आयलर संख्याएँ आयलर (ऑयलर) संख्याओं का नाम जर्मन गणितज्ञ लियोनार्ड ऑयलर के नाम पर रखा गया है। ये संख्याएँ आयलर बहुपदों (पॉलीनोमियल्स) से उत्पन्न होती हैं :

यदि

जहाँ नेपरीय लघुगणकों का आधार है और

0 () = ,

तो 0() को घात और वर्ण (ऑर्डर) शून्य का आयलर बहुपद कहते हैं।

वर्ण के आयलर बहुपदों की परिभाषा यह है :

=1/2रखने से () () के जो मान प्राप्त होते हैं, उन्हें वर्ण की आयलर संख्याएँ न() कहते हैं। विषम प्रत्यय (साफ़िक्स) की समस्त आयलर संख्याएँ शून्य हो जाती हैं।

इस प्रकारन ()=(स) (1/2)।

(१)(स) के लिए हम न(स) लिखते हैं।

हम जानते हैं कि

का पुनर्विन्यास करके २प के गुणांक को श्रेणी 1/4p व्युका 1/2 pके पद २प के गुणांक के समान रखने से हमें यह प्राप्त होगा :

इस संबंध से स्पष्ट है कि आयलर संख्याएँ बराबर बढ़ती जाती हैं और प्रत्येक संख्या का चिन्ह बदलता जाता है, अर्थात् वे क्रमानुसार घनात्मक और ऋणात्मक होती हैं।

का मान सारणिक के रूप में

होता है।

बर्नूली संख्याओं की भाँति आयलर संख्याएँ भी सांख्यिकी स्टैटिस्टिक्स) में अंतर्वेशन (इंटरपोलेशन) में प्रयुक्त होती हैं।

सं.ग्रं.-मिल्न-टॉमसन : कैल्क्युलस ऑव फ़ाइनाइट डिफ़रेंसेज़। (ना.गो.श.)