विद्युत्चुंबकीय तरंगें (Electro-magnetic Waves) वस्तुत:, विद्युत् तरंगों का ही एक रूप हैं, जो चलनशील विद्युत् आवेश द्वारा उत्पन्न विद्युत्चुंबकीय प्रभाव का प्रतिरूप होती है। वैसे तो विद्युत्तरंगों और विद्युत्चुंबकीय तरंगों में कोई अंतर नहीं है, परंतु सामान्यत: विद्युत् तरंगों से होता है। इन्हें साधारण बोलचाल में रेडियों तरंग भी कहते हैं।

विद्युत्चुंबकीय तरंगें, वास्तव में, आकाश में स्थित विद्युत् ऊर्जा का प्रतिरूप है। ये तरंगें बहुत उच्च आवृत्ति की होती है और प्रकाश के वेग से चलती हैं। इनका मुख्य अंश, इनसे संबंधित, विद्युत् और चुंबकीय क्षेत्र है, जो एक दूसरे से समकोण पर स्थित होते है और चलन की दिशा के भी समकोण होते हैं। इनसे संबद्ध ऊर्जा का कुछ भाग स्थिरवैद्युत ऊर्जा (electrostatic energy) के रूप में होता है और कुछ चुंबकीय ऊर्जा के रूप में।

सभी प्रकार के विद्युत्चुंबकीय विकिरण (electro magnetic radiation) विद्युत्चुंबकीय तरंगों के ही रूप हैं। अति उच्च आवृत्ति की रेडियों तरंगें, प्रकाश, पराबैंगनी (ultraviolet) और अवरक्त (infra-red) विकिरण, विद्युत्चुंबकीय तरंगों के रूप है।

इन तरंगों के मुख्य गुण, इनकी उच्च आवृत्ति तथा सापेक्षतया कम तरंग लंबाई हैं। शक्ति बारंबारता की विद्युत्तरंगों की अपेक्षा इनकी तरंग लंबाई बहुत कम होती है। इस कारण इन्हें सहज ही आकाश में प्रेषित किया जा सकता है। इनकी ऊर्जा भी दूर दूर तक आकाश में अवस्थित रहती है और रेडियो अभिग्राही द्वारा ग्रहण कर फिर ध्वनि में बदली जा सकती है।

आवृत्ति को सामान्यतया किलोसाइकिल प्रति सेकंड (kilocycle per second=K C/S) में व्यक्त किया जाता है, और उससे भी अधिक आवृत्ति की तरंगों को मेगासाइकिल (megacycles) में। तरंग का वेग प्रकाश के वेग अर्थात् ३१० मीटर प्रति सेकंड के बराबर होता है। अत: विभिन्न आवृत्ति की तरंगों की तरंग लंबाई भी निर्धारित होती है। इनका क्षेत्र बहुत विस्तृत है। श्रव्य आवृत्ति (audio-frequency) का क्षेत्र भी १६ से १६,००० कंपन प्रति सेकंड है और इनकी तरंग लंबाई २.१ मीटर से २७ मीटर तक हो सकती है।

इन तरंगों की शक्ति, तरंग द्वारा उत्पन्न विद्युत् क्षेत्र के वोल्टता प्रतिबल (voltage stress) द्वारा मापी जाती है। इसे सामान्यत: प्रति मीटर माइक्रोवोल्ट में व्यक्त किया जाता है। प्रत्यावर्ती धारा द्वारा उत्पन्न प्रतिबल भी धारा के अनुरूप विचरण करता है। अत: इन तरंगों की तीव्रता (intensity) प्रतिबल के प्रभावी मान (effective value) द्वारा व्यक्त की जाती है। यह ज्यावक्रीय कंपन (sinusoidal variation) में अधिकतम तीव्रता का ( =०.७०७) होता है। इस प्रकार तरंग की शक्ति को माइक्रोवोल्ट प्रतिमीटर प्रतिबल में मापने का अर्थ उस वोल्टता से है जो एक मीटर लंबे संवाहक में उस तरंग का अभिवाह (flux) पारित करती हुई प्रेरित (induce) करती है।

तरंग के लंबवाला तल तरंगाग्र (wave front) कहलाता है। तरंग, इसके लंबवत् ही चलती है। उसका चलन, उससे संबद्ध विद्युत् एवं चुंबकीय अभिवाह की रेखाओं पर निर्भर करता है। यदि इनमें से किसी एक की दिशा उलट दी जाए, तो तरंग के चलन की दिशा भी उलट जाएगी। परंतु यदि दोनों को ही उलट दिया जाए, तो तरंग की दिशा में कोई अंतर नहीं होगा।

विद्युत् चुंबकीय तरंगें, विद्युत् आवेश दोलन (oscillation) द्वारा उत्पन्न की जा सकती है। ऐसे उपकरण दोलक (oscillators) अथवा संकेत जनित्र (Signal Generator) कहलाते हैं। दोलक के परिपथ अंशकों का व्यवस्थापन करने से किसी भी आवृत्ति की तरंगें जनित की जा सकती है।

विद्युत्चुंबकीय तरंगों की यह भी विशेषता है कि तरंग के केंद्र से दूरी बढ़ने पर तरंग की तीव्रता कम होती जाती है। दोलन के अक्ष (axis of oscillation) पर इनकी तीव्रता शून्य होती है तथा उसके लंब अक्ष पर अधिकतम होती है। विस्थापन (displacement) के दो या अधिक केंद्रों से जनित तरंगों में व्यतिकरण (interference) भी हो सकता है। वे एक दूसरे से मिलकर बढ़ भी सकती है और विरोध होने पर घट भी सकती है। यह प्रभाव इन तरंगों को फ़ोकस (focus) करने के काम में लाया जाता है, जिससे किसी भी दिशा में एक सकेंद्रित (concentrated) किरणपुंज (beam) भेजा जा सके। रेडियो संचरण (radio transmission) के क्षेत्र में यह प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण है।

विद्युत्चुंबकीय तरंगों को आकाश में प्रेषित करने के लिए, ऐंटेना (antenna) का प्रयोग किया जाता है। यह बहुत से तारों का एक जाल होता है, जो खुले स्थान में ऊँची बल्ली (mast) के सहारे लगा होता है। इसका आकार संचारित की जानेवाली रेडियो तरंग की तरंग लंबाई पर निर्भर करता है और उससे कुछ बड़ा होता है। इस तरह मध्यम तरंगों (medium waves) की तरंग लंबाई अधिक होने के कारण, उनको संचारित करनेवाला ऐंटेना भी काफी बड़ा होता है। इनकी अपेक्षा लघु तरंगों (short waves) की तरंग लंबाई कम होने के कारण, उनको संचारित करनेवाले ऐंटेना का आकार भी छोटा होता है।

सभी तरंगों की भाँति, विद्युत्चुंबकीय तरंगें भी अवरोध (obstacle) से परावर्तित (reflect) हो सकती है। यदि अवरोध तरंग लंबाई से छोटा है, तो आपतित (incident) तरंग के प्रभाव से वह दूसरी तरंग का, जो सभी दिशाओं में फैल जाती है, उद्गम हो जाता है। बड़े अवरोध होने पर तो प्रत्येक बिंदु ही दूसरे तरंगों का उद्गम बन सकता है। परिणामस्वरूप जो तरंग प्राप्त होती है, वह इन सभी तरंगों के व्यतिकरण का परिणाम होती है। इस प्रकार किसी बड़े अवरोध से परिवर्तित तरंगें विशिष्ट दिशा की होती हैं। रेडार (radar) द्वारा वस्तु की खोज करने के काम में व्यतिकरण के प्रभाव का प्रयोग किया जाता है। इसमें वस्तु से परावर्तित तरंग का अभिज्ञान (detection) करके वस्तु की केंद्र के सापेक्ष दिशा एवं दूरी का पता लगाया जाता है।

अधिक दूरी के रेडियो संचरण में भी विद्युत्चुंबकीय तरंगों के परावर्तन के प्रभाव का प्रयोग किया जाता है। ये तरंगें कोनों पर सहज ही नहीं मुड़ पातीं, अत: पृथ्वीतल पर भी क्षितिज से नीचे रेडियो तरंगें नहीं पहुँच पातीं, परंतु ये पृथ्वी से लगभग ५० किलोमीटर की दूरी पर स्थित आयनमंडल (ionosphere) से परावर्तित होकर पहुँच सकती हैं। पृथ्वी तल पर रेडियों में छोटी तरंगें वस्तुत: इसी प्रकार परावर्तित होकर उपलब्ध होती हैं।

विद्युत्चुंबकीय तरंगों का उत्पन्न एवं प्रेषित करने के लिए सबसे पहले हेर्ट्स ने प्रयास किया। उसने एक दोलक (oscillator) बनाया, जिसे हेर्ट्ज़ का दोलक कहते हैं और जिसके द्वारा प्रसारित तरंगें हेर्ट्स तरंगें कहीं जाती हैं। तथापि व्यावहारिक रूप से ऐसा करने में सर्वप्रथम मार्कोनी ने सफलता प्राप्त की। इन्होंने हर्ट्स दोलक का उपयोग इन तरंगों को उत्पन्न करने के लिए किया और प्रेमी का एक सिरा भूमित कर (earth), एक ऐंटेना बनाया, जिससे इन तरंगों का आकाश में प्रेषण किया जा सके। इस प्रकार मार्कोनी ने बेतारी तार (wireless) का आविष्कार किया, जो अब सामान्य उपयोग की वस्तु बन गया है।

विद्युत्चुंबकीय तरंगें भी तालाब में ढेला फेंकने से उत्पन्न तरंगों के सदृश ही अपने जनक बिंदु से आगे की ओर बढ़ती जाती हैं। परंतु इस परिगमन में वे धीरे धीरे कुछ कमजोर पड़ती जाती हैं। पृथ्वी और वायुमंडल के आयनित क्षेत्र, तरंगों की ऊर्जा का अवशोषण करते हैं, जिससे वे दुर्बल पड़ जाती हैं। यह क्रिया क्षीणन (attenuation) कहलाती है और तरंगों को क्षीण हुआ कहा जाता है। क्षीणन की क्रिया तरंगां के प्रसार पर भी निर्भर करती है।

वायुमंडल में आयनित स्तरों का क्षेत्र, जिसे आयनमंडल कहते हैं, इन तरंगों के लिए बड़े अवरोध का कार्य करता है। इससे ये तरंगें परावर्तित तथा अपवर्तित हो सती हैं। पृथ्वीतल भी इनके लिए पर्याप्त अवरोध है और इससे भी ये परवर्तित होती हैं। विभिन्न आवृत्ति की तरंगों के लिए यह स्थिति भिन्न होती है।

प्रत्यावर्ती धारा के सभी परिपथ, विद्युत्चुंबकीय तरंगों के रूप से कुछ विद्युत् ऊर्जा विकिरित करते रहते हैं, परंतु सामान्य परिपथों में यह ऊर्जा बहुत ही कम होती है। विकिरित की गई ऊर्जा परिपथ के विस्तार (dimensions) पर निर्भर करती है और जब तक यह तरंग-लंबाई के आकार का न हो, काई विशेष ऊर्जा विकिरित होनेवाली ऊर्जा नगण्य होती है। इसके संवाहकों की दूरी यदि २० फुट हो, तो ५० साइकिल आवृत्ति की विद्युत् तरंग के लिए, जिसकी तरंग लंबाई लगभग ३,००० मील होती है, यह दूरी इस तरंग लंबाई के सापेक्ष नगण्य होगी। अत: इससे विकिरित ऊर्जा भी नगण्य होगी; परंतु एक कुंडली, जिसका व्यास २० फुट का हो और २,००० किलोसाइकिल आवृत्ति पर संभरण किया जाए, तो इस आवृत्ति की तत्संबंधी तरंग लंबाई के लिए २० फुट का विस्तार नगण्य नहीं होगा। अत: ऐसे परिपथ से पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा का विकिरण होगा। इससे स्पष्ट है कि उच्च आवृत्ति की तरंगें छोटे ऐंटेना से प्रेषित की जा सकती है, परंतु कम आवृत्ति वाली तरंगों के लिए बड़े ऐंटेना की आवश्यकता होगी।

ऊर्जा का विकिरण सभी दिशाओं में समान नहीं होता। सभी ऐंटेना कुछ दिशा में सापेक्षतया अधिक ऊर्जा विकिरित करते हैं। इस प्रभाव का उपयोग तरंगों का विशिष्ट दिशा में संकेंद्रण करने के लिए किया जाता है।

जब इन तरंगों द्वारा कोई सूचना अथवा बोली भेजनी हो, तो तरंग को उसी के अनुरूप विचरण कराना आवश्यक है। इसे माडुलन (modulation) कहते हैं। यह तरंग के आयाम (amplitude) तथा आवृत्ति दोनों में ही किया जा सकता है। रेडियो तार संचार में तार कोड (code) के अनुसार ही, प्रेषित की जानेवाली तंरग को डॉट (dot) और डैश (dash) में बदलने की अवश्यकता होती है। इसके लिए प्रेषी को ऑन-ऑफ़ (on-off) करके ही कार्य बन सकता है। परंतु रेडियो टेलीफ़ोन में, रेडियो तरंग को ध्वनि तरंग के अनुरूप माडुलन करना आवश्यक है। इसी प्रकार टेलीविजन में चित्र के अनुसार, रेडियों तरंग को चित्र के विभिन्न भागों की प्रकाश तीव्रता के अनुरूप माडुलन करना पड़ता है।

रेडियो तरंगों को ग्रहण करने के लिए यह आवश्यक है कि आकाश में विचरती हुई ऐसी तरंग की ऊर्जा का अवशोषण किया जाए, जो ग्रहण बिंदु से पारित हो। यह कार्य रेडियो ग्राहक का एरियल (aeriel) करता है। तरंग का विद्युत्चुंबकीय अभिवाह, एरियल के संवाक को काटता हुआ उसमें एक वोल्टता प्रेरित करता है, जिसे संकेत (Signal) कहते हैं। यह संकेत ठीक उसी प्ररूप का होता है, जैसा कि प्रेषण करनेवाले ऐंटेना में प्रेषित होनेवाली तरंग का। इस प्रकार प्रत्येक तरंग से, एरियल ऊर्जा आवशोषित करता है और उनके अनुरूप ही उसमें वोल्टताएँ प्रेरित हो जाती हैं। अत:, यह आवश्यक है, कि रेडियो ग्राहक वांछित संकेत को अवांछित सकेत से अलग कर सके। यह उसे विशिष्ट आवृत्ति के लिए समस्वरित (tune) करके किया जाता है, जो परिपथ अंशकों का व्यवस्थापन करने से ही किया जा सकता है। विभिन्न स्टेशनों से भिन्न भिन्न आवृत्ति की तरंगें ही प्रेषित की जाती हैं, अत: रेडियो को ट्यून करे उसी आवृत्ति की तरंगों को ग्रहण कर सकना संभव है।

एरियल द्वारा ग्रहण किए गए क्षीण संकेत को सुन सकने योग्य बनाने के लिए, उसे प्रवर्धित (amplify) करना अवश्यक है। तत्पश्चात् उसे पहचाना, अथवा विमाडुलन (demodulate) किया जाता है, जिससे वह फिर ध्वनितरंग में परिवर्तित हो जाती है और सुनी जा सकती है। यह ध्वनितरंग ठीक उसी के अनुरूप होती है जो प्रेषी स्टेशन (transmitting station) से ऐंटेना द्वारा विद्युत्चुंबकीय तरंगों के ऊपर अवस्थित कर आकाश में प्रेषित की गई थी।

विद्युत्चुंबकीय तरंगों की एक विशिष्ट शाखा सूक्ष्म तरंग (micro-wave)श् है, जो पिछले कुछ वर्षों में अत्यधिक महत्वपूर्ण उपयोगों में लाई गई हैं। सूक्ष्म तरंग, वस्तुत: ३ से ३०० मेगासाइकिल प्रति सेकंड की आवृत्ति की होती है। ये विशेषतया स्थानिक संचारण (point to point communication) के लिए उपयोग में लाई गई हैं। यदि प्रेषित तरंगों का एक किरणपुंज में संकेंद्रित कर दिया जाए, तो विशिष्ट स्थान के लिए संचारक्षमता बहुत अधिक बढ़ाई जा सकती है। १ वाट के निर्गत (output) को भी एक शांकव किरणपुंज (conical beam) के रूप में संकेंद्रित करने पर एक विशिष्ट दिशा में लाभ बहुत अधिक हो सकता है। यद्यपि ऐसा सकेंद्रण सभी तरंग लंबाइयों के लिए संभव है, तथापि व्यावहारिक रूप से केवल अति अल्प तरंगों के लिए ही सफल हो सका है। सूक्ष्म तरंग द्वारा टेलीविजन में अधिक बैंड (band) प्राप्त किए जा सकते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत होता जा रहा है और ये अधिकाधिक उपयोग में आ रही हैं।

विद्युत् चुंबकीय तरंगें अपने उपयोग की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इन्हीं उपयोगों के होने से आज का जीवन इतना सुखमय वन सका है। इसका उपयोग निरंतर बढ़ता ही जा रहा है और प्रकृति के चमत्कार मानव के नियंत्रण में आते जा रहे हैं। (राम कुमार गर्ग)