आज़ाद अबुलकलाम अहमद मुहीयुद्दीन (१८८८-१९५८ ई.) एक बड़े विद्वान् घराने में पैदा हुए। जन्म मक्का में हुआ और किशोरावस्था के कई वर्ष बीते। अरबी फारसी अपने पिता से पढ़ी और वाल्यावस्था में ही असाधारण ज्ञान प्राप्त कर लिया। अभी केवल १२ वर्ष के थे कि एक पत्रिका कलकत्ता से निकाल दी और १९०२ ई. से पत्रपत्रिकाओं में इनके लेख छपने लगे। १९०२ ई. में कलकत्ता से ही एक साहित्यिक पत्रिका 'लिसानुस-सिदक' निकाली। १९०५ ई. में लखनऊ की प्रसिद्ध पत्रिका 'अन-नदवा' के संपादक नियुक्त हुए। दो वर्ष बाद अमृतसर चले गए और वहाँ 'वकील' के संपादक हो गए।

१९१२ ई. में कलकत्ते से स्वयं अपना साप्ताहिक 'अल हिलाल' निकाला। उर्दू में ऐसी उच्च कोटि का कोई साप्ताहिक इससे पहले नहीं निकाला। १९१६ ई. में अपने राजनीतिक विचारों के कारण रांची में नजरबंद कर दिए गए। यहाँ इन्होंने अपने पूर्वजों के बारे में अपनी प्रसद्धि पुस्तक 'तज़केरा' लिखी और 'क़ोरान शरीफ़' का उर्दू अनुवाद टीका सहित आरंभ कर दिया। १९१९ ई. में वहाँ से छूटे, किंतु १९२१ ई. में फिर बंदी बना दिए गए। १९२३ ई. में कांग्रेस के सभापति चुने गए। १९३० ई. में अंग्रेजी राज्य ने सभी नेताओं के साथ मौलाना आजाद को भी बंदी बना दिया। १९३९ में फिर कांग्रेस के सभापति नियुक्त किए गए और १९४६ तक इसका नेतृत्व करते रहे। १९४२ ई. में अंतिम बार कैद किए गए। स्वतंत्रता मिलने पर केंद्र में जो राष्ट्रीय मंत्रिमंडल बना, मौलाना आज़ाद उसमें शिक्षामंत्री बनाए गए। इसी बीच ईरान, तुर्की, इंग्लैंड और फ्रांस की यात्रा की। २२ फरवरी, १९५८ ई. को दिल्ली में देहाँत हुआ।

आज़ाद ने वैसे कुछ कविताएँ भी लिखी किंतु उनके गद्य ने उन्हें उर्दू साहित्यकारों में बहुत ऊँचा स्थान दिया। उनके लेखों में भी उनके व्याख्यानों की शक्ति पाई जाती है।

मौलाना आज़ाद की रचनाओं में 'तज़केरा', 'तरजुमानुल क़ोरान', 'गुब्बारे-खातिर', 'कौले-फ़ैसल', 'दास्ताने करबला, 'इंसानियत मौत के दरवाजे पर', 'मज़ामीने अल हिलाल', 'मज़ामीने आज़ाद', 'खुतबाते आज़ाद' इत्यादि हैं।

सं.ग्रं.-अबुल कलाम आज़ाद : तज़केरा; अबुल कलाम आज़ाद : इंडिया; जोश मलीहाबादी : आज़ाद की कहानी; काज़ी अब्दुल गफ्फ़ार : आसारे-अबुल-कलाम; अबू सईद अज़मी: अबुल कलाम आज़ाद विन्स फ्रीडम! (सै.ए.हु.)