विद्युत् चुंबक लोहे पर चुंबक रगड़कर लोहे को चुंबकीय किया जा सकता है और लोहे पर तार लपेटकर उस तार से विद्युत् धारा बहाकर भी लोहे को चुंबकित किया जा सकता है। विद्युत् धारा के प्रभाव से जिस लोहे में चुंबकत्व उत्पन्न होता है, उसे विद्युत् चुंबक कहते हैं।
सन् १८२० ई. में अस्टेंड (Oersted) ने आविष्कार किया कि विद्युत् धारा का प्रभाव चुंबकों पर पड़ता है। इसके बाद ही उसी साल ऐंरेगो (Arago) ने यह आविष्कार किया कि ताँबे के तार में बहती हुई विद्युत् धारा के प्रभाव से इसके निकट रखे लोहे और इस्पात के टुकड़े चुंबकित हो जाते हैं। उसी साल अक्टूबर महीने में सर हफ्रीं डेवी (Sir Humphrey Davy) ने स्वतंत्र रूप से इसी तथ्य का आविष्कार किया।
सन् १८२५ ई. में इंग्लैंड के विलियम स्टर्जन (William Sturgeon) ने पहला विद्युत्-चुंबक बनाया, जो लगभग ४ किलो का भार उठा सकता था। इन्होंने लोहे की छड़ को घोड़े के नाल के रूप में मोड़कर उसपर विद्युतरोधी तार लपेटा। तार में बिजली की धारा प्रवाहित करते ही छड़ चुंबकित हो गया और धारा बंद करते ही छड़ का चुंबकत्व लुप्त हो गया। यहाँ छड़ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक तार का एक ही दिशा में लपेटते जाते हैं, किंतु सिरों के सामने से देखने से मुड़ी हुई छड़ की एक बाहु पर धारा वामावर्त दिशा में चक्कर काटती है और दूसरी बाहु पर दक्षिणावर्त दिशा में। फलस्वरूप छड़ का एक सिरा उत्तर-ध्रुव और दूसरा दक्षिण ध्रुव बन जाता है।स्टर्जन के प्रयोगों से प्रेरित होकर सन् १८३१ में अमरीका के जोज़ेफ हेनरी (Joseph Henry) ने शक्तिशाली विद्युत् चुंबकों का निर्माण किया। उन्होंने लोहे की छड़ पर लपेटे हुए तारों के फेरों की संख्या बढ़ाकर विद्युत्चुंबक की शक्ति बढ़ाई। उन्होंने जो पहला चुंबक बनाया यह ३५० किलो का भार उठा सकता था और इसके बाद उन्होंने जो दूसरा विद्युत् चुंबक बनाया, वह १,००० किलोग्राम का भार उठा सकता था। उनके विद्युत् चुंबकों को कई सेल की बैटरी की धारा से ही उपर्युक्त प्रबल चुंबकत्व प्राप्त होता था। इसके बाद तो इससे भी शक्तिशाली विद्युत् चुंबकों का उत्तरोत्तर निर्माण होता गया। सन् १८९१ ई. में डु बॉय (Du Bois) ने एक बड़े विद्युत् चुंबक का निर्माण किया। इस विद्युत् चुंबक के क्रोड (core) (लोहे की छड़) पर तार के २,४०० फेरे लपेटे गए और जब तार से ५० ऐंपियर की विद्युत् धारा प्रवाहित की गई, तो इस विद्युत् चुंबक के बीच ४० हजार गाउस का प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हुआ। इस विद्युत् चुंबक के ध्रुव शंकु के आकार के थे और एक दूसरे के सम्मुख थे। ध्रुवों के बीच की खाली जगह की लंबाई १ मिमी और व्यास ६ मिमी था। डू बायस ने जो सबसे बड़ा चुंबक बनाया, उसका वजन २७ हंड्रेडवेट था और उसके ध्रुवों के बीच ३ मिमी लंबी और ०.५ मिमी व्यास की जगह में ६५ हजार गाउस का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता था।
पी. वाइस (P. Weiss) ने भी अति बलशाली विद्युत् चुंबकों का निर्माण किया। इनके द्वारा निर्मित एक विद्युत् चुंबक में ताँबे की नलिका के १,४४० फेरे थे और उससे १०० ऐंपियर की धारा बहाई जाती थी। नलिका के अंदर से पानी बहाकर उसे ठंढा रखा जाता था। डू बॉय के विद्युत्-चुंबक में भी लपेटे हुए तार खोखली नालिका के रूप में होते थे और नालिका के अंदर पानी बहाकर उसे ठंढा रखा जाता था।
विद्युत् चुंबक के क्रोड के लिए ऐसे लोहे का व्यवहार होता है जिसकी चुंबकीय प्रवृत्ति ऊँची हो, चुंबकन धारा बंद कर देने पर क्रोड का अवशेष चुंबकत्व निम्नतम हो और वह शीघ्र ही चुंबकीय संतृत्ति न प्राप्त करे। विद्युत् चुंबक के क्रोड के लिए पिटवाँ लोहे, अथवा ढालवाँ नरम इस्पात, का व्यवहार किया जाता है। किंतु किसी भी प्रकार के लोहे का व्यवहार किया जाए, उसका चुंबकत्व एक निश्चित सीमा को नहीं पार कर सकता, चाहे चुंबकन धारा को कितना भी क्यों न बढ़ाया जाए। इसलिए अति प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए कपित्ज़ा ने (Kapitza) तार को परिनालिका का व्यवहार किया, जिसका क्रोड वायु थी। इस परिनालिका में एक प्रबल जनित्र से ८,००० ऐंपियर की क्षणिक धारा ३/१००० सेकंड तक प्रवाहित कर उस परिनालिका के अंदर ३,२०,००० गाउस का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया।
कारखानों में विद्युत् चुंबक द्वारा भारी बोझों को उठाने का काम लिया जाता है। जिस बोझ को उठाना होता है, उसपर लोहे की पटरी बाँध देते हैं। विद्युत् चुंबक से धारा प्रवाहित करते ही विद्युत् चुंबक चुंबकित होकर लोहे की पटरी और पटरी से लगे बोझ को आकर्षित करके उठा लेता है। किसी विद्युत् चुंबक का बोझ उठाने का यह बल B2 A/8p के बराबर होता है, जहाँ B=चुंबक के ध्रुवों के निकट उसके चुंबकीय क्षेत्र का फ्लक्स घनत्व तथा A=चुंबक के ध्रुवों के मुख का क्षेत्रफल।
वैज्ञानिक अनुसंधानों में विद्युत् चुंबक का बहुत महत्वपूर्ण उपयोग होता रहा है। विद्युत् चुंबक की सहायता से फैरेडे ने प्रकाश संबंधी फैरेडे-प्रभाव, जेमान (Zeeman) ने ज़ेमान-प्रभाव और केर (Kerr) ने केर-प्रभाव का आविष्कार किया। आवेशित कणों को महान् वेग प्रदान करने के लिए, साइक्लोट्रॉन, बीटाट्रॉन, सिंक्रोट्रॉन और बिवाट्रॉन इत्यादि अद्भुत यंत्र बने हैं। इनमें भी विशाल विद्युत् चुंबकों का व्यवहार होता है।
प्रति दिन काम आनेवाले अनेक यंत्रों और उपकरणों में छोटे बड़े विद्युत् चुंबकों का व्यवहार होता है। बिजली की घंटी में, टेलीग्राफ और टेलीफोन में विद्युत्-चुंबक का व्यवहार होता है, क्योंकि विद्युत्-चुंबक की यह विशेषता है कि उसमें विद्युत् धारा बहते ही वह चुंबकित हो जाता है और विद्युत् धारा के बंद होते ही विचुंबकित, तथा उसका चुंबकत्व, एक निश्चित सीमा के अंदर, उस विद्युत् चुंबक पर लपेटे तार में बहती हुई धारा का अनुपाती होता है। लाउडस्पीकर में, धारा जनित्रों में, बिजली के मोटरों में, बिजली के हॉर्न में और चुंबकीय क्लच में विद्युत्-चुंबक का व्यवहार होता है। वैद्युत परिपथ में विद्युत् चुंबक के द्वारा रिले का काम लिया जाता है, यानी दूर से ही दुर्बल धारा द्वारा सौ और हजार ऐंपियर धारा के स्विचों को दबा कर सौ और हजार ऐंपियर की धारा स्थापित की जाती है। अनेक प्रकार के स्वचालित यंत्रों में विद्युत् चुंबकों का उपयोग होता है। (महेंद्र नारायण वर्मा)