पक्ष तथा निर्भीक न्यायाधीशों द्वारा न्याय का विधान किया गया है। इनके आदेशों का पालन करना शासन का कर्तव्य है। निष्पक्ष एवं स्वतंत्र समाचारपत्र तथा जागरूक जनमत जनाधिकार के प्रहरी हैं :

सं. ग्रं. - बसु दुर्गादास : भारतीय संविधान (कांस्टिट्यूशन ऑव इंडिया), तृतीय संस्करण, १९५५ भाग १, २। डाइसी; लॉ ऑव कांस्टिट्यूशन, नवम संस्करण १९३९; जेनिंग्स : लॉ ऑव कांस्टिट्यूशन, तृतीय संस्करण; वेड एवं फिलिप्स : कांस्टिट्यूशन, १९४६। (नगेंद्र कुमार)