आत्मकथा अपनी कहानी। आपबीती लिखना आसान नहीं है। कुछ लोगों का यह विचार है कि केवल उन्हीं की आत्मकथाएँ होनी चाहिए जिनका जीवन पर्याप्त घटनाबहुल रहा हो या महान् अथवा आदर्श हो। आत्मकथा के लिए आवश्यक गुण हैं (१) उत्तम समृति, (२)अपने प्रति तटस्थता, (३) स्पष्टवादिता, (४) अति आत्मसमर्थन अथवा अति संकोच, दोनों प्रकार की मानसिक स्थितियों से मुक्त होना, (५) अपने जीवन की घटनाओं को चुनते समय, कौन सी घटनाएँ सार्वजनिक महत्व की होंगी, इसका विवेक, अर्थात् कलात्मक दृष्टि और (६) आकर्षक निवेदनशैली। जीवन में ऐसी कई घटनाएँ होती हैं, और महान् व्यक्तियों के जीवन में तो वे और भी तीव्रता से अनुभव की जाती हैं, जो कथनीय होती हैं, जिनमें किसी प्रकार के रागद्वेष का अतिरेक होता है अथवा काम क्रोधादि वृत्तियों का निरंकुश प्रदर्शन होता है। उन्हें टालकर जो जीवनियाँ लिखी जाती हैं, वे बनावटी जान पड़ती हैं, उनमें सहजता का लोप हो जाता है। उर्दू पूरी तरह कहने का नैतिक साहस बहुत कम व्यक्तियों में होता है; क्योंकि तब तो एक ओर आत्मनिरीक्षण और आत्मविशलेषण तथा दूसरी ओर आत्मप्रेम के बीच द्वंद्व पैदा होता है। इस कशमकश को संसार की कुछ महानतम आत्मकथाओं में बराबर उत्कटता से अनुभव किया गया और व्यक्त भी किया गया है। ए आत्मकथाएँ साहित्य की अभिराम रचनाएँ और कलाकृतियाँ बन गई हैं।
इसके विपरीत कई आत्मकथाएँ केवल घटनाओं की तालिका या बाह्म व्यावहारिक जीवन के नीरस विवरणों की सूची मात्र हो जाती है। उनमें बहुत कम ऐसे अंश पाए जाते हैं जिनमें पाठक भी उतना ही रसोद्बोधन अनुभव कर सकें। परंतु इस प्रकार के ग्रंथों का ऐतिहासिक मूल्य होता है। वे हमारी जानकारी तो बढ़ाती ही है। इब्नबतूता, यूवानच्वांग, अलबेरूनी, फ़ाहियान, निकोलाओ मानूची, निकितिन, नैनसिंग, तेनसिंग आदि के यात्रा या अभियान वर्णन इस प्रकार की आत्कथाओं और संस्मरणों के उत्तम उदाहरण हैं। पत्रों और डायरियों के संग्रह भी इसी कोटि में आते हैं, यद्यपि उनमें आत्मीयता अधिक होती है। गेटे ने इसीलिए अपनी जीवनी का नाम रखा था 'डिश्टुंग उंड़ वाहहीट' (कविता और सत्य)। पेप्स ने अंग्रेजी में डायरियाँ बहुत सुंदर लिखीं।
विदेशी लेखकों की श्रेष्ठ आत्मकथाओं में एक साहित्यविधा आत्मस्वीकृति के साहित्य की होती है। इसी के अंतर्गत संत अगस्तिन (३४५-४३० ई.) के 'कन्फेशंस', रूसो के 'कन्फेशंस' (उसकी मृत्यु के बाद १७८१-८८ में प्रकाशित), डी क्विन्सी की १८२१में प्रकाशित 'एक अंगरेज अफीमची की आत्मकथा' (कन्फेशंस ऑव ऐन ओपियम ईटर) आदि आत्कथाएँ आती है। अल्फ्रे दि मुसे की प्रसिद्ध फ्रेंच आत्मजीवनी, आस्कर वाइल्ड की 'डी प्रोफंडिस', लियो तोल्स्तोइ की आत्मकथा के रूप में लिखित डायरी, आंद्रे जीद के जूर्नाल, एथिल मैनिन के 'कन्फेशंस ऐंड इंप्रेशंस' इसी कोटि में आते हैं। इनके तीन प्रकार संभव होते हैं; (१) ऐसी कथाएँ जो एक कमरे में इकट्ठा लोगों को कोई आदमी पूर्वसंस्मरणों के रूप में कहे; (२) ऐसी बातें कहना जो केवल मित्रों से एकांत में कही जा सकें; (३) ऐसी बातें जिन्हें मित्रों से भी कहने में लज्जा अनुभव हो। कुछ आत्मकथाएँ इसलिए मनोरंजक होती हैं कि उनके द्वारा किसी व्यक्तिके आत्मिक अनुभव प्रकट होते हैं, यर्था जार्ज फ़ाक्स क्वेकर या प्रिंस क्रोपात्किन या कर्डिनल निवमैन या स्टीवेन स्केंडर की आत्मकथाएँ। कुछ आत्मकथाएँ इसलिए प्रसिद्ध होती हैं कि वे किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की या उनसे संबंधितों की होती हैं, यथा बाबरनामा (१४८३-१५३०), हिटलर का 'मीन कांफ', मादमोज़ेल द रेमूसेत (नेपोलियन की प्रेयसी), चर्चिल, जार्ज सैंड, अन्ना पावलोवा, मेरी बाशकीर्तसेफ, बोदलएर, सोमरसेट माम आदि के संस्मरण, डायरियाँ नाटबुकक इत्यादि।
यूरोप की प्राचीन आत्मकथाओं में प्रसिद्ध आत्मकथा रोमन विजेता जूलियस सीज़र की है। आधुनिक काल की रोचक आत्मकथाओं में जर्मन सम्राट् विलहेम कैसर की आत्मकथा है जिसके पहले अध्याय का शीर्षक है 'दस आइ डिसमिस बिस्मार्क' (मैंने बिस्मार्क को बर्खास्त कर दिया)।
हिंदी के प्राचीन साहित्य में आत्मकथात्मक सामग्री यत्र-तत्र ही मिलती है। जैन कवि बनारसीदास की 'अर्धकथा' हिंदी की प्रथम क्रमबद्ध आत्मकथा मानी जाती है, यद्यपि यह पद्यात्मक है। भारतेंदु हरिश्चंद्र, स्वामीदयानंद, अंबिकादत्त व्यास, स्वामी श्रद्धानंद, महावीरप्रसाद द्विवेदी, गुलाबराय की आत्मकथाएँ इस धारा की प्रारंभिक और प्रयोगात्मक रचनाएँ मानी जा सकती हैं। संबद्ध रूप से लिखी गई हिंदी की आत्मकथाओं में श्यामसुदंरदास की 'मेरी आत्कहानी' तथा राजेंद्रप्रसाद की 'अत्मकथा' प्रमुख हैं।
भारत के विशिष्ट महापुरुषों की प्रसिद्ध आत्मकथाओं में महत्मा गांधी की 'सत्य के प्रयोग', जो मूल रूप में गुजराती में लिखी गई थी तथा अंग्रेजी में लिखी गई जवाहरलाल नेहरू की 'मेरी कहानी' उल्लेखनीय हैं। भारत की समस्त भाषाओं में आत्मचरित संबंधी साहित्य मिलता है, उदाहरणार्थ रवींद्रनाथ ठाकुर की बंगला में लिखी 'जीवनस्मृति' , मराठी में सावरकर की 'माझी जन्मठेप', धोंडो केशव कर्वे की 'आत्मकथा', रमाबाई रानडे की 'आमच्या आयुष्यांतील काहीं आठवशी', धर्मानंद कोसंबी का 'निवेदन' गुजराती में काका कालेलकर की 'आतेराती दीवालो' और हिंडलगानुं प्रसाइ' तथा कंमां मुंशी की 'सीधी चढ़ान' और 'स्वप्रसिद्धि को खोज में', मलयालम में सरदार पणिक्कर की आत्मकथा , उर्दू में 'मौलाना आज़ाद की कहानी उनकी ज़बानी' , बंगाल में कई क्रांतिकारियों की और सुभाषचंद्र बोस की आत्मजीवनियाँ पठनीय हैं। (प्र.मा.)