आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) आकाशवाणी शब्द भारतवर्ष के केंद्रीय सरकार द्वारा संचालित, बेतार से कार्यक्रम प्रसारित करनेवाली राष्ट्रीय, देशव्यापक अखिल भारतीय संस्था के लिए व्यवहार में लाया जाता है। ८जून, सन् १९३६ को इस संस्था की स्थापना के अवसर पर इसका अंग्रेजी नामकरण ऑल इंडिया रेडियो हुआ। किंतु इससे पूर्व ही सन् १९३५ में तत्कालीन देशी रिसायत मैसूर में एक अलग रेडियो स्टेशन की स्थापना की गई थी जिसे मैसूर सरकार ने आकाशवाणी की संज्ञा दी थी। भारतवर्ष के स्वतंत्र हो जाने के कुछ समय बाद जब देशी रियासतों के रेडियो स्टेशन आल इंडिया रेडियो में सम्मिलित कर लिए गए, तब आल इंडिया रेडियो के लिए भारतीय नाम 'आकाशवाणी', मैसूर रेडियो स्टेशन के नामानुसार अपना लिया गया। इस समय अंग्रेजी में 'ऑल इंडिया रेडियो' और भारतीय भाषाओं में 'आकाशवाणी' शब्द का व्यवहार होता है।

आकाशवाणी की स्थापना सन् १९३६ में हुई, यद्यपि भारतवर्ष में रेडियो कार्यक्रमों का सिलसिलेवार प्रसारण २३ जुलाई, १९२७ से ही प्रारंभ हो गया था। 'आकाशवाणी' केंद्रीय सरकार के प्रसार और सूचना मंत्रालय के अधीनस्थ एक विभाग है। केंद्रीय सूचना तथा प्रसारमंत्री और उनके मंत्रालय द्वारा संसद् (पार्लियामेंट) आकाशवाणी पर अपना नियंत्रण रखती है। इसके प्रमुख आधिकारी महानिर्देशक (डाइरेक्टर जनरल) हैं जिनके नीचे देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित २८ रेडियो स्टेशन, ६० ट्रांसमिटर और कतिपय अन्य प्रकार के केंद्र और कार्यालय हैं, यथा समाचारविभाग, विदेशी

कार्यक्रम विभाग, दूरदर्शन केंद्र (टेलिविजन), इंस्टालेशन विभाग इत्यादि। इन सब केंद्रों और कार्यालयों को एक सूत्र में बाँधनेवाला एक केंद्रीय दफ्तर है जिसके इंजीनियरिंग अंग के प्रमुख चीफ़ इंजीनियर हैं और जिसके कार्यक्रम, शासकीय और निरीक्षण शाखाओं में उप-महानिर्देशक (डिप्टी डाइरेक्टर जनरल) नियुक्त हैं। कुल मिलाकर आकाशवाणी में (१९६० ई.) नौ हजार व्यक्ति काम कर रहे हैं। आकाशवाणी का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली के प्रसार भवन (ब्राडकास्टिंग हाउस) और आकाशवाणी भवन में स्थित है।

आकाशवाणी का उद्देश्य रेडियो का जनसाधारण की शिक्षा, जानकारी और मनोरंजन के लिए उपयोग करना है। अपने २८ रेडियो स्टेशनों से आकाशवाणी भारतवासियों के लिए १६ मुख्य भाषाओं, २९ आदिवासी भाषाओं तथा ४८ उपभाषाओं में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित करती है। कार्यक्रम के प्रथम वर्ग में क्षेत्रीय भाषाओं के वे कार्यक्रम हैं जो विभिन्न स्टेशनों से प्रसारित होते हैं और जिनमें संगीत, वार्ताओं, नाटक और सामान्य समाज से संबद्ध अन्य प्रकार के कार्यक्रम आते हैं। दूसरे वर्ग हैं राष्ट्रीय कार्यक्रमों के, यानी संगीत, वार्ताओं, नाटक इत्यादि के वे कार्यक्रम जो दिल्ली से प्रसारित होने पर अन्य सभी स्टेशनों द्वारा 'रिले' किए जाते हैं अथवा जिनकी मूल पांडुलिपि (मास्टर कापी) के आधार पर अन्य भाषाओं में एक समान कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। इन राष्ट्रीय कार्यक्रमों द्वारा देश में सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ा है। तीसरा वर्ग है समाचार बुलेटिन, समाचारदर्शन और तद्विषयक कार्यक्रमों का। आकाशवाणी की सभी ४७ बुलेटिनें जो १६ भाषाओं में प्रसारित होती है दिल्ली में संपादित होकर अलग-अलग भाषाक्षेत्रों के स्टेशनों से रिले की जाती हैं। इनके अतिरिक्त प्रदेशों में स्थानीय समाचार भी प्रसारित किए जाते हैं। चौथा वर्ग है 'विविध भारती' के कार्यक्रमों का जो हल्के-फुल्के मनोरंजन चाहनेवाले श्रोताओं के लिए केंद्रीय रूप से संपादित होकर कुछ शक्तिशाली ट्रांसमिटरों पर प्रतिदिन प्रसारित किए जाते हैं और सारे देश में सुने जा सकते हैं। पाँचवाँ वर्ग, जो एक तरह से पहले वर्ग में ही शामिल है, विशिष्ट श्रोताओं के लिए कार्यक्रमों का है, यथा ग्रामीण जनता के लिए, औद्योगिक क्षेत्रों, विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, सैनिक दलों, महिलाओं और बच्चों के लिए। इन पाँचों वर्गों के अंतर्गत कुल मिलाकर आकाशवाणी वर्ष भर में एक लाख से अधिक घंटों के कार्यक्रम प्रसारित करती है जिसमें लगभग ४८ प्रतिशत संगीत के कार्यक्रम होते हैं, २२ प्रतिशत समाचार के और शेष वार्ता, नाटक इत्यादि अन्य प्रकार के।

विदेशों के लिए आकाशवाणी का एक अलग विभाग है, जो १६ भाषाओं में प्रति दिन २० घंटे कार्यक्रम प्रसारित करता है। इसका उद्देश्य प्रधानत: भारतीय नीति तथा भारतीय संस्कृति से विदेशी जनता और प्रवासी भारतीयों को परिचित कराना है।

इस समय (१९६०) आकाशवाणी के विभिन्न ट्रांसमिटरों द्वारा देश के लगभग ३७ प्रतिशत क्षेत्र में कुल मिलाकर देश की ५५ प्रतिशत जनता रेडियो कार्यक्रमों को भलीभाँति सुन सकती है, किंतु कुछ विघ्नों के साथ ४५ प्रतिशत क्षेत्र में ६५ प्रतिशत तक जनता इन कार्यक्रमों को सुन सकती है। १९४७ के बाद १९६० तक रेडियो स्टेशनों की संख्या ६ से बढ़कर २८ हो गई। रेडियो सेटों की संख्या १९४७ में २,७६,००० थी और १९५९ में १७,२५,००० हो गई। फिर भी देश की जनसंख्या और आकाशवाणी के रेडियो स्टेशनों के विस्तार को देखते हुए रेडियो सेटों की संख्या में अभिवृद्धि की आश्यकता है। इस समय आकाशवाणी के लगभग साढ़े पाँच करोड़ वार्षिक व्यय में से लगभग ६० प्रतिशत रेडियो सेटों की लाइसेंस फीस से आता है। साधारण लाइसेंस फीस १५ रुपया वार्षिक है, किंतु फीस की दरें कुछ विशेष प्रकार के रेडियो सेटों के लिए अलग-अलग भी हैं।

अपने निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति करते समय आकाशवाणी देश को एक सांस्कृतिक सूत्र में बाँधने का प्रयास भी करती रही है। शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत को आकाशवाणी के कार्यक्रम ने प्रोत्साहन दिया है और लगभग १० हजार संगीत कलाकर इन कार्यक्रमों में प्रति वर्ष भाग लेते रहे हैं। लोकसंगीत के रेकार्डों का एक विशाल संग्रह भी तैयार किया गया है और नए प्रकार के सुगम संगीत और वाद्यवृंद की आयोजना भी की गई है। साहित्यसमारोह, राष्ट्रीय कविसभा, संगीतसम्मेलन, गौरव ग्रंथमाला इत्यादि कार्यक्रम विभिन्न संस्कृतियों से अनेक श्रोताओं को परिचित कराते हैं। आकाशवाणी द्वारा सर्वाधिक सेवा ग्रामीण जनता के लिए हो रही है। लगभग ७० हजार रेडियो सेट ग्रामीण केंद्रों में बाँटे गए हैं और दैनिक ग्रामीण कार्यक्रम लोकप्रिय और शिक्षाप्रद साबित हुए हैं। ग्रामीण-श्रोता-मंडलों की स्थापना से देहाती जनता में नवचेतना का प्रादुर्भाव देखा जा रहा है। इन सब दिशाओं में प्रगति करते समय आकाशवाणी को न केवल संगीतज्ञों और साहित्यकारों का सहयोग प्राप्त हुआ है बल्कि अनेक प्रकार की परामर्श समितियों का भी, जिन्हें सूचना और प्रसार मंत्रालय नियुक्त करता है। दूरदर्शन (टेलिविज़न) का भी आरंभ एक प्रयोग के रूप में १९५९ के सितंबर मास से दिल्ली में किया गया है। (ज.चं.मा.)

इस समय (सन् १९७३ में) देश में आकाशवाणी के ३९ प्रधान केंद्र, तीन कम शक्ति के उपकेंद्र और २४ सहायक केंद्र हैं। इसके सिवा ३० चैनलों से विविधभारती का लोकप्रिय कार्यक्रम भी प्रसारित होता है। इस समय १३७ ट्रांसमिटर कार्य कर रहे हैं जिनमें से १०५ मध्यम तरंग के और ३२ लघु तरंग के हैं।

आकाशवाणी के तीन मुख्य कार्यक्रमों में एक तो राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित होनेवाले देशव्यापी महत्व के कार्यक्रम, दूसरे दिल्ली, बंबई, कलकत्ता और मद्रास जैसे चार बड़े शहरों में प्रसारित किए जानेवाले प्रादेशिक स्तर के और तीसरे क्षेत्रीय कार्यक्रमों को, अलग-अलग केंद्र, अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुसार प्रसारित करते हैं।

आकाशवाणी के घेरलू सेवा कार्यक्रम २० प्रधान भाषाओं और लगभग १०० बोलियों और जनभाषाओं में प्रसारित होते हैं। इसके सिवा आकाशवाणी की विशेष सेवा के संसार भर के श्रोताओं के लिए २४ भाषाओं के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।

विभिन्न केंद्रों से प्रसारित होनेवाले कार्यक्रमों की कुल अवधि ७०० घंटे से ज्यादा है। इसमें ४३.६ प्रतिशत समय संगीत कार्यक्रम और २२.५ प्रतिशत समय समाचार प्रसारण को दिया जाता है। शेष में वार्ता, वादविवाद, नाटक, रेडियोरूपक, महिलाओं, बच्चों, किसानों और औद्योगिक मजदूरों के लिए विशेष कार्यक्रमों को दिया जाता है जिनकी दैनिक अवधि लगभग ३६० घंटे हैं। इस प्रकार एक दिन में आकाशवाणी से १,००० घंटे से ज्यादा अवधि के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।

सामाचार और सामयिक चर्चा : आकाशवाणी का समाचार-सेवा-विभाग केंद्रीय और प्रादेशिक समाचार, सामयिक विषयों पर समीक्षा और विचार विमर्श के द्वारा देश और विदेश के श्रोताओं को सही, निष्पक्ष, शीघ्र और अधिक से अधिक जानकारी देता है। इसमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों की मुख्य प्रवृत्तियों तथा जनरुचि की बातों को स्थान दिया जाता है। खेलकूद तथा गाँव की खबरों को भी महत्व दिया जाता है। इस समय २४ घंटें में २३० बुलेटिनें प्रसारित होती हैं। इनमें से १७५ बुलेटिनें भारतीय श्रोताओं के लिए होती हैं। हिंदी समाचारदर्शन और अंग्रेजी न्यूज़रील कार्यक्रमों के द्वारा प्रमुख घटनाओं की ध्वनि और शब्दझांकी भी प्रस्तुत की जाती है। ये कार्यक्रम घटनास्थल पर किए गए रिकार्डिंग पर आधारित होते हैं।

विदेश सेवा : आकाशवाणी ने सबसे पहले १ अक्टूबर, १९३९ को विदेशी श्रोताओं के लिए प्रसारण शुरु किया। आजकल प्रतिदिन ५१ घंटे २४ भाषाओं में विदेशों के लिए कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।

विविध भारती और सामयिक चर्चा : 'विविध भारती' के नाम से अक्टूबर, १९५७ में यह सेवा शुरू की गई। इसमें लोकप्रिय संगीत और रोचक रूपक होते हैं। आज विभिन्न भागों में स्थित ३० केंद्रों से इसका प्रसारण होता है। आकाशवाणी के व्यापारिक विज्ञापन का प्रसारण १९६७ में बंबई नागपुर से प्रसारित होनेवाले कार्यक्रमों में शुरु हुआ। आज व्यापारिक सेवा का प्रसारण 'विविध भारती' के ३० में से १८ केंद्रों से किया जा रहा है। व्यापारिक सेवा प्रसारण के प्रारंभ से सितंबर १९७१ तक कुल ८,३८,४२,५२२ रुपए राजस्व स्वरूप प्राप्त हुए।

ग्रामीण विकास में सहायता : आकाशवाणी के केंद्रों से गाँवों के लिए भी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। आकाशवाणी ने कुछ केंद्रों पर कृषि और गृह यूनिट बनाए हैं जो सघन कृषिक्षेत्रों की खेतिहर योजनाओं की सहायता के लिए सूचनाप्रद कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। परिवार नियोजन यूनिट परिवार नियोजन विभाग समय-समय पर आयोजित विशेष अभियानों में सहायता करते हैं। आकाशवाणी ने १९६९ ई. में दिल्ली केंद्र से युवा व्यक्तियों के लिए युववाणी नाम से विशेष कार्यक्रम शुरू किया है।

विकास के रूप : अगले दो वर्षों में देश के ८५ प्रतिशत लोग मध्यम तरंग प्रसारण सुन सकेंगे। देश में प्रसारण की सुविधाओं का विस्तार इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया जा रहा है कि मध्यम तरंग सेवा का ज्यादा से ज्यादा विस्तार किया जाए और ऐसे क्षेत्रों तक ले जाया जाए जहाँ अबतक यह उपलब्ध नहीं है। यह काम वर्तमान ट्रांसमिटरों की शक्ति बढ़ाकर तथा बहुत विचारपूर्वक चुने गए ट्रांसमिटर स्टेशन बनाकर किया जाएगा। इसके अलावा कई एक प्रादेशिक केंद्रों तथा सहायक केंद्रों में कार्यक्रम तैयार करने की सुविधाओं का विस्तार भी किया जाएगा।

दूरदर्शन (टेलिविज़न) का विकास : भारत में दिल्ली के आशवाणी केंद्र से १५ सितंबर, १९६९ से छोटे पैमाने पर टेलिविज़न सेवा शुरू हुई। आज इसका लाभ दिल्ली से ६० किलोमीटर परिधि के अंदर रहनेवाले लोग उठा सकते हैं। दिल्ली और उसके आसपास टेलिविज़न दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली में आज लगभग ४५,००० टेलिविज़न सेट हैं। दिल्ली टेलिविज़न केंद्र की स्कूलसेवा निर्धारित विषयों पर नियमित रूप से शैक्षणिक कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। ये कार्यक्रम कक्षाओं में होनवाले अध्यापन के पूरक के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। अनुमान है कि इस कार्यक्रम में ऐसे ४११ विद्यालयों के, जहाँ टेलिविज़न सेट्स हैं, दो लाख से अधिक विद्यार्थी लाभान्वित होते हैं। जनवरी, १९६७ से टेलिविज़न द्वारा खेती के उन्नत तरीकों को लोकप्रिय बनाने की योजना शुरु की गई है। इस विशेष कार्यक्रम का नाम कृषिदर्शन है और सप्ताह में तीन बार दिखाया जाता है। इस समय लगभग ८० कृषि दूरदर्शन (टेलिविज़न) क्लब हैं।

चौथी योजना में टेलिविज़न के विकास के अंतर्गत दिल्ली के टेलिविज़न केंद्र का विस्तार शामिल किया गया है। इसमें श्रीनगर, बंबई, कलकत्ता, मद्रास और लखनऊ में टेलिविज़न केंद्र स्थापित करने और अमृतसर, पूना, कानपुर, दुर्गापुर, आसनसोल और मसूरी में टेलिविज़न रिले केंद्र स्थापित करने की योजना है।

बंबई और श्रीनगर के टेलिवज़न केंद्र तथा पूना और अमृतसर के रिले केंद्र शीघ्र चालू होंगे। लखनऊ और मद्रास केंद्र तथा दुर्गापुर, आसनसोल और कानपुर के रिले केंद्र १९७४ तक तैयार होंगे। दिल्ली टेलिविज़न केंद्र से विस्तार के लिए मसूरी में एक विशेष ट्रांसमिटर लगाने का प्रस्ताव है। (रा.ना.व.)