विद्युत्-धातुकर्म विज्ञान (Electrometallurgy) विद्युत् विज्ञान तथा टेकनॉलोजी की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो धातुओं के निष्कर्षण तथा शोधन से विद्युत् रासायनिक प्रयोगों द्वारा संबधित है। यह सामान्यत: दो वर्गों में विभाजित है, एक में उष्णता और दूसरे में रासायनिक क्रियाएँ प्रधान हैं। विद्युत् भट्ठी में बिजली से ऊष्मा उत्पन्न कर धातु खनिजों का गलन करते हैं। प्रतिरोधक तथा प्रेरण भट्ठियों में धातुओं के दृढ़ीकरण और शोधन के साथ साथ बिजली से भलाई की कला इसी श्रेणी में आती है।

बिजली के रासायनिक प्रयोगों में विद्युत्-लेपन, रासायनिक यौगिकों का अपघटन, धातु परिष्कार तथा पृथक्करण निहित हैं। विद्युत् धातुकर्म बहुत से उद्योगों और व्यवसायों का आधार है। इस प्रविधि से निर्मित वस्तुएँ गुण तथा मजबूती में उच्च कोटि की होती हैं।

सर हफ्रीं डेवी (सन् १७७८-१८२९) ने सर्वप्रथम पिघले लवणों के विद्युत्-अपघटन से क्षारीय धातुओं को प्राप्त किया। माइकेल फैरेडे (सन् १७९१-१८६७), जे.डब्ल्यू. हिटार्फ (सन् १८२४-१९१४), स्वति आरहेनियस, (सन् १८५९-१९२७) और सी.एम. हाल (सन् १८६३-१९१४) आदि वैज्ञानिकों के सहयोग ने विद्युत्-धातुकर्म को प्रगतिशील बनाया और वैज्ञानिक क्षेत्र में आगे बढ़ाया।

विद्युत् धातुकर्मक क्रियाओं के समझने के लिए दोनों प्रकार के विद्युत्-चालन प्रक्रम (इलेक्ट्रॉनिक तथा आयोनिक), आयोनिक स्थानांतरण गति, गैल्वेनिक और इलेक्ट्रोलीटिक सेल, सेलों की ऊष्मागति की और विद्युदग्रलेपन आदि रासायनिक सिद्धातों का ज्ञान परमावश्यक है तथा इनका महत्वपूर्ण स्थान है।

विद्युत्-धातुकर्मक परिचालन विधियाँ तीन महत्वपूर्ण भागों में विभाजित की जा सकती हैं वैद्युतप्राप्ति (Electro-winning), वैद्युत् परिष्करण (Electro-refining) और वैद्युतलेपन (Electro-plating)।

वैद्युत् प्राप्ति वह विधि है जिसमें (१) कच्चे धात्वीय खनिज को पानी के उपयुक्त विलयन से अपमार्जन करते हैं और इस प्रकार मानक विद्युत्-अपघटन प्राप्त करते हैं। इसमें धातु की मात्रा पर्याप्त होती है। फिर विद्युत् अपघटन द्वारा कैथोड पर शुद्ध निक्षिप्त धातु प्राप्त करते हैं, (२) कच्चे धातु खनिज को सुगमता से पिघलनेवाले लवण में परिवर्तित करते हैं और इसे पिघलाकर संगलित विद्युत्-अपघटन से कैथोड पर शुद्ध निक्षिप्त धातु प्राप्त करते हैं। साधारणत: ऐलुमिनियम, बेरिलियम, कैल्सियम, लीथियम, मैग्नीशियम तथा सोडियम के लवणों के निर्जलीय गलन की, और ताँबा, कैडमियम, कोबाल्ट, मैंगनीज़, निकेल, ज़िंक आदि के लगणों के जलीय विलयन की वैद्युत प्राप्ति विधि से ये धातुएँ व्यापारिक पैमाने पर प्राप्त की जाती है।

वैद्युत परिष्करण विधि से उत्तम तथा उच्च कोटि की शुद्धता की धातु प्राप्त की जाती है। जिस धातु को शुद्ध करना होता है, उसे लवणीय अथवा अम्लीय विलयन में उपयुक्त आकार का ऐनोड, तथा उसी की शुद्ध निक्षिप्त धातु का कैथोड बनाकर लटका देते हैं। विद्युत्-अपघटन द्वारा बहुत ही शुद्ध धातु कैथोड पर लेप के रूप में प्राप्त हो जाती है। बहुमूल्य धातुओं की अशुद्ध ऐनोड से उपलब्धि, साधारण वैद्युत्परिष्करण कला में, एक महत्वपूर्ण गौण परिष्करण है। बहुधा ताँबा, विस्मथ, सोना, चाँदी, सीसा और राँगा जलीय विलयन विद्युत् अपघटन से शुद्ध किए जाते हैं।

किसी धात्विक अथवा अधात्विक वस्तु की सतह पर बिजली द्वारा किसी धातु के आवरण चढ़ाने को वैद्युत्लेपन कहते हैं। जिस पदार्थ पर आवरण चढ़ाना होता है, उसे एक छोटे से इलेक्ट्रोलीटिक कुंडिका में कैथोड बना देते हैं। इसके विद्युत् अपघटय विलयन में आवरणीय धातु की मात्रा पर्याप्त होती है। ताँबा, कैडमियम, क्रोमियम, सोना, निकल, सोडियम, चाँदी, मैग्नीसियम, राँगा, जस्ता आदि धातुओं तथा पीतल, ब्रांज़, चाँदी-कैडमियम आदि मिश्रधातुओं का साधारणत: औद्योगिक पैमाने पर विद्युतलेपन होता है।

ऐलुमिनियम का उत्पादन इलेक्ट्रोविनिंग विधि का एक बहुत अच्छा उदाहरण है (देखें ऐलुमिनियम)।

इलेक्ट्रोलीटिक ताँबे का उत्पादन वैद्युत् परिष्करण का एक सर्वप्रिय लौकिक उदाहरण है। उत्पादन का ९० प्रतिशत से अधिक ताँबा इसी ढंग से प्राप्त किया जाता है। (देखें ताँबा)

विद्युतलेपन कई कारणों से लोकप्रिय है। बहुधा यह अलंकारिक तथा सजावटी संपूर्ति के लिए किया जाता है और इससे संक्षारण प्रतिरोध सतह भी प्राप्त की जाती है। कभी कभी यह टूटे अथवा घिसे हुए सतहों की मरम्मत में बहुत उपयोगी तथा संतोषजनक होता है, विशेष कर बड़ी बड़ी मशीनों, मोटर, भाप टरबाइन, डाइनैमो, जनित्र आदि में। अधात्विक वस्तुओं पर धात्विक इलेक्ट्रोप्लेटिंग को इलेक्ट्रोफॉरमिंग कहा जाता है। इससे इन वस्तुओं पर विद्युतलेपन के लिए ग्रैफाइट अथवाधातुओं के बारीक पाउडर के प्रयोग से सुगमतापूर्वक विद्युत्आवरण प्राप्त कर लेते हैं। बहुधा कम विद्युत् दाब का प्रयोग करते हैं। दिष्ट धरा के ६ या १२ वोल्ट का जनित्र काम में लाया जाता है। इससे ५० से कई हजार ऐंपियर तक बिजली प्राप्त होती है। मिश्रधातुओं तथा एक के बाद दूसरी धातुओं का विद्युत् लेपन आजकल अधिक अपनाया जा रहा है तथा उपयोगी भी सिद्ध हुआ है।

इस विधि से बड़े बड़े इस्पाती रचनाकार्य की रक्षा की जाती हैं। इसकी सतह पर सस्ता और क्रियाशील धातु का कैथोडिक आवरण कर देते हैं, जो प्रधान निर्मित रचना की अपेक्षा अधिक संक्षारिक होता है। ऐसी तकनीकी का प्रयोग इलेक्ट्रोप्लेटिग ढंग से किया जाता है तथा इस प्रकार संचयित पीपे, डिब्बे, रेडियेटर, बॉयलर और बड़े बड़े पाइप लाइनों की रक्षा कैथोडिक आवरण से सफलतापूर्वक की जाती है। (दमड़ी सिंह)