आंतिस्थेनीज़ (लगभग ई.पू.४५५-३६०) एथेंस के दार्शनिक। आरंभ में इन्होंने गौर्गियास्, एक हिप्पियास् और प्रौदिकस् से शिक्षा प्राप्त की, पर अंत में ये सुकरात के भक्त बन गए। किनोसागस् नामक स्थान पर इन्होंने अपना विद्यालय स्थापित किया जहाँ पर प्राय: निर्धन लोगों को दर्शन की शिक्षा दी जाती थी। ये सुख का आधार सदवृति (अरेते) को और सदवृति का आधार ज्ञान को मानते थे। ये यह भी मानते थे कि सदवृति की शिक्षा दी जा सकती है और इसके लिए शब्दों के अर्थो का अनुसंधान अपेक्षित है। ये अधिकांश सुखों को प्रवंचक मानते थे। ये कहते थे कि केवल श्रमोत्पादित सुख स्थायी हैं। अतएव ये इच्छाओं को सीमित करने का उपदेश देते थे। ये एक लबादा पहने रहते थे और एक दंड और खरी अपने पास रखते थे। इनके अनुयायी भी ऐसा ही करने लगे। (भो.ना.श.)