आइंस्टाइन प्रसिद्ध भौतिकी वैज्ञानिक और सापेक्षवाद के जन्मदाता ऐल्बर्ट आइंस्टाइन का जन्म १४ मार्च, सन् १८७९ को जर्मनी के वुर्टेमबर्ग प्रदेश के ऊल्म नामक नगर में हुआ था। इनके माता पिता यहूदी थे। इनका बचपन म्यूनिख में बीता था, जहाँ इनके पिता का बिजली के सामान का कारखाना था। सन् १८९४ में इनका परिवार इटली में जा बसा ऐल्बर्ट को स्विट्ज़रलैंड के आरू नामक नगर के एक विद्यालय में भरती करा दिया गया। इसके पश्चात् गणित तथा भौतिक शास्त्र पढ़ाकर जीविकोपार्जन करते हुए ये ज्यूरिक में विद्याभ्यास करते रहे। सन् १९०१ में बर्न के पेटेंट कार्यालय में जाँचकर्ता नियुक्त हुए तथा १९०९ तक इसी पद पर रहे। इसी बीच इन्होंने ज़्यूूरिक विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त की तथा भौतिक शास्त्र संबंधी अपने आरंभिक लेख प्रकाशित किए। ये इतनी उच्च कोटि के समझे गए कि इन्हें ज़्यूूरिक के विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद दिया गया। एक ही वर्ष बाद, सन् १९१० में प्राग के जर्मन विश्वविद्यालय में ये सैद्धांतिक भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हो गए। १९१२ में ये ज़्यूूरिक के पालिटेक्निक स्कूल में प्रोफेसर नियुक्त होकर इस नगर में लौट आए। सन् १९१३ में इन्होंने बर्लिन के प्रुशियन विज्ञान अकादमी में गवेषणा संबंधी पद के साथ बर्लिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का तथा भौतिकी के कैसर विलहेल्म इंस्टिट्यूट के संचालक का भी पद स्वीकार किया।
अब तक विज्ञान के क्षेत्र में इनकी असाधारण श्रेष्ठता इतनी सुस्पष्ट हो गई थी कि इन्हें राजकीय प्रुशियन विज्ञान अकादमी का सदस्य चुन लिया गया और इनकी वृत्तिका नियत कर दी गई कि ये अपना समय स्वतंत्र रूप से केवल अनुसंधान में लगा सकें। जेनेवा, मैनचेस्टर, रॉस्टॉक तथा प्रिन्सटन विश्वविद्यालयों ने इन्हें डॉक्टरेट की सम्मानित उपाधियाँ आर्पित कीं तथा ऐम्सटर्डैम (नीदरलैंड) और कोपेनहेगेन (डेनमार्क) की आकदमियों ने अपना सम्मानित सदस्य चुना। सन् १९२१ में ये इंग्लैंड की रायल सोसायटी के भी सदस्य चुने गए। इसी संस्था ने सन् १९२५ में इन्हें कोपली पदक से तथा सन् १९२६ में रॉयल ऐस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने भी एक स्वर्णपदक से सम्मानित किया। सन् १९२१ में इन्हें संसार का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार नोबेल पुरस्कार मिला।
सन् १९३० में जर्मनी में विषम राजनीतिक परिस्थिति उत्पन्न हो गई। इस समय जर्मनी में विज्ञान तथा वैज्ञानिक का भविष्य आइंस्टाइन को अति संकटमय जान पड़ा। उन्होंने यह देश छोड़ यूरोप, इंग्लैंड तथा संयुक्त राज्य (अमरीका) की यात्रा आरंभ की और अंत मैं अमरीका के प्रिन्सटन नगर में, उच्च अध्ययन के लिए स्थापित नई संस्था में प्रोफेसर का पद स्वीकार कर सन् १९३३ से वहीं बस गए।
आइंस्टाइन ने जो अनुसंधान किए हैं वे इतने उच्चस्तरीय गणित पर आधृत हैं तथा उनका क्षेत्र और फल इतने व्यापक हैं कि उन सबका व्योरेवार वर्णन करना यहाँ संभव नहीं है। जिस खोज के कारण लोग उन्हें विशेषकर जानते हैं वह आपेक्षिता सिद्धांत है (उसे देखें)। इसके सीमित रूप का प्रकाशन इन्होंने सन् १९०५ में किया था। इस सिद्धांत ने उस समय की अनेक आधारभूत धारणाओं को उलट पलट दिया। पहले तो वैज्ञानिक इस सिद्धांत को कल्पना की उड़ान समझते थे, किंतु धीरे धीरे विश्व के वैज्ञानिकों ने इसे पूर्ण रूप से स्वीकार किया। सन् १९१५ में इन्होंने इसी का विस्तृत सिद्धांत प्रकाशित किया।
सन् १९०५ में ही इन्होंने ''ब्राउनियन'' गति, अर्थात वायु तथा तरल पदार्थो में इधर उधर अनियमित रीति से तैरनेवाले सूक्ष्म कणों की चाल, के संबंध में एक सिद्धांत प्रस्तुत किया। इन कणों की गति को पिछले ८० वर्षो में चेष्टा करने पर भी वैज्ञानिक नहीं समझ पाए थे। धातु के तलों पर प्रकाश के आघात से विद्युद्धारा की उत्पति के तथा विकीर्ण ऊर्जा से हुए रासायनिक परिवर्तन के कारणों पर भी आपने प्रकाश डाला।
सन् १९४९ में इन्होंने अपने उस नवीन सिद्धांत की घोषणा की जिसके द्वारा विद्युच्चुंबकीय घटनाएँ तथा गुरुत्वाकर्षण के फल एक सूत्र में आबद्ध हो गए। सन् १९५३ में इसी सिद्धांत का अधिक विस्तार कर इन्होंने उन आधारभूत, सर्वपरिवेष्टक नियमों का वर्णन किया जिनसे विश्व के सब कार्य संपादित होते हैं।
इस अपूर्व समझवाले महावैज्ञानिक की मृत्यु सन् १९५५ में ७६ वर्ष की आयु में हुई। अनेक विद्धानों का मत है कि पिछली कई शताब्दियों से ऐसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक ने जन्म नहीं लिया था। (भ.दा.व.)