आबेल, नील्स हेनरिक (१८०३-१८२९ ई.) नार्वे के गणितज्ञ थे। इनका जन्म २५ अगस्त, १८०३ ई. को हुआ। इनकी शिक्षा क्रिस्टिआनिया विश्वविद्यालय (ऑसलो) में हुई। १८२५ ई. में राजकीय छात्रवृत्ति पाकर ये गणिताध्ययन के लिए जर्मनी और फ्रांस गए, परंतु आर्थिक कारणों से १८२७ ई. में इन्हें नार्वे लौटना पड़ा और वहाँ पर ६ अप्रैल, १८२९ ई. को केवल २६ वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो गई। इतने अल्प समय में भी गणित को आबेल ने अपूर्व देन दी है। समीकरणों के सिद्धांत में इन्होंने पंचघातीय व्यापक समीकरण के हल की असंभवता सिद्ध की; यह ज्ञात किया कि बीजगणित की सहायता से कौन-कौन से समीकरण हल किए जा सकते हैं और उस समीकरण को हल करने की विधि प्रदान की जिसे अब आवेल का समीकरण कहा जाता है। फलनों के सिद्धांत में इन्होंने दीर्घवृत्तीय तथा अब आबेल के फलन कहे जानेवाले फलनों पर अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किए। चल-राशि-कलन (इनटेग्रल कैलकुलस) में इनकी प्रसिद्ध देन वे अनुकल हैं जो अब आवेल के अनुकल कहलाते हैं। आवेल के अति दीर्घवृत्तीय अनुकल इन्हीं के विशिष्ट रूप हैं।
सं.ग्रं.-सी.ए.व्यर्कनेस : नील्स हेनरिक आवेल, ताब्लो द सा बी ए सोन आक्स्यों सियाँतिफिक, १८८५। (रा.कु.)