विद्युतशक्ति, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक योजनाएँ (Electric Power, National & Regional Schemes) भारत में विद्युत्शक्ति के विकास के लिए अनवरत प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए बहुत सी योजनाएँ बनाई गई है और क्रमश: कार्यान्वित की जा रही है। ये योजनाएँ शासकीय दृष्टिकोण से मुख्यत: दो प्रकार की हैं : १. राष्ट्रीय योजनाएँ, जिनका संचालन एवं कार्यान्वयन भारत सरकार अथवा उसके द्वारा गठित स्वायत्त निगम द्वारा होता है। २. प्रादेशिक योजनाएँ; जिनका संचालन विभिन्न प्रादेशिक सरकारें करती हैं। प्रादेशिक योजनाएँ, सामान्यत:, छोटी योजनाएँ हैं, जो मुख्यत: प्रदेश तक समित रहती हैं और उनसे होनेवाले लाभ भी वहीं तक सीमित होते हैं।

राष्ट्रीय योजनाओं में वे सभी योजनाएँ सम्मिलित है जिनमें या तो एक से अधिक प्रदेशों की सरकारों के सहयोग की आवश्यकता होती है, अथवा जिन्हें प्रादेशिक सरकारें सुचारु रूप से संचालित करने मे असमर्थ होती है। दामोदर घाटी निगम, भाखरा नंगल, चंबल घाटी योजना, कोयला, शरावती आदि ऐसी योजनाएँ हैं जिनका क्षेत्र एक से अधिक प्रदेशों में पड़ता है, और जिन्हें भारत सरकार या तो सीधे संचालित करती है, अथवा उनके संचालन के लिए स्वायत निगमों की स्थापना कर दी गई है। इन योजनाओं से होनेवाले लाभ भी एक से अधिक प्रदेशों को मिलते हैं। अत: इन्हें राष्ट्रीय योजनाएँ कहा जाता है।

विद्युत्शक्ति में भारत दूसरे प्रगतिशील देशों की तुलना में बहुत पिछड़ा हुआ है, जैसा निम्नलिखित सारणी में दिए गए तथ्यों से प्रकट होगा :

सारणी १.

देश

विद्युत् शक्ति का उत्पादन

(किलोवाट में प्रति व्यक्ति)

कैनाडा

२०

संयुक्त राज्य (अमरीका)

१७

ब्रिटेन

१०

जापान

भारत

०.२

देश की प्रगति के लिए विद्युतशक्ति का विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस उद्देश्य से, विद्युत् उत्पादन का राष्ट्र की पंचवर्षीय योजनाओं में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्रथम पंचवर्षीय योजना सन् १९५१ में आरंभ हुई और तब से तीन पंचवर्षीय योजनाएँ कार्यान्वित की जा चुकी है तथा चौथी योजना की रूपरेखा तैयार हो चुकी है। निस्संदेह इस क्षेत्र में प्रगति उत्साहवर्धक रही है, जैसा सारणी २. से स्पष्ट है। मुख्य प्रगति सरकारी सस्थापनों में हुई है। विभिन्न क्षेत्रों में होनेवाली प्रगति का ब्यौरा इस प्रकार है :

सारणी २.

क्षेत्र

प्रतिष्ठापित क्षमता, लाख किलोवाट में

१९५१

१९५६

१९६१

१९६६

सरकारी संस्थान

१४

३३

७३.५

कंपनी संस्थान

११

१३

१३.५

१६.५

उद्योग के निजी संस्थान

७.२

१०

११.५

कुल

२३

३४

५६.५

१०१.५

चौथी योजना के अंत तक संस्थापित क्षमता में लगभग दुगुनी वृद्धि हो जाएगी। २०० लाख किलोवाट का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

इन योजनाओं के अंतर्गत न केवल बिजलीघरों का निर्माण किया गया है, वरन् विद्युत्शक्ति का समुचित उपभोग करने के लिए प्रेषण लाइनों (transmission lines) तथा वितरण लाइनों (distribution lines) का जाल देश भर में बना दिया गया है। एक क्षेत्र के अधिकांश बिजलीघर एक दूसरे से संबद्ध कर दिए गए हैं, जिससे सारे क्षेत्र में शक्ति का आदान प्रदान सुगमता से हो सके। इसके लिए अति उच्च वोल्टता (extra high voltage) पर प्रेषण कर क्षेत्रीय ग्रिड (regional grids) बनाए गए हैं, जिससे उस क्षेत्र में शकित का प्रवाह पूरी तौर पर स्वच्छंद रूप से किया जा सके, अर्थात् सभी जगह आवयकतानुसार शक्ति का उपभोग हो सके। कुछ क्षेत्रीय ग्रिड निकटवर्ती ग्रिड से भी परस्पर संबद्ध कर दिए गए हैं, जिससे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आवश्यकता के अनुसार शक्ति का आदान प्रदान हो सके, जैसे दामोदर घाटी निगम को कलकत्ता के बिजलीघर एवं बरौनी से संबद्ध कर दिया गया है। इस प्रकार एक स्थान की अधिक शक्ति कम शक्तिवाले स्थान को भेजी जा सकती है। धीरे धीरे सभी क्षेत्रीय ग्रिडों को परस्पर संबद्ध कर, अखिल भारतीय ग्रिड का रूप दिया जाएगा, जिससे संपूर्ण देश में शक्ति का प्रवाह निर्विरोध रूप में हो सके और सभी जगह आवश्यकता के अनुसार उसका उपभोग किया जा सके। इस योजना के कुछ प्राविधिक पहलुओं का समाधान होने के उपरांत सारे देश के शक्तितंत्र आपस में समाकलित (integrated) होकर एक वृहत् शक्तितंत्र बन जाएगा, जो संसार के सबसे बड़े शक्तितंत्रों में होगा।

भविष्य की आवश्कताओं तथा दूसरे देशों की औद्योगिक प्रगति को ध्यान में रखते हुए, अभी भी हम विद्युतशक्ति उत्पादन में बहुत पिछड़े हुए हैं। आकलन के अनुसार, भारत में विकसित की जा सकनेवाली जलविद्युत् राशि लगभग ४ करोड़ किलोवाट है, जिसका लगभग १० प्रति शत ही अभी तक विकसित किया जा सका है। तापीय बिजलीघरों (thermal power stations) की क्षमता में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है। विभिन्न प्रकार के बिजलीघरों की प्रतिस्थापित शक्तिक्षमता में वृद्धि सारणी ३. में दिखाई गई है। यह शक्तिक्षमता लाख किलोवाट में दी गई है।

सारणी ३.

बिजलीघर

१९५१

१९५६

१९६१

१९६५

पनबिजलीघर

५.६

९.४

१९.२

४१.०

तापीय बिजलीघर

१०.०

१५.५

२४.३

४५.२

डीज़ल बिजलीघर

१.५

२.१

३.०

४.०

कुल*

१७.१

२७.०

४६.५

९०.२

*इन आँकड़ों में उद्योग के निजी संस्थानों की क्षमता सम्मिलित नहीं है।

विभिन्न राज्यों में विद्युत्शक्ति की विकास योजनाओं का सारांश सारणी ४. से स्पष्ट हो जाएगा, जिसमें सरकारी संस्थानों की शक्तिक्षमता मेगावाट में दी गई है।

सारणी ४.

विभिन्न राज्यों की प्रतिष्ठापित शक्तिक्षमता मेगावाट में

क्रम

राज्य

१९५६

१९६१

१९६६

१.

असम

४७.४

२४२३

७०

२.

आंध्र

१०३

२८६

४३२

३.

बिहार

२०४

४११

६९६

४.

बंबई (महाराष्ट्र+गुजरात)

७००

११२०

११३० महा. ५२० गुज.

५.

जम्मू कश्मीर

१२४

३२

४९

६.

केरल

८६५

१९३

२९०

७.

मध्यप्रदेश

८२

२६५

३७०

८.

मद्रास

२५६७

५७८.७

९००

९.

मैसूर

१८८७

२६४.३

४६७

१०.

उड़ीसा

२१

२७८

३२४

११.

पंजाब

१२६७

६७६.७

८२०

१२.

राजस्थान

४२६

११७.५

१८९

१३.

उत्तर प्रदेश

२९५०

६८३.८

७०८

१४.

प. बंगाल

५०९६

६८१.५

११६५

१५.

दिल्ली

५४०

१०४.०

१६८.०

१६.

शेष

५६

११.८

२४.५

कुल

२,६९४

५,७२८

८,१२२.५

कुछ प्रमुख योजनाओं का ब्यौरा इस प्रकार है :

१.����� भाखड़ा नंगल - यह योजना हिमाचल प्रदेश में सतलुज तथा उसकी सहायक नदियों की जलशक्ति के समुचित उपभोग के लिए १९४७ में आरंभ की गई। पहले चरण में सतलुज नदी पर भाखड़ा गॉर्ज पर एक ऊंचे बाँध का निर्माण किया गया, जो संसार के सबसे ऊँचे बाँधों में से है। भाखड़ा जलविद्युत् योजना का निर्माण दो चरणों में हुआ। प्रथम चरण में नदी के दाहिने किनारे पर गंगुवाल नामक स्थान में एक बिजलीघर बनाया गया और दूसरे चरण में उसकी क्षमता ७७ मेगावाट कर दी गई। कुछ नीचे कोटला में दूसरा बिजलीघर बनाया गया, जिसकी शक्तिक्षमता पूर्वोक्त ही थी। मुख्य भाखड़ा बिजलीघर का निर्माण भी दो चरणों में हुआ। प्रथम चरण में ४५० मेगावाट शक्तिक्षमता का बिजलीघर बनाया गया, जिसे दूसरे चरण में ५६० मेगावाट अतिरिक्त शक्तिक्षमता जोड़कर, लगभग १,००० मेगावाट शक्तिक्षमता का कर दिया जाएगा।

इस योजना से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं दिल्ली को बिजली प्रदान की जाती है। दिल्ली का तापीय बिजलीघर भी मुख्य भाखड़ा ग्रिड से अंतर्योजित कर दिया गया है।

२.����� दामोदर घाटी निगम - बिहार एवं बंगाल में बहनेवाली दामोदर नदी के विनाशकारी प्रभावों से बचने के लिए सन् १९४५ में एक बृहद् घाटी योजना का श्रीगणेश किया गया। इसका संगठन अमरीका की टेनेसी घाटी योजना के अनुसार किया गया और इसका संचालन भारत सरकार द्वारा गठित दामोदर घाटी निगम

सारणी ५.

बड़ी बड़ी योजनाओं की शक्तिक्षमता

क्रम.

योजना

राज्य

शक्ति क्षमता मेगावाट में

१.

भाखड़ा नंगल (जलविद्युत्)

पंजाब

११६४

२.

हिराकुंड :- ('')

प्रथम चरण

द्वितीय चरण

उड़ीसा

१२३

१०९

३.

दामोदर घाटी योजना

(दुर्गापुर, बोकारो आदि के तापीय बिजलीघरों सहित)

बिहार और बंगाल

९६०

४.

चंबल योजना (जलविद्युत)

मध्यप्रदेश और राजस्थान

९२

५.

मचकुंड (जलविद्युत्)

आंध्रप्रदेश

८५

६.

कोरबा तापीय बिजलीघर

मध्यप्रदेश

९०

७.

तुंगभाद्रा (जलविद्युत्)

आंध्र और मैसूर

६६

८.

नागार्जुन सागर (जलविद्युत्)

आंध्र

४६०

९.

रामागुंडम (तापीय बिजलीघर)

आंध्र

३८

१०.

सिलेख जलविद्युत्

आंध्र

७५

११.

शरावती (जलविद्युत्)

मैसूर

८९०

१२.

भद्रा (जलविद्युत्)

मैसूर

३३

१३.

कुंडा (जलविद्युत्)

मद्रास

२८०

१४.

पेरियार (जलविद्युत्)

मद्रास और केरल

१४०

१५.

पेरिगल कुडू (जलविद्युत्)

केरल

१०७

१६.

नेरिया मंगलम (जलविद्युत्)

केरल

४५

१७.

शोलायार (जलविद्युत्)

केरल

५४

१८.

उकाई (जलविद्युत्)

महाराष्ट्र

१६०

१९.

कोयना (जलविद्युत्)

महाराष्ट्र

२४०

२०.

उमत्रू उमियम (जलविद्युत्)

असम

१०२

२१.

रिहंद (ओवरा तापीय बिजलीघर सहित)

उत्तर प्रदेश

३००

२२.

यमुना जलविद्युत् योजना

२०१

२३.

बरौनी तापीय बिजलीघर

बिहार

६९

२४.

पतरातू तापीय बिजलीघर

बिहार

४००

२५.

कौसी जलविद्युत् योजना

बिहार

२०

२६.

बंडेल तापीय बिजलीघर

बंगाल

२५०

२७.

नेवेली तापीय बिजलीघर

मद्रास

२५०

२८.

अमरकंटक तापीय बिजलीघर

मध्य प्रदेश

६०

२९.

धुवारन तापीय बिजलीघर

गुजरात

२५०

३०.

पनकी तापीय बिजलीघर

उत्तर प्रदेश

१६०

३१.

तालचेर तापीय बिजलीघर

उड़ीसा

२५०

३२.

चंद्रपुरा तापीय बिजलीघर

बिहार

४२०

३३.

सतपुड़ा तापीय बिजलीघर

मध्य प्रदेश

३१२

को सौंप दिया गया। इसके अंदर बाढ़ नियंत्रण एवं सिंचाई के साथ साथ शक्ति जनन योजना को भी प्राथमिकता दी गई। माइन एवं पंचेतहिल में दो पनबिजलीघर बनाए गए हैं, जिनकी शक्तिक्षमता क्रमश: ६० मेगावाट और ४० मेगावाट है। सूखे महीनों में पर्याप्त पानी के न होने से जलविद्युत् की कमी को पूरा करने के लिए बोकारो में एक तापीय बिजलीघर बनाया गया जिसकी शक्तिक्षमता पहले १५० मेगावाट थी परंतु बाद में २४७.५ मेगावाट कर दी गई। शक्ति की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को देखते हुए, इसी निगम के अंतर्गत, बोकारो के अतिरिक्त दुर्गापुर में २५० मेगावाट क्षमता का एक तापीय बिजलीघर को बनाया गया। बाद में बंडेल एवं चंद्रपुरा में क्रमश: २५० मेगावाट और ४२० मेगावाट के दो बड़े तापीय बिजलीघर बनाए गए। इससे झरिया एवं रानीगंज क्षेत्र के औद्योगिक प्रतिष्ठानों और पूर्वी रेलवे के विद्युतीकरण के लिए बिजली का संभरण होता है।

३.����� हिराकुड योजना - उड़ीसा में महानदी पर स्थित यह बृहत् जलविद्युत् योजना दो चरणों में बनाई गई है। प्रथम चरण में १२३ मेगावाट की शक्तिक्षमता का एक बिजलीघर बनाया गया, जिसे दूसरे चरण में बढ़ाकर २३२ मेगावाट शक्तिक्षमता का कर दिया गया।

सूखे महीनों में जलविद्युत् की कमी को पूरा करने के लिए तालचेर में एक बड़ा तापीय बिजलीघर भी बनाया गया जिनकी शक्तिक्षमता २५० मेगावाट है।

इस योजना से राउरकेला इस्पात कारखाने तथा उड़ीसा के दूसरे औद्योगिक प्रतिष्ठानों को बिजली का संभारण होता है।

४.����� शरावती योजना - यह योजना मैसूर राज्य में शरावती नदी पर स्थित भारत की एक बड़ी जलविद्युत् योजना है। इसे संयुक्त राज्य, अमरीका, के सहयोग से अभी हाल में ही पूरा किया गया है। इसकी कुल शक्तिक्षमता ८९० मेगावाट है (८९ मेगवाट के दस जनित्र लगाए गए हैं)। इससे मैसूर राज्य के बढ़ते हुए औद्योगीकरण के लिए बिजली मिल सकेगी।

५.����� नागार्जुनसागर योजना - यह बृहद जलविद्युत् योजना आंध्र प्रदेश के औद्योगीकरण की आकांक्षाओं को पूरा करने में समर्थ हो सकेगी। इसके अंतर्गत कृष्णा नदी के ऊपर नंदीकोडा में एक बहुत बड़े बाँध का निर्माण किया जा रहा है। इसकी शक्ति क्षमता ४६० मेगावाट होगी।

तीसरी पंचवर्षीय योजना में तापीय बिजलीघरों के निर्माण को भी पर्याप्त महत्व दिया गया है। चंद्रपुरा, दुर्गापुर, बरौनी बंडेल, धुवारन, सतपुड़ा और पतरातू में बृहत्काय बिजलीघर बनाए जा रहे हैं, जिनमें से कुछ तो चालू हो गए हैं और कुछ तो चालू हो गए हैं और कुछ के शीघ्र चालू होने के की आशा है। इसके साथ ही शक्ति की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को देखते हुए परमाण्वीय बिजलीघर भी बनाए जा रहे हैं। तीसरी पंचवर्षीय योजना में ट्रांबे (बंबई के निकट), राणाप्रताप सागर (राजस्थान) और मद्रास के निकट कलपक्कम में परमाण्वीय बिजलीघर बनाए जा रहे हैं, जिनकी शक्तिक्षमता क्रमश: ३८० किलोवाट, २०० किलोवाट और २५० किलोवाट होगी। इनपर निर्माण कार्य आरंभ हो चुका है और चौथी योजना के अंत तक पूरा हो जाने की आशा है।

इस प्रकार, शक्ति के क्षेत्र में भारत अपनी इन राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक योजनाओं के आधार पर निरंतर प्रगति कर रहा है। (राम कुमार गर्ग)