आनंदपाल शाहिय नृपति प्रसिद्ध जयपाल का पुत्र। जयपाल ने महमूद गजनी से हारकर, बेटे को गद्दी सौंप, ग्लानिवश अग्निप्रवेश किया था। आनंदपाल भी चैन से राज न कर सका और महमूद की चोटें उसे भी सहनी पड़ीं। १००८ ई. में महमूद ने भारत पर फिर आक्रमण किया। पिता ने महमूद से लड़ते समय देश की विदेशियों से रक्षा के लिए हिंदू राजाओं को सेना सहित आमंत्रित किया था। वही नीति इस संकट के समय आनंदपाल ने भी अपनाई। उसने देश के राजाओं को आमंत्रित किया, उनकी सेनाएँ आई भी, पर महमूद के असाधारण सैन्यसंचालन के सामने वे टिक न सकीं और मैदान हमलावर के हाथ रहा। इस पराजय के बाद भी आनंदपाल छह वर्ष तक प्राचीन शाहियों की गद्दी पर रहा, पर गजनी के हमलों से शीघ्र ही उसका राज्य टूक-टूक हो गया। उसके बेटे त्रिलोचनपाल और पोते भीमपाल ने भी महमूद से लोहा लिया, पर शाहियों की शक्ति निरंतर क्षीण होती गई और भीमपाल की युद्ध में मृत्यु के बाद उस प्रसिद्ध शाही राजकुल का १०२६ ई. में अंत हो गया जिसने गुप्त सम्राटों द्वारा मालवा और गुजरात से विदेशी कहकर निकाल दिए जाने पर भी हिंदूकुश और काबुल के सिंहद्वार पर सदियों भारत की रक्षा की थी। (ओं.ना.उ.)