आर्किलोकस् पारौस् द्वीपनिवासी कुलीन गृहस्थ तैलेसिक्लेस और उनकी दासी के पुत्र थे जो आगे चलकर अत्यंत उच्च कोटि के कवि हुए। उनके स्थितिकाल के संबंध में पर्याप्त विवाद है। कुछ आलोचक उनका समय ई. पू. ७५३ से ७१६ तक और दूसरे उनका समय ई. पू. ६५० के आसपास मानते हैं। उनके जीवन के संबंध में कुछ अधिक ज्ञात नहीं है। उपनिवेश स्थापित करने में, युद्ध में और प्रणयव्यापार में उनको सर्वत्र ही असफलता का मुख देखना पड़ा। धनाभाव के कारण उनकी वाग्दत्ता प्रयेसी के ओबुले उन्हें प्राप्त हो सकी। इसपर उन्होंने उसके और उसके पिता के प्रति इतनी कटु परिहासात्मक कविताएँ लिखीं कि पिता और पुत्री दोनों स्वयं फांसी लगाकर मर गए। कुछ आलोचक इस परंपरागत कथा को संदिग्ध मानते हैं। आर्किलोकस् का प्राणांत युद्ध करते हुए हुआ। इस समय उनकी रचना का अंशमात्र उपलब्ध है। इयांबिक और ऐलिजियाक छंदों की पूर्ण संभावनाओं को उनकी रचना ने प्रकट किया। घृणा और कटुता की अभिव्यक्ति के कारण उन्हें 'वृश्चिकजिह' कहा गया है, पर अन्य गुणों के कारण उनका स्थान होमर के पश्चात् माना गया है।