आरा भारत के बिहार प्रांत के शाहाबाद (भोजपुर) जिले का प्रमुख नगर तथा व्यापारिक केंद्र है। (स्थिति : २५° ३४¢ उ.अ. और ८4° ४०¢ पू.दे.)। यह नगर वाराणसी से १३६ मील पूर्व-उत्तर-पूर्व, पटना से ३७ मील पश्चिम, गंगा नदी से १४ मील दक्षिण और सोन नदी से आठ मील पश्चिम में स्थित है। यह पूर्वी रेलवे की प्रधान शाखा तथा आरासासाराम रेलवे लाइन का जंकशन है। डिहरी से निकलनेवाली सोन की पूर्वी नहर की प्रमुख 'आरा नहर' शाखा भी यहाँ से होकर जाती है।
आरा अति प्राचीन ऐतिहासिक नगर है। इसकी प्राचीनता का संबंध महाभारतकाल से है। पांडवों ने भी अपना गुप्त वासकाल यहाँ बिताया था। जेनरल कनिंघम के अनुसार युवानच्वांग द्वारा उल्लिखित कहानी का संबंध, जिसमें अशोक ने दानवों के बौद्ध होने के संस्मरणस्वरूप एक बौद्ध स्तूप खड़ा किया था, इसी स्थान से है। आरा के पास मसार ग्राम में प्राप्त जैन अभिलेखों में उल्लिखित 'आरामनगर' नाम भी इसी नगर के लिए आया है। पुराणों में लिखित मोरध्वज की कथा से भी इस नगर का संबंध बताया जाता है। बुकानन ने इस नगर के नामकरण में भौगोलिक कारण बताते हुए कहा कि गंगा के दक्षिण ऊँचे स्थान पर स्थित होने के कारण, अर्थात् आड या अरार में होने के कारण, इसका नाम 'आरा' पड़ा। १८५९ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रतायुद्ध के प्रमुख सेनानी कुंवरसिंह की कार्यस्थली होने का गौरव भी इस नगर को प्राप्त है।
गंगा और सोन की उपजाऊ घाटी में स्थित होने के कारण यह अनाज का प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र तथा वितरणकेंद्र है। यहाँ दो स्नातक विद्यालय (डिग्री कालेज) हैं। रेलों और पक्की सड़कों द्वारा यह पटना, वाराणसी, सासाराम आदि से संबद्ध है।
नगर षड्भुजाकार है और इसका क्षेत्रफल छह वर्ग मील है। नगर के आकार पर धरातल का प्रभाव अधिक है। बहुधा सोन नदी की बाढ़ों से अधिकांश नगर क्षतिग्रस्त हो जाता है। सन् १९५३ में इसकी जनसंख्या ५३,१२२ थी। प्रशासनिक केंद्र होने के कारण यहाँ की अधिकांश जनसंख्या वकालत, डाक्टरी, नौकरी एवं प्राशासनिक कार्यों में लगी है। २२.२ प्रतिशत लोग व्यापार से तथा २४.३ प्रतिशत कृषि से जीविकोपार्जन करते हैं। उद्योग धंधे में लगे लोगों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत ही कम है।
(नृ.कु.सिं.)