आयोडीन रसायनशास्त्र में एक तत्व है। इसके रवे चमकदार तथा गाढ़े नीले काले रंग के होते हैं और वाष्प बैंगनी होता है। इस नए तत्व का अन्वेषण बर्नार्ड कूर्ट्वा ने किया और जे.एल.गे लुसक ने इसके गुणों के अध्यययन से (१८१३) इसमें तथा क्लोरीन में समानता तथा इसकी तात्विक प्रकृति को स्पष्ट किया। इसके बैंगनी रंग के कारण उसने इसका नाम आयोडीन रखा। हफ्रीं डेवी ने इसके गुणों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया।
आयोडीन यौगिक रूप में बहुत सी वस्तुओं में पाया जाता है। इनमें इसका अनुपात साधारणतया कम होता है। समुद्री जल, वनस्पतियों तथा जीवों में इसके यौगिक मिलते हैं। कई खनिज पदार्थों में, कुछ झरनों के जल तथा वायु में भी आयोडीन का पता लगा है। चिली देश के अशुद्ध शोरे में इसकी मात्रा कुछ अधिक होती है और व्यापारिक स्तर पर इसका उपयोग होता है। मनुष्य के शरीर के कई भागों में भी आयोडीन कार्बनिक यौगिक के रूप में मिलता है, विशेषकर थाइरायड, लिवर, त्वचा, केश आदि में। मछली के तेल में भी आयोडीन रहता है। पेट्रोलियम के कुओं के नमकीन घोल में भी आयोडीन मिलता है।
आयाडाइडों से किसी भी दूसरी हैलोजन द्वारा आयोडीन प्राप्त किया जा सकता है। परंतु हैलोजन की मात्रा अधिक होने पर स्वंय आयोडीन का उस हैलोजन से यैगिक बनता है। पोटैशियम आयोडाइड से क्लोरीन गैस आयोडीन देती है, परंतु आयोडाइड से आयोडीन प्राप्त करने के लिए साधारणतया मैंगनीज़ डाईआक्साइड तथा गंधक के अम्ल का ही अधिक प्रयोग होता है। गंधक अथवा शोरे के सांद्र अम्ल का ही अधिक प्रयोग होता है। गंधक अथवा शोरे के सांद्र अम्ल या विविध आक्सीकारक वस्तुएं भी इसी प्रकार काम में लाई जा सकती हैं। प्राप्त आयोडीन का बैंगनी वाष्प ठंडी सतह पर चमकदार काले रवों में जम जाता है।
समुद्री पौधों से पर्याप्त आयोडीन निम्नलिखित विधि द्वारा प्राप्त होता है : पवन से ये तृण पर आ जाते हैं, जिन्हें इकट्ठा कर और सुखाकर जला लिया जाता है। राख से, जिसे केल्प कहते हैं, आयोडीन तथा पोटैशियम प्राप्त होते हैं। राख को गरम पानी में घोलकर अघुलनशील वस्तुएं छान ली जाती हैं। फिर घोल का गरम कर गाढ़ा बना लेने पर घुले हुए बहुत से लवण रवा बनाने के लिए रख दिए जाते हैं। मामृद्रव रवों से अलग कर फिर गाढ़ा किया जाता है, जिससे अन्य घुले हुए लवण रवों के रूप में अलग किए जा सकते हैं। इस क्रिया को कई बार करने से गाढ़े घोल में आयोडीन का अनुपात बहुत बढ़ जाता है। घोल से पालीसल्फाइड तथा थायोसल्फेट गंधक के अम्ल की क्रिया द्वारा हटा लिए जाते हैं। देर तक रख देने पर अघुलनशील वस्तुएं नीचे बैठ जाती हैं तथा गाढ़े घोल से क्लोरीन की क्रिया द्वारा आयोडीन प्राप्त होता है। मैंगनीज़ डाई आक्साइड तथा गंधक का अम्ल, फेरिक क्लोराइड, नाइट्रिक अम्ल इत्यादि आक्सीकारक की क्रिया से भी गाढ़े द्रव से आयोडीन मिलता है अथवा तूतिया के प्रयोग से कापर आयोडाइड उससे फिर आयोडीन प्राप्त किया जाता है।
चिली देश के शोरे में सोडियम नाइट्रेट अलग करने पर मातृद्रव में कुछ सोडियम के नाइट्रेट, क्लोराइड, सल्फेट तथा आयोडेट और मैग्नीशियम सल्फेट बचा रहता है। द्रव में सोडियम बाइसल्फेट की क्रिया से आयोडीन मिलता है जिसे पानी से साफ कर सुखा लिया जाता है।
आयाडीन को शुद्ध करने लिए रवों को गरम कर, वाष्प को ठंडी सतह पर जमा लिया जाता है। इस प्रकार के ऊर्ध्वपातन (सब्लिमेशन) की क्रिया में सूखे आयोडीन के साथ पोटैशियम आयोडाइड के चूर्ण के उपयोग से बहुत शुद्ध आयोडीन प्राप्त होता है। इस मिश्रण से प्राप्त शुद्ध आयोडीन आगे कैल्सियम क्लोराइड की सहायता से सुखाया जा सकता है।
आयोडीन के रवों में धातु सी चमक होती है। यद्यपि साधारण तापक्रम पर इसका वाष्पदाब कम है, तो भी अपनी विशेष गंध तथा रंग से यह सरलता से पहचाना जा सकता है। आयोडीन का घनत्व ४.९४ ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर (२०° सें. पर) है। आयोडीन का द्रवणांक ११३.७° सें. तथा क्वथनांक १८४.३५ सें. है। ७००° सें. से ऊपर गरम करने पर वाष्प का घनत्व घटता है और १७००° सें. पर आधा रह जाता है।
आयोडीन
का विघटन आ२
२आ
तापक्रम पर निर्भर
है; कम तापक्रम
पर आ२ तथा अधिक
पर आ रहता है।
वाष्पदाब ताप
के साथ बढ़ता
है :
वाष्पदाब : १ १० ४० १०० ४०० ७६० मिलीमीटर
ताप : ३८.७ ७३.२ ९७.५ ११६.५ १५९.८ १८३ डिगी सें.
आयोडीन पानी में कम घुलनशील है तथा घोल का रंग हल्का पीला या भूरा होता है। १०० घन सेंटीमीटर ठंढे पानी में ०.०२९ ग्राम आयोडीन घुलता है। संतृप्त घोल में आयोडीन की मात्रा, पानी में कुछ लवण अथवा अम्ल के रहने पर, बहुत निर्भर है। सोडियम और पोटैशियम के सल्फेट या नाइटेट के उपस्थित रहने से घटती है, परंतु इन्हीं के क्लोराइड, ब्रोमाइड या आयोडाइड की उपस्थिति से बढ़ जाती है। अत: औषधियों के निमित्त आयोडीन का घोल बनाने के लिए पौटैशियम आयोडाइड का उपयोग होता है। फास्फोरिक, ऐसीटिक तथा टैनिक अम्लों में आयोडीन घुलनशील है। कुछ लवणों में (जैसे आरसेनिक क्लोराड) तथा दूसरी वस्तुओं में (जैसे द्रव सल्फर डाई आक्साइड या ट्राई आक्साइड, कार्बन डाईआक्साइड और अमोनिया में) में भी आयोडीन घुल जाता है। कार्बन डाईसल्फाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड, बेंजीन, टॉलूईन, मिट्टी के तेल इत्यादि कार्बनिक द्रवों में आयोडीन की बड़ी मात्रा घुल जाती है। इन घोलों का रंग घोलक की प्रकृति पर निर्भर है। साधारणतया इनका रंग, नीला, बैंगनी अथवा भूरा होता है। कुछ ठोस पदार्थ (जैसे कार्बन) आयोडीन सोख लेते हैं।
आयोडीन के रासायनिक गुण फ्लोरीन, क्लोरीन तथा ब्रोमीन के गुणों से मिलते हैं। हैलोजन के इस समूह में आयोडीन सबसे भारती है तथा अन्य हैलोजन से भी इसके यौगिक बनते हैं, जैसे आक्लाे, आक्लाे३ तथा आ ब्रो। हाइड्रोजन के साथ गरम करने पर तथा आक्सीजन के साथ मूक (साइलेंट) विद्युद्धिसर्जन होने पर आयोडीन क्रिया करता है। कुछ धातुओं से भी आयोडीन संयुक्त होता है; यथा सोने के साथ गरम करने पर, पारे से साधारण ताप पर सरलता से और पोटैसियम से धड़ाके के साथ क्रिया होती है, जिसमें धातु का आयोडाइड बनता है। आयोडीन का ऐलकोहल में घोल अमोनिया से क्रिया करता है, जिसमें प्रतिस्थापन-उत्पाद-पदार्थ (सब्स्टिट्यूशन प्रॉडक्ट) और नाइट्रोजन आयोडाइड बनते हैं। नाइट्रिक अम्ल के साथ उबालने पर नाइट्रोजन परॉक्साइड प्राप्त होता है। ऐंटीमनी तथा फास्फोरस से भी आयोडीन क्रिया करता है।
कुछ लवण भी आयोडीन से क्रिया करते हैं। सिल्वर नाइट्रेट से सिल्वर आयोडाइड मिलता है। पोटैशियम आयोडाइड के घोल में आयोडीन से पोटैशियम पॉलीआयोडाइड बनता है। सोडियम थायो-सल्फेट की क्रिया से आयोडीन, आयोडाइड बनाता है, जिससे आयोडीन के घोल का रंग समाप्त हो जाता है। यह क्रिया घोल में स्वतंत्र आयोडीन की मात्रा ज्ञात करने के लिए उपयोगी है। स्टार्च के साथ आयोडीन नीले रंग की वस्तु देता है। अत: आयोडीन अल्प मात्रा में रहने पर भी स्टार्च संकेतक द्वारा पहचाना जा सकता है।
आयोडीन विविध रूपों में दवाओं में, विशेष कर बाह्य उपयोग के लिए प्रतिदोषरोधी (ऐंटीसेप्टिक) के रूप में प्रयुक्त होता है, जैसे टिंक्चर आयोडीन; लिकर आयोडाइ; आयोडाइज्ड रुई, शराब या पानी; आयडोफार्म; एथिल आयोडाइड; आयोडोल आदि। फोटोग्राफी में तथा विविध प्रकार के रंग बनाने में भी इसका उपयोग होता है।
सं.ग्रं.-जे.डब्ल्यू. मेलर : ए कॉम्प्रिहेंसिव ट्रीटज़ ऑन अनॉर्गैनिक ऐंड थ्योरेटिकल केमिस्ट्री (१९२२); जे.आर. पारटिंगटन : ए टेक्स्ट बुक ऑव इनॉर्गैनिक केमिस्ट्री; चार्ल्स डी. हॉजमैन : हैंडबुक ऑव केमिस्ट्री ऐंड फिज़िक्स। (विं.वा.प्र.)