आक्सीजन रंग, स्वाद तथा गंधरहित एक गैस है। इसकी खोज, प्राप्ति अथवा प्रारंभिक अध्ययन में जे. प्रीस्टले और सी.डब्ल्यू. शेले ने महत्वपूर्ण कार्य किया है।
आक्सीजन पृथ्वी के अनेक पदार्थों में रहता है और वास्तव में अन्य तत्वों की तुलना में इसकी मात्रा सबसे अधिक है। आक्सीजन वायुमंडल में स्वतंत्र रूप में मिलता है और आयतन के अनुसार उसका लगभग पाँचवाँ भाग है। यौगिक रूप में पानी, खनिज तथा चट्टानों का यह महत्वपूर्ण अंश है। वनस्पति तथा प्राणियों के प्राय: सब शारीरिक पदार्थों का आक्सीजन एक आवश्यक तत्व है।
कई प्रकार के आक्साइडों (जैसे पारा, चाँदी इत्यादि के) अथवा डाइआक्साइडों (लेड, मैंगनीज़, बेरियम के) तथा आक्सीजनवाले बहुत से लवणों (जैसे पोटैशियम नाइट्रेट, क्लोरेट, परमैंगनेट तथा डाइक्रोमेट) को गरम करने से आक्सीजन प्राप्त हो सकता है। जब कुछ पराक्साइड पानी के साथ प्रक्रिया करते हैं तब भी आक्सीजन उत्पन्न होता है। अत: सोडियम पराक्साइड तथा मैंगनीज़ डाइआक्साइड या चूने के क्लोराइड का चूर्णित मिश्रण (अथवा इसी प्रकार के अन्य मिश्रण भी) आक्सीजन उत्पादन के लिए प्रयुक्त होते हैं। हाइपोक्लोराइड अथवा हाइपोब्रोमाइट (जैसे ब्लीचिंग पाउडर) के विघटन से या गंधक के अम्ल तथा मैंगनीज़ डाइआक्साइड या पोटैशियम परमैंगनेट की क्रिया से भी आक्सीजन मिलता है। गैसे की थोड़ी मात्रा तैयार करने के लिए हाइड्रोजन पराक्साइड अकेले अथवा उत्प्रेरक के साथ अधिक उपयुक्त है।
जब बेरियम आक्साइड को तप्त किया जाता है (लगभग ५००° सें. तक) तब वह हवा से आक्सीजन लेकर पराक्साइड बनाता है। अधिक तापक्रम (लगभग ८००° सें.) पर इसके विघटन से आक्सीजन प्राप्त होता है तथा पुन: उपयोग के लिए बेरियम आक्साइड बच रहता है। औद्योगिक उत्पादन के लिए ब्रिन विधि इसी क्रिया पर आधारित थी। आक्सीजन प्राप्त करने के विचार से कुछ अन्य आक्साइड भी (जैसे ताँबा, पारा आदि के आक्साइड) इसी प्रकार उपयोगी हैं। हवा से आक्सीजन अलग करने के लिए अब द्रव हवा का अत्यधिक उपयोग होता है, जिसके प्रभाजित आसवन से आक्सीजन प्राप्त किया जाता है, पानी के विद्युत्श्लेषण (इलेक्ट्रॉलिसिस) से हाइड्रोजन के उत्पादन में आक्सीजन भी उपजात (बाइप्रॉडक्ट) के रूप में मिलता है।
आक्सीजन का घनत्व १.४२९० ग्राम प्रति लीटर है (०° सें., ७५० मिलीमीटर दाब पर) और वायु की अपेक्षा यह गैस १.१०५२७ गुना भारी है। इसका विशिष्टताप (स्थिर दाब पर) ०.२१७८ कैलोरी प्रति ग्राम, १५° सें. पर, है तथा स्थिर आयतन के विशिष्ट ताप से इसका अनुपात (१५° सें. पर) १.४०१ है। आक्सीजन के द्रवीकरण में विशेषज्ञों को विशेष कठिनाई हुई थी, क्योंकि इसका क्रांतिक (क्रिटिकल) ताप-११८.८° सें., दाब ४९.७ वायुमंडल तथा घनत्व ०.४३० ग्राम/सेंटीमीटर ३ है। द्रव आक्सीजन हल्के नीले रंग का होता है। इसका क्वथनांक-१८३° सें. तथा ठोस आक्सीजन का द्रवणांक-२१८.४° सें. है। १५° सें. पर संगलन तथा वाष्पायन उष्माएँ क्रमानुसार ३.३० तथा ५०.९ कैलोरी प्रति ग्राम है।
आक्सीजन पानी में थोड़ा घुलनशील है, जो जलीय प्राणियों के श्वसन के लिए उपयोगी है। कुछ धातुएँ (जैसे पिघली हुई चाँदी) अथवा दूसरी वस्तुएँ (जैसे कोयला) आक्सीजन का शोषण बड़ी मात्रा में कर लेती हैं।
बहुत से तत्व आक्सीजन से सीधा संयोग करते हैं। इनमें कुछ (जैसे फासफोरस, सोडियम इत्यादि) तो साधारण ताप पर ही धीरे-धीरे क्रिया करते हैं, परंतु अधिकतर, जैसे कार्बन, गंधक, लोहा, मैग्नीशियम इत्यादि, गरम करने पर। आक्सीजन से भरे बर्तन में ये वस्तुएँ दहकती हुई अवस्था में डालते ही जल उठती हैं और जलने से आक्साइड बनता है। आक्सीजन में हाइड्रोजन गैस जलती है तथा पानी बनता है। यह क्रिया इन दोनों के गैसीय मिश्रण में विद्युत् चिनगारी से अथवा उत्प्रेरक की उपस्थिति में भी होती है।
आक्सीजन बहुत से यौगिकों से भी क्रिया करता है। नाइट्रिक आक्साइड, फेरस तथा मैंगनस हाइड्राक्साइड का आक्सीकरण साधारण ताप पर ही होता है। हाइड्रोजन फास्फाइड, सिलिकन हाइड्राइड तथा जिंक इथाइल से तो क्रिया में इतना ताप उत्पन्न होता है कि संपूर्ण वस्तुएँ ही प्रज्वलित हो उठती हैं। लोहा, निकल इत्यादि महीन रूप में रहने पर और लेड सल्फाइड तथा कार्बन क्लोराइड सूर्य के प्रकाश में क्रिया करते हैं। इन क्रियाओं में पानी की उपस्थिति, चाहे यह सूक्ष्म मात्रा में ही क्यों न रहे, बहुत महत्वपूर्ण है।
जीवित प्राणियों के लिए आक्सीजन अति आवश्यक है। इसे वे श्वसन द्वारा ग्रहण करते हैं। द्रव आक्सीजन तथा कार्बन, पेट्रोलियम, इत्यादि का मिश्रण अति विस्फोटक है। इसलिए इनका उपयोग कड़ी वस्तुओं (चट्टान इत्यादि) के तोड़ने में होता है। लोहे की मोटी चद्दर काटने अथवा मशीन के टूटे भागों को जोड़ने के लिए आक्सीजन तथा दहनशील गैस को ब्लो पाइप में जलाया जाता है। इस प्रकार उत्पन्न ज्वाला का ताप बहुत अधिक होता है। साधारण आक्सीजन के साथ हाइड्रोजन या ऐसिटिलीन जलाई जाती है। इसके लिए ये गैसें इस्पात के बेलनों में अति संपीडित अवस्था में बिकती हैं। आक्सीजन सिरका, वार्निश इत्यादि बनाने तथा असाध्य रोगियों के साँस लेने के लिए भी उपयोगी है।
दहकते हुए तिनके के प्रज्वलित होने से आक्सीजन की पहचान होती है (नाइट्रस आक्साइड से इसको भिन्नता नाइट्रिक आक्साइड के उपयोग से जानी जा सकती है)। आक्सीजन की मात्रा क्यूप्रस क्लोराइड, क्षारीय पायरोगैलोल के घोल, ताँबा अथवा इसी प्रकार की दूसरी उपयुक्त वस्तुओं द्वारा शोषित कराने से ज्ञात की जाती है।
सं.ग्रं-जै.डब्ल्यू. मेलर : ए कॉम्प्रिहेंसिव ट्रीटाइज़ ऑन इनआर्गेनिक ऐंड थ्योरेटिकल केमिस्ट्री (१९२२); जे.आर. पारटिंगटन : ए टेक्स्ट बुक ऑव अनआर्गैनिक केमिस्ट्री। (विं.वा.प्र.)