आदित्य अदिति के पुत्र। इस शब्द के अर्थ हैं-सूर्य, समस्त देवता, सूर्यअधिष्ठित गगन, सूर्य का तेजोमंडल, आदित्यमंडलांतर्गत हिरण्यवर्ण परमपुरूष विष्णु, दक्षिण और उत्तर पथ में ईश्वर द्वारा नियुक्त धूमादि एवं अर्चिरादि अभिमानी देवगण, अर्कवृक्ष, सूर्य के पुत्र, इंद्र, वामन, वसु, विश्वेदेवा तथा तोमर, लीला आदि बारह मात्राओं के छंद।

ऋग्वेद (२-२७-१) में छह आदित्य बताए गए हैं-मित्र, अर्यमण, भग, वरुण, दक्ष तथा अंश। पुन: ऋग्वेद (९-११४-३) में आदित्यों की संख्या सात कही गई है परंतु जहाँ इनका नामोल्लेख नहीं है। ऋग्वेद (१०-७२-८-९) तथा शतपथ ब्राह्माण (६-१-२८) में अदिति के आठवें पुत्र का नाम मार्तंड दिया गया है। अथर्ववेद (८-९-२१) में अदिति के धातृ, इंद्र, विस्वस्वान, मित्र, वरूण तथा अर्यमण इत्यादि अदिति के आठ पुत्र बताए गए हैं। शतपथ ब्राह्मण (११-६-३-८) में १२आदित्य हैं जो क्रमश: १२ महीनों के निर्देशक माने जाते हैं। ऋग्वेद में सूर्य का आदित्य कहा गया है। अत: सूर्य सातवाँ और मार्तंड आठवाँ आदित्य है। गाय आदित्यों की बहन है (ऋ. ८-१०-१-१५)।

ऋग्वेद (७-८५-४) तथा मैत्रायणी संहिता (२-१-१२) में इंद्र को आदित्यों में से एक कहा गया है परंतु शतपथ ब्राह्मण (११-६-३-५) में इंद्र बारह आदित्यों से अलग है। आदित्य का उल्लेख वसु, रुद्र, मरुत, अंगिरस, ऋतु तथा विश्वेदेव आदि देवताओं के साथ कई स्थानों पर हुआ है, फिर भी वह समस्त देवताओं का सामान्य नाम है।

तैत्तिरीय ब्राह्मण (१-१-९-१) में कथा मिलती है कि अदिति ने ब्रह्मदेव को उद्देशित कर चावल पकाया ताकि उसकी कोख से साध्यदेव उत्पन्न हों। आहुति देकर बचा हुआ चावल उसने खाया जिससे धातृ एवं अर्यमण दो जुड़वाँ पुत्र हुए । दूसरी बार मित्र तथा वरुण, तीसरी बार अंश एवं भग और चौथी बार इंद्र एवं विवस्वान हुए । यहीं कहा गया है कि अदिति के १२ पुत्र ही द्वदशादित्य या साध्य नामक देव हैं। ऐतरेय ब्राह्मण तथा अन्य ब्राह्मणों में आदित्य की उत्पत्ति सामवेद से भी बताई गई है। पुराणों में आदित्य कश्यप तथा अदिति के पुत्र हैं। (विशेष द्र. 'सूर्य'।) (कै.चं.श.)